Wednesday 3 March 2010

ब्रिटेन में उजागर हुआ हमारा कलंक


ब्रिटेन की संसद वहां के कानून में परिवर्तन लाकर जाति आधारित असमानता को अवैध घोषित करने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। और पते की बात यह है कि यह हमारे कारनामों के कारण हो हवा रहा है। ब्रिटेन को यह 'ऐतिहासिक' कदम उठाना पड़ रहा है क्योंकि वहां रह रहे एशियाई समुदाय में इस तरह की असमानता के सबूत मिलें हैं।
शिक्षाविदों के समूहों ने इस विषय पर सर्वेक्षण किया था जिसमें पाया गया कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश मूल के लोगों में जाति आधारित असमानता पायी गयी है। ब्रिटेन वर्षों से कह रहा था कि ब्रिटेन में ऐसी असमानता नहीं है और इसलिए कानून में भी परिवर्तन नहीं किया जा रहा था लेकिन वहां की सरकार ने हमारे कलंक को स्वीकार कर लिया है और मान लिया है कि उनके देश में भी जाति के आधार पर असमानता है। इस संबंध में एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट अगस्त में पेश की गयी।
रिपोर्ट के आधार पर सरकार समानता कानून में संशोधन करने की तैयारी कर रही है ताकि जाति आधारित असमानता को वैसे ही दूर किया जा सके, जैसे लिंग, रंग, धर्म, उम्र और यौन रुके आधार पर असमानता को दूर किया गया है। नेशनल सेक्युलर सोसाइटी के कार्यकारी निदेशक कीथ पोर्टियस ने का कहना है कि सर्वेक्षण में पाया गया कि जाति आधारित असमानता के तहत भारत में लाखों लोगों को 'अछूत' समझा जाता था, इस देश में भी फैल गया है, जिस पर ध्यान ही नहीं गया था। विदेश में हमारे लोगों के कारनामों से कालिख पुत रही है। अपने देश में हम जातिवाद को जड़ से खत्म करने के बदले उसे बरकरार रखने की जुगत में हैं और उसके आधार पर आरक्षण पाने में अपनी ऊर्जा झोंक कर रहे हैं।
भारत यह न सोचे कि जातिगत भेदभाव को चुनाव हथकंडा बनाकर और उस पर राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेंक कर वह विश्व में अपनी आन बान शान का परचम लहरा सकेगा। आने वाले दिनों में जाति प्रथा जारी रहने पर हम पर दुनिया थूकेगी। मानवाधिकार हनन की यह पराकाष्ठा है।
हमें यह भी गौर करने की जरूरत है कि जातिगत भेदभाव के मामले में हम किन देशोंं के साथ खड़े हैं और इससे दुनिया भर में क्या संदेश जा रहा है। संस्कृति बहुत अच्छी चीज है और कहते हैं कि मनुष्य जहां भी जाता है अपनी संस्कृति ले जाता है और हम ब्रिटेन में अपनी संस्कृति का क्या ले गये हैं यह सामने है।

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