Monday 28 December 2009

बड़ा होना स्वार्थी होना नहीं है

पिछले दिनों पेरिस में एक शोध के हवाले से रिपोर्ट प्रकाशित हुई कि जिन लोगों के कई बच्चे होते हैं उनमें सबसे बड़ा बच्चा अधिक स्वार्थी होता है। शोध में जो तर्क दिये गये हैं उसका आधार मनोवैज्ञानिक हैं और कहा गया है कि स्वार्थी होने के पीछे उसकी वह मनोग्रंथी है जो दूसरे बच्चे के जन्म के साथ शुरू होती है। दूसरे बच्चे के आने पर जब उसे पहले जितना प्यार और तवज्जो नहीं मिलती तो वह उपेक्षित महसूस करने लगता है और स्वार्थी हो जाता है। लेकिन भारत में दुनिया का मनोविज्ञान फेल हो जायेगा। हमारे यहां मनोविज्ञान नहीं समाजशास्त्र पर आधारित अध्ययन ही कारगर होगा। यहां तो परिवार की अधिकांश जिम्मेदारियों बड़ी बेटी पर आती है और वह बाकी भाई बहनों की परवरिश से लेकर सेवा सत्कार में अपनी मां और परिवार का सबसे ज्यादा हाथ बंटाती है। दूसरों की अपेक्षा बड़े बेटे को अधिक जिम्मेदारी उठानी पड़ती है और वह पिता की बची जिम्मेदारियों में सबसे अधिक हांथ बंटाता है। अपने भाइयों को पढ़ाने से लेकर कुंवारी बहनों के विवाह तक के मामले में उसकी महती भूमिका होती है और जब उसके छोटे भाई काबिल हो जाते हैं तो बड़ा अपने आपको ठगा हुआ महसूस करता है और उसकी तकलीफ केवल उसकी तकलीफ होती है। इसलिए विदेश सर्वे अपने पल्ले नहीं पड़ रहा है और हमारे लिए वह कोरी गप है।
शोध में कहा गया है कि स्वार्थी होता है घर का बड़ा बच्चा। अगर आपको मदद की जरूरत है, तो इस मामले में आप अपने सबसे बड़े बच्चे से मदद नहीं मांगे। अध्ययन में कहा गया है कि पहले पैदा हुआ बच्चा अपने छोटों के मुकाबले ज्यादा स्वार्थी होने के साथ ही मदद नहीं करने के इच्छुक होते हैं। मोंटपेलियर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह नतीजे निकाले हैं। उनका हमारे भारत में स्वागत है ताकि वे अपने शोध के तर्कों को यहां की कसौटी पर कसकर देखें और अपने को कटेक्ट करें। यहां तो कई बड़े भाई या बहन जिम्मेदारियों के बोझ से ऐसे दबे कि स्वयं उनकी शादी नहीं हुई और वे अपने से छोटों को काबिल बनाने और उनकी जिम्मेदारियों को उठाने में ही खप गये।

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