टैगौर के नाम पर बहुराष्ट्रीय कंपनी के पुरस्कार से विवाद पैदा हो गया है। इसके खिलाफ कई प्रमुख साहित्यकारों ने मोर्चा खोल लिया है और जमकर निन्दा की है। उनका मामना है कि इससे साहित्य के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू होगी और कम्पनियां साहित्य संस्कृति को नियंत्रित करने का प्रयास करेंगी। चूंकि साहित्यकार बाजार की ताकतों के खिलाफ लिखता है इसलिए इस तरह के आयोजन का विरोध होना चाहिए।उनका यह भी कहना है कि इससे साहित्य अकादमी की स्वायत्तता का उल्लंघन होता है। कुछ का कहना है कि जितना एक कम्पनी दे रही है उतना तो सरकार भी दे सकती थी।
कुल मिलाकर यह कि किसी कम्पनी के टैगौर के नाम पर अपने पैसे नहीं खरचने चाहिए या फिर खरचे भी तो किसी साहित्यकार को वह क्यों दे। किसी साहित्यकार को पुरस्कार-वुरस्कार लेना हो तो उसके लिए सरकार बैठी ही है। लाख-दो लाख किसी लेखक को यूं ही बांट देती है। बातें सुनने में बड़ी भली लग सकती हैं लेकिन जो लोग विरोध कर रहे हैं क्या वे यह स्वीकार करेंगे कि सरकारें जो पुरस्कार देती हैं वे निष्पक्ष होते हैं। उसमें किसी खास संस्कृति के प्रति लगाव व्यक्त नहीं किया जाता। क्या जुगाड़तंत्र से बाहर के लोगों से लिए पुरस्कार की कल्पना की जा सकती है? और इन सबसे बढ़कर किसी प्रतिबद्ध साहित्यकार को किसी भी सरकार से पुरस्कार लेना चाहिए? क्या उससे उसकी प्रतिबद्धता के प्रभावित होने के खतरे नहीं रहते।
पूरी दुनिया मेंं आज बिजनेस के फंडे बदले हैं और बिजनेस एथिक्स का विकास हो रहा है। इसके तहत बहुराष्ट्रीय कंपनियां यह जिम्मेदारी समझने लगी हैं कि उनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं होना चाहिए बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियोंं का भी उन्हें निर्वाह करना चाहिए। इसके तहत कंपनियां विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं में भी अपना पैसा खर्च कर रही हैं। यदि अब सैमसंग इसी के तहत अपना कुछ पैसा साहित्य पर खर्च करती है और टैगोर के नाम पर कुछ साहित्यकारों को पुरस्कार देती है तो हाय तौबा मचाने की बहुत आवश्यकता नहीं समझी जानी चाहिए। आखिर कोरिया की बहुराष्ट्रीय कंपनी सैमसंग इंडिया साहित्यकारों के कद का निर्धारण नहीं करने जा रही है। यह काम उसने साहित्य अकादमी को सौंपा है कि वह तय करे कि पुरस्कार किसे दिया जाये। किसी साहित्यकार को टैगोर के नाम पर पुरस्कृत करना टैगोर का अपमान कैसे है और किसी कम्पनी का अपना कार्यक्रम उसके अन्य कार्यक्रमों की तरह की पांच सितारा होटल मेंं हो तो यह अस्वाभाविक कैसे है, आदि प्रश्नों पर विचार किये जाने की आवश्यकता है।
इस सम्बंध में जो समाचार मिले हैं वे इस प्रकार हैं:
साहित्य अकादमी के इतिहास में पहली बार किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा पुरस्कार प्रायोजित करने को लेकर विवाद खडा हो गया है। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगौर की स्मृति में साहित्य अकादमी और कोरिया की बहुराष्ट्रीय कंपनी सैमसंग इंडिया मिलकर 25 जनवरी को राजधानी में आठ भाषाओं के लेखकों को पुरस्कार देने जा रही है। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कई लेखकों ने इस पुरस्कार का विरोध करते हुये इसके समारोह के वहिष्कार की भी घोषणा की है। पुरस्कार में 91 हजार रूपये की राशि प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिन्ह शामिल हैं। पुरस्कार कोरिया की प्रथम हिला द्वारा पंचतारा होटल ओबेराय में दिये जायेंगे।
अकादमी के सचिव अग्रहार कृष्णमूर्ति ने बताया कि कोरिया सरकार ने इस पुरस्कार की पहल की है इसलिये वहां की प्रथम महिला यह पुरस्कार दे रही हैं और सैमसंग कंपनी इसे प्रायोजित कर रही है। अकादमी का काम पुरस्कृत लेखकों का चयन करना है और शेष कार्य सैमसंग कपनी को करने हैं। अकादमी पुरस्कार प्राप्त लेखकों ने इस पर भी आपत्ति जतायी है कि ये पुरस्कार पंचतारा होटल में क्यों दिये जा रहे हैं साहित्य का पंचतारा संस्कृ ति से क्या लेना देना।
अकादमी पुरस्कार से सम्मानित वरिष्ठ कवि केदार नाथ सिंह, अशोक वाजपेयी, लीलाधर जगूडी, मंगलेश डबराल, राजेश जोशी, वीरेन डंगवाल और ज्ञानेन्द्र पति ने इसका विरोध किया है। नामवर सिंह, कृष्णा सोबती, जनसंस्कृति मंच के अध्यक्ष मैनेजर पांडेय, जनवादी लेखक संघ के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह और प्रगतिशील लेखक संघ के प्रसिद्ध आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी भी इस पुरस्कार का विरोध कर चुके हैं। इसके अलावा हिन्दी के करीब 20 लेखकों का एक संयुक्त बयान भी इस पुरस्कार के विरोध में आ चुका है।
जवाहर नेहरू विश्विविद्यालय में भारतीय भाषा केन्द्र के पूर्व अध्यक्ष केदारनाथ सिंह ने कहा कि अकादमी ने मुझे टेलीफोन पर समारोह में आने के लिये निमंत्रित किया था पर मैंने न जाने का फैसला किया है।
यह टैगौर का अपमान है और राष्ट्रीय स्वाभिमान के खिलाफ है कि कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी इस तरह का
पुरस्कार दे। अकादमी के सामने पहले भी इस तरह के कई प्रस्ताव आये थे पर उन्हें नहीं स्वीकार किया गया था। ललित कला अकादमी के अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध कवि अशोक वाजपेयी ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनी से टैगौर के नाम पर पुरस्कार प्रायोजित करने की क्या जरूरत है। क्या अकादमी के पास इतने पैसे नहीं है। टैगौर के नाम पर इतने पैसे तो सरकार भी दे सकती है1 मुझे समारोह के लिये निमंत्रण पत्र मिला है लेकिन मैं उसमें नहीं जाऊंगा। पब्लिक एजेंडा पत्रिका के संपादक एवं कवि मंगलेश डबराल ने कहा -सैमसंग द्वारा टैगौर के नाम पर पुरस्कार देना साहित्य में निजीकरण की शुरूआत है और इससे अकादमी की स्वायत्तता का भी उल्लंघन होता है। मैंने भी समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है। कवि वीरेन डगवाल ने कहा सैमसंग कंपनी द्वारा टैगौर के नाम पर पुरस्कार देने का मैं हरगिज समर्थन नहीं कर सकता। मुझे तो समारोह में भाग लेने के लिये कोई निमंत्रण भी नहीं मिला पर अगर मिलता भी तो मैं नहीं जाता। चर्चित कवि ज्ञानेन्द्रपति ने कहा कि यह साहित्य में खतरे की घंटी है। बाजार की ताकतें हर चीज को नियंत्रित करने लगी हैं। उन्होंने कहा -कल कविता भी उनकी शर्तों पर लिखी जायेंगी। मैं तो इसके विरोध में अकादमी को एक चिट्ठी लिखने जा रहा हूं। लीलाधर जगूडी ने कहा -मैंने तो बाजार की ताकतों के खिलाफ कविताएं लिखी हैं। मैं इस पुरस्कार का समर्थन नहीं कर सकता। यह टैगौर का अपमान है। गौरतलब है कि गुरुदेव के जन्म के 150 वर्ष पूरे होने पर अगले साल से यूनेस्को ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम मनाने का निर्णय लिया है।
भारत सरकार और बंगला देश ने भी संयुक्त रूप से टैगौर का 150 वां साल मनाने का निर्णय लिया है।
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