दिवंगत नेता ज्योति बसु की कलम और जूते संरक्षित किये जायेंगे ताकी आने वाली पीढ़ी उनसे प्रेरणा ले। कलम की बात तो भाई समझ में आ रही है। उसके बहुत कुछ लिखा गया होगा। बहुत से फैसलों पर मुहर लगी होगी। विचारों की अभिव्यक्ति वामपंथी राजनीति की धुरी है जिसका प्रतीक कलम है। लेकिन जूते। क्या राम जी की खड़ाऊं से प्रेरित मामला है। आखिर परम्परा कहीं न कहीं बड़ी भूमिका निभाती है। दिवंगत कामरेड को अपनी भी राम राम। अभी कुछ दिन पहले ही एकाएक कामरेड प्रकाश करात को भी समझ में आयी कि सम्प्रदाय या धर्म से वामपंथ को परहेज नहीं है बल्कि साम्प्रदायिकता से है। माक्र्सबाबा कह गये हैं धर्म अफीम है। अब करातबाबा का दौर है उन्हें अपना फंडा देने का पूरा हक है।
कथाकार सृंजय जी आजकल आप क्या लिख पढ़ रहे हैं। कभी आपने 'कामरेड का कोट' कहानी लिखी थी अब 'कामरेड के जूते' लिखने की बारी है।
साम्यवाद के प्रवर्तक कार्ल मार्क्स ने जोर देकर कहा था-'धर्म लोगों के लिए अफीम के समान है।' मार्क्स ने यह भी कहा था- 'मजहब को न केवल ठुकराना चाहिए, बल्कि इसका तिरस्कार भी होना चाहिए।' दो वर्ष पहले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने संविधान में बदलाव करते हुए धर्म को मान्यता दी। अब अपने कामरेडों को भी यह बात समझ में आ रही है तो अच्छी बात है।
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