Thursday 4 February 2010

आज का मीडिया और बाजार का विस्तार बनाम बाजार की समझ

समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया के हीरक जयंती समारोह के एक सत्र में मीडिया और बाजार के रिश्ते की पड़ताल की गयी। यह एक बेहद जरूरी मसला था जिस पर खुलकर बात होनी चाहिए। सच तो यह है कि मीडिया के क्षेत्र में बाजार अभी तक विजातीय है। पहला फोकस राजनीति है और अंतिम संस्कृति। राजनीति के बाद इधर खेल ने मीडिया में अपना रुतबा कायम किया है। हालांकि उसे खेल नहीं बल्कि क्रिकेट कहना चाहिए। खेल में अस्सी फीसदी तो क्रिकेट ही रहता है। इधर फिल्मी दुनिया ने तेजी से मीडिया में अपनी पैठ बनायी है और फिल्म जगत की खबरें केवल शुक्रवारीय एक से लेकर चार पृष्ठों के परिशिष्ट से बाहर निकल कर रोज के अन्य घटनाक्रमों की तरह दैनिक अखबार में अब दिखायी देने लगी हैं अलबत्ता जो टीवी लोगों के घर-घर में घुस चुका है और कई लोगों की पूरी दिनचर्या की टीवी धारावाहिकों से प्रभावित है, को अब भी सप्ताह में किसी कोने अंतरे या एकाध सफे में जगह मिलती है जिस पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। इसकी खबरें आने वाले दिनों में रोज एक पूरा पृष्ठ समेट सकती हैं। वाणिज्य व्यवसाय की खबरें हिन्दी के दैनिक अखबारों में रोज अमूमन पूरे एक पृष्ठ की होती हैं लेकिन उससे गंभीर क्या इस क्षेत्र की प्राथमिक समझ भी पाठक को नहीं दे पातीं। व्यवसाय का नाम सुनते ही पत्रकार दबाव में आ जाते हैं पता नहीं किसी कंपनी का मालिकान से क्या सम्बंध हो। पता नहीं कौन विज्ञापनदाता हो जिसके खिलाफ खबर छपनी भी चाहिए या नहीं। पता नहीं कौन सी कंपनी अखबार को विज्ञापन न देती हो और उसके उत्पाद को हाईलाइट करने का खामियाजा बिजनेस पेज के प्रभारी को भुगतना पड़ जाये। व्यवसाय का आतंक वैसे तो हर पृष्ठ पर झांकता है पता नहीं किस कंपनी का मालिक किस मामले में धर लिया गया हो और उसकी खबर छापनी भी है या नहीं या किसी रूप में छापनी है इसके प्रति सतत चौकन्ना रहना पड़ता है।
ऐसे में बाजार की समझ मीडिया क्या खाक पाठकों में विकसित करेगा। अन्य विषयों की तरह तह बेबाक, निर्भीक और तटस्थ भाव जब तक नहीं आयेगा मीडिया बाजार की उन्हीं खबरों को परोसते रहने को अभिशप्त रहेगा जो लगभग थोपना भर होगा।
पता की बात यह है कि विश्व बाजार के खुले माहौल में भारत पूरी दुनिया के विभिन्न उत्पादों से पटा पड़ा है और उत्पादों के उपयोग के तौर तरीकों, उनकी खूबियों-खामियों, कीमतों, उपलब्धता, विश्वसनीयता, इतिहास आदि के बारे में आम लोग विस्तार से जानना चाहते हैं। कई अखबारों के बारे में कहा जाता है कि साहब उनके यहं तो खबरें कम छपती हैं अब पाठक विज्ञापन पढऩे के लिए तो अखबार लेता नहीं, यह एक गलत समझ है। पाठक केवल राजनीति, क्रिकेट, फिल्म और टीवी के बारे में ही नहीं जानता चाहता, वह जूतों, पर्स, बेल्ट, मोबाइल के बारे में भी जानना चाहता है क्योंकि उसे वह खरीदना है, इस्तेमाल करना है। आज का दौर इस बात की मांग कर रहा है कि तमाम उपभोक्तावादी वस्तुओं के बारे में जानकारी मिले जिनसे बाजार अंटा पड़ा है।
आइये जानें कि इस बारे में क्या कहते हैं दिग्गज:
'मीडिया, बाजार के पहरूए की भूमिका में' विषय पर आयोजित इस सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित देश के सबसे बड़े निजी बैंक आईसीआईसीआई बैंक की मुख्य कार्यकारी और प्रबंध निदेशक चंदा कोचर ने कहा कि विश्व बैंक की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि 'लोकतंत्र', स्वतंत्र मीडिया और विकास में सीधा संबंध है। 'मेरी समझ में' बाजार के पहरेदार के रूप में मीडिया की यही भूमिका हो सकती है कि वह लोगों को तथ्यात्मक सूचनाएं दे, लोगों को बाजार संबंधी फैसले करने में मदद करे और उन्हें सवाल उठाने के लिये प्रोत्साहित करे। केवल आंकड़े परोसना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि तथ्यों को आधारहीन बातों से अलग करके पेश करने तथा बात को उसके सही संदर्भो के साथ रखने की आवश्यकता है। मीडिया बाजार में कंपनियों को जवाबदेह बनाने और लोगों के लिये नये अवसर दिखाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
नेशनल स्टाक एक्सचेंज की संयुक्त प्रबंध निदेशक चित्रा रामकृष्णन ने भी पश्चिम में किये गये अनुसंधानों का हवाला देते हुए कहा कि मीडिया का विकास वित्तीय बाजारों के विकास से प्रभावित हुआ है। बाजार के विकास ने इसे गति दी है। साथ ही यह निवेशकों के निर्णयों को प्रभावित करता है। मीडिया को बाजार के प्रति समझ बढ़ाने वाली रपटें प्रकाशित करनी चाहिए। अच्छे और बुरे का भेद करने वाली समझ विकसित करनी चाहिए। देश के सबसे बड़े जिंस वायदा बाजार के प्रमुख और फाइनेंशियल टेक्नोलीजी इंडिया के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी जिग्नेश शाह ने कहा कि किसी भी बाजार के विकास के लिये सूचनाएं मुख्य आधार होती हैं। मौलिक सूचनाओं के प्रसार में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है और आधुनिक संचार प्रौद्योगिकी ने इस क्षमता को नया आयाम दिया है। मीडिया अगर बाजार का 'पहरेदार' बनना चाह रहा है तो उत्तरदायित्व और जवाबदेही लेना इसके अनिवार्य शर्त है।
सत्र में मीडिया जगत का प्रतिनिधित्व कर रहे आउटलुक के संपादक विनोद मेहता ने कहा कि मीडिया बाजार को सममें विफल रहा है। मीडिया में राजनीति और समाज के हर क्षेत्र पर निगाह रखने वाले लोग हैं और निगाह रखते भी हैं लेकिन बाजार पर निगाह नहीं रखी जाती। शायद ही ऐसा कोई ऐसा मौका है जब मीडिया ने बाजार के किसी घोटाले का भंडाफोड़ किया हो। यह भांडा अपने आप फूटता है फिर मीडिया उसके पीछे भागता है। मीडिया घरानों का बाजार में निहित स्वार्थ हो गया है और वे बाजार की चमक का ही गुणगान करते रहते हैं।

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