Thursday 4 March 2010

अश्लीलता और अंधविश्वास दोनों का विरोध एक साथ न हो

सरकार ने अश्लील और सनसनीखेज न्यूज कार्यक्रम दिखाने वाले 44 चैनलों को नोटिसें दी हैं। यह अच्छा है कि सरकार बेढंगे कार्यक्रम दिखाने को लेकर गंभीर है। लेकिन उसका जागना हमें तो बहुत रास नहीं आया। दो विपरीत ध्रुवों पर एक साथ नहीं चला जा सकता। अंधविश्वास के खिलाफ कारगर कदम उठाये जाने की कोशिश सराहनीय मानी जा सकती है क्योंकि टीवी की एक्सेस दूर दराज के गांवों तक है और टीवी के जरिये अंधविश्वास की बातें प्रचारित की जा सकती हैं। लेकिन यह भी देखना होगा कि उस पर अंकुश की भूमिका कैसी है क्योंकि कथा कहानियों को रोचक बनाने के लिए अंधविश्वास की महत्वपूर्ण भूमिका अहम होती है। अलबत्ता यह सही है कि उसे रियल्टी शो के तौर पर प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन जो चैनल एक फार्मूले के तहत भारत की एक या सदी तस्वीर पूरी दुनिया में परोस रहे हैं उसका क्या कीजियेगा। बालिका वधू, न आना इस देस लाडो जैसे धारावाहिक भले समाज सुधार का संदेश देते हों कि भारत की एक नकारात्मक छवि ही दुनिया के सामने पेश करते हैं। नया विकसित हो रहा भारत इन धारावाहिकों में नजर नहीं आता ऐसे में इस जंगल से मुझे बचाओ, स्प्लिटविला 3, बिग बॉस, सच का सामना, इमोशनल अत्याचार जैसे रियल्टी शो ही ऐसे हैं जिनमें आज के भारत की अच्छी बुरी जो भी तस्वीर सामने आती है। सरकार को अश्लीलता पर अंकुश की बचकानी जिद छोड़ देनी चाहिए। अंधविश्वास से लोगों को बचायें और आधुनिक बनने पर अश्लीलता की झिड़की दें दोनों काम एक साथ नहीं हो सकता।
अश्लीलता हर समाज में अलग अलग होती है। उसके सामाजिक परिप्रेक्ष्य किसी कार्य को श्लील या अश्लील बनाते हैं। जो समाज तेजी से विकास कर रहे हैं वहां शुरू शुरू में यह दिक्ततें आती हैं कि उसे खुलापन अश्लील नज़र आता है। खुलेपन और अश्लीलता में भेद किया जाना चाहिए। सच का सामना में यदि यौन सम्बंधों पर भी साफगोई से बात होती है तो वह अश्लीलता की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए। एक उदाहरण नयी फिल्म थ्री इडिएट्स का ले लें। कालेज परिसर में जो बातें दिखायी गयी हैं उसमें कई ऐसी हैं जो आम तौर पर समाज में अश्लीलता की श्रेणी में आ जायेंगी लेकिन वहां वह अश्लील नहीं हैं। हमारे देश में यौन सम्बंधों पर खुलकर बातचीत को अश्लील माना जाता है। कई लोग तो इसी आधार पर हंस जैसी पत्रिका की कहानियों और कई लेखों के निहितार्थ पर भी अश्लीलता का आरोप लगाते हैं। हमारे देश ऐसे दौर से गुजर रहा है जब एक तरफ़ इस पर विचार हो रहा है कि वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता दी जाये या नहीं अथवा समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में शुमार किया जाना तर्कसंगत होगा या नहीं। महानगरों में लिव इन रिलेशन की स्थितियां हैं ऐसे में यदि खुले तौर पर मुद्दों पर बातचीत होती है तो उसे अश्लील नहीं माना जाना चाहिए। चूंकि यह ऐसा मुद्दा है जिसे अपने देश की स्थितियों में स्पष्ट तौर पर परिभाषित नहीं किया जा सका है इसलिए इसका हवाला देकर कुछ टीवी चैनलों को लांछित करना गलत होगा।
यह वह देश हैं जहां गांवों में औरत के माथे पर से पल्लू का सरक जाना भी अश्लीलता की श्रेणी में आ जाता है और औरतों को जोर से हंसना भी। पल्लू सरक जाने को जघन्य मानकर कविताएं व शेर लिखे जाते हैं। लड़कों के बाल बड़े रखने और औरतों के जिन्स पहनने पर भी आपत्तियां दर्ज करायी जाती हैं। अश्लीलता पर जोर दिया जाने लगा तो तालिबानी नजरिये तक बात जा सकती है। जिस लड़की के साथ पूरी जिन्दगी बसर करनी हो विवाह पूर्व उसे देखने तक की इजाजत बड़ी मुश्किल से कई लोगों को मिलती है बातचीत करना तो दूर की बात है। अच्छा हो कि नैतिक गुरु अश्लीलता पर अपना प्रलाप बंद करें।

1 comment:

  1. मेरी समझ में आप ये कहना चाहते है कि

    "आधुनिकता में अश्लीलता निहित है"

    मेरा सोचना गलत भी हो सकता है मगर अगर आप ऐसा ही सोचते है तो आप गलत हैं

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