Friday, 8 January 2010
एक और अदा मनमोहिनी!!!
प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह ने एनआरआई समुदाय को यह साफ कह दिया कि अब भी वे भारत के विकास के हिस्से हैं और उनकी भूमिका की अनदेखी नहीं की जायेगी। सिंह ने प्रवासी भारतीयों को स्वदेश आकर राजनीति में शरीक होने का आह्वान करते हुए कहा है कि अगले आम चुनाव तक उन्हें वोट डालने का अधिकार मिल सकता है। इस दिशा में काम भी चल रहा है। वे चाहेंगे कि क्यों न और अधिक प्रवासी भारतीय स्वदेश आकर राजनीति और सार्वजनिक जीवन में शामिल हों। इसका सीधा मतलब यही निकाला जाना चाहिए कि भारतीय चाहें जहां रहें भारत में उनकी जड़ें न सिर्फ महफूज़ हैं बल्कि वे उसी तरह इस देश का हिस्सा हैं जैसा भारत छोड़ने से पहले थे। इस आश्वस्ति से यह लाभ होगा कि एनआरआई न सिर्फ़ भावात्मक रूप से भारत से अधिक गहराई से जुड़ेंगे बल्कि अपनी कमाई भारत में लगाने पर भी विचार करेंगे, जिससे देश की अर्थव्यवस्था और मज़बूत होगी। सिंह की यह भूमिका मनमोहनी है। तुस्सी ग्रेट हो!
अर्थव्यवस्था अब पूरे विश्व की रीढ़ बन चुकी है और हर रिश्ते में उसकी भूमिका केन्द्रीय होती है। गर्मजोशी भरे उनके निमंत्रण का मतलब चाहे जो निकाला जाये निहितार्थ अर्थव्यवस्था से सम्बंधित निकाला जाना चाहिए। आखिर अर्थशास्त्री की मुस्कान भी अर्थभरी होती है। नरसिंह राव की सरकार के ज़माने से देश की अर्थव्यवस्था के स्वप्नद्रष्टा मनमोहन सिंह ही रहे हैं। वे प्रधानमंत्री न भी रहते थो तो भी उनकी बतायी राह पर देश की अर्थव्यवस्था चलती और अब तो दुनिया भी उन्हें फालो करे तो हैरत नहीं।
मैं मनमोहन जी से मिला था 8-9 वर्ष पहले अमृतसर में। उस समय मैंने सोचा भी न था कि जिसे शख्स से मैं गले मिल रहा हूं वह कभी देश का प्रधानमंत्री होगा। मेरी उनसे मुलाकात हुई थी अपने सहकर्मी हरिहर रघुवंशी के चलते। हम दोनों ही वहां परिवार के बिना एक ही कमरे में रह रहे थे। उसकी वीआईपी बीट थी और वाणिज्य-उद्योग बीट भी मेरे पास थी। रघुवंशी ने पता लगावा लिया था कि डॉ.मनमोहन सिंह अमृतसर आ रहे हैं और कुछ देर के लिए सर्किट हाउस में ठहरेंगे जो वहां वीआईपी लोगों का सरकारी गेस्ट हाउस था। जिस कमरे में वे ठहरे थे किसी को प्रवेश नहीं मिल रहा था। अव्वल तो मीडिया से कहा गया कि मनमोहन सिंह आये ही नहीं हैं। जो कन्फर्म थे उन्हें कहा गया कि वे निजी यात्रा पर आये हैं इसलिए किसी भी कीमत पर किसी से नहीं मिलेंगे। हमने अपने स्तर पर सुरक्षा अधिकारी से अपना कार्ड भिजवाया और रघुवंशी ने कहा कि मनमोहन जी को वह व्यक्तिगत तौर पर जानता है। आखिरकार हम दोनों को मिलने के लिए उन्होंने बुलवा ही लिया। रघुवंशी यह कहते हुए तपाक से उनके गले मिला की वह जब एनडीटीवी में था तो उनसे अक्सर मिलता रहा था। मैंने रघुवंशी को फालो किया और मैं भी उनके गले मिला। मनमोहन जी अपनी बेटी के साथ ननकाना साहिब पाकिस्तान जाने वाले थे। पारिवारिक कारणों से ही अमृतसर आये थे। खैर हम दोनों ने साझे तौर पर उनका इंटरव्यू लिया था जो रघुवंशी के नाम से छपा था। एक इंटरव्यू या बीट पर दो-दो रिपोर्टरों का जाना अनुचित माना जाता इसलिए रघुवंशी के नाम से ही वह रिपोर्ट फाइल की गयी थी। अलबत्ता मैंने कुछ साइड स्टोरीज़ और कर ली थी।
उसी समय जाना कि वे कितने सहज व्यक्ति थे। उनका ज्ञान आक्रांत नहीं करता, सजेस्ट करता है। मार्ग बताता है। एनआरआई को मतदान का अधिकार भारत के लिए एक अच्छे दौर की सूचक बनेगी ऐसा मेरा विश्वास है।
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