अदालत ने पिछले दिनों सरकार से पूछा है कि जब वेश्यावृत्ति को खत्म नहीं कर सकते तो उसे वैध क्यों नहीं कर दिया जाता। प्रश्न कायदे का है और इस पर शोर बरपा है। उम्मीद की जा रही है थी कि औसत लोगों की सोच होती है कि यह अनैतिक काम है और उसे वैध नहीं किया जाना चाहिए। इससे समाज पतित होता है और उस पर अंकुश हट जायेगा तो उसे प्रोत्साहन मिलेगा। बौद्धिक समाज मानता रहा है कि इसमें मजबूर और गरीब महिलाएं आती हैं और समाज के हालत बदलने चाहिए ताकि कोई इस पेशे में न उतरे। समाज को वेश्याओं से हमदर्दी से पेश आना चाहिए उन हालातों दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए तो किसी को वेश्या बनने को मजबूर करते हैं। इससे परे मुक्त मन और आधुनिक सोच के लोगों का मानना वैसा ही है जैसा अदालत ने पूछा है कि जब इसे खत्म नहीं कर सकते तो उसे वैध क्यों नहीं किया जाना चाहिए। हकीकत यह है कि देहव्यापार के अवैध बने रहने के कारण एक ओर पुलिस उनसे यह कहकर वसूली करती है कि अवैध कामकाज हो रहा है दूसरी तरफ अपराध जगत से जुड़े लोग उनसे वसूली करते हैं और भुक्तभोगी पुलिस के पास फरियाद नहीं कर पाते क्योंकि वे स्वयं अवैध गतिविधि से जुड़े हैं। दुतरफा वसूली से त्रस्त यह देह का कारोबार उन संस्थाओं द्वारा भी छला जाता है जो समाज सेवा के नाम पर उनसे हमदर्दी दिखाते हैं और उनके हितों के लिए काम करते दिखायी देते हैं। ये स्वयंसेवी संस्थाएं उनका इस्तेमाल कई स्तरों पर करतीं और चाहती हैं कि समस्या बनी रहे और वे अपने स्वार्थ साधती रहें। सार्वजनिक मंचों पर वेश्यावृत्ति के क्षेत्र में काम करने वाले कई स्वयंसेवी संगठनों ने कहा है कि इस धंधे को नैतिक नहीं बनाया जाना चाहिए। उनके भी यही तर्क हैं कि इससे इस धंधे में लोगों का आना बढ़ेगा। यह सवाल सभी गुटों से पूछा जाना चाहिए कि आप किस परम्परा और संस्कृति का हवाला देकर उसे बंद करना चाहते हैं जबकि वेश्यावृत्ति भारतीय समाज में युगों युगों से किसी न किसी रूप में मान्य रही है। इस पेशे को वैध बना देने से जहां उनका पुलिस और गुंडों से शोषण रुकेगा वहीं उनके व उनके ग्राहकों की स्वास्थ्य समस्याओं के निदान का रास्ता भी खुलेगा। आजाद भारत में नैतिकता की दुहाई देकर एक भी व्यक्ति के शोषण को अनदेखा नहीं किया जा सकता यहां तो बीस-तीस लाख लोगों की समस्या है। इस भय से लोगों को लोगों के शोषण की प्रक्रिया को जारी नहीं रखा जा सकता कि इससे कुछ और लोगों के शोषण के रास्ते खुल सकते हैं। अभी तो चुनौती यह है कि जो शोषण प्रत्यक्ष तौर पर हो रहा है और सीलन भरे कमरे में लाखों औरतों जो जिन्दगी गुजार रही हैं उनके जीवन स्तर को कैसे सुधारा जाये और कैसे उन्हें भयमुक्त किया जाये इस पर गौर करने की आवश्यकता है। पेशा तो यह चल ही रहा है उसका नियमन हो जाने से कम से कम अपहरण करके लाई गयी, जबरन पेशे में उतारी गयी, अवयस्क लड़का पेशे में आगमन जैसी घटनाओं पर कुछ तो अंकुश लगेगा। सरकार उनके स्वास्थ्य परीक्षण को अनिवार्य कर सकेगी ताकि बीमारियों का फैलाव रोका जा सके।
nice
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