Friday, 15 January 2010

पिछड़ों को उनके हाल पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए


अक्सर समाजिक कार्यकर्ता इस बात हिमायत करते दिखायी देते हैं कि ग्राम्यवासियों, आदिवासियों और आदिम प्रजाति के लोगों को उनके स्वाभाविक जीवन को जीने देना चाहिए और उसमें आधुनिक जीवन शैली से मेल खाती कोई छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। सुविधा और आधुनिक जीवन शैली और सुखसुविधाओं के मामले में तथाकथित पिछड़े अथवा उससे वंचित लोगों को आधुनिक और सुविधा सम्पन्न बनाने की कोशिश उनके लिए असुविधानजक है और उनकी मौलिकता छीनने की कोशिश भी। जो लोग प्रकृति के निकट हैं प्रकृति से उन्हें शक्ति मिलती है और वे शहरों में रह रहे सुविधा सम्पन्न लोगों की तुलना में अधिक स्वस्थ हैं। लेकिन वास्तविकता की कसौटी पर यह तर्क थोथे ही साबित होते हैं। ऐसा कहकर आदिवासियों की हिमायत करने वाले उनका ही नुकसान पहुंचा रहे हैं। प्रकृति का रूप कोमल और सुखद प्रायः कम ही होता है और प्रकृति की भयावहता अत्यंत विकराल। मनुष्य की प्रकृति के कहर से बचने की कोशिश बहुत पुरानी है और हमेशा जारी रहेगी।

संयुक्त राष्ट्र ने आदिम प्रजातियों पर हाल ही में जो आंकड़े दिये हैं वे भी उसकी पुष्टि करते हैं और प्रकृति के साहचर्य की वकालत करने वालों के लिए भी चौंकाने वाले हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के कई देशों में रहने वली आदिम प्रजाति के लोगों की आयु-संभाविता शेष जनसंख्या से कहीं कम है यानी वे दूसरों की तुलना में कम जीते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने अपने इतिहास में पहली बार आदिम प्रजातियों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आस्ट्रेलिया की आदिम प्रजाति और नेपाल में पाई जाने वाली किराती मूल प्रजाति के लोगों की औसत आयु अपने ही देश की दूसरी जनसंख्या से 20 वर्ष कम है। जबकि कनाडा में रह रहीं फर्स्ट नेशन, इनुइत और मेतिस प्रजातियों का अनुमानित जीवन काल अपने देशवासियों से लगभग 17 वर्ष कम है। औसत आयु कम होने के साथ ही इस रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है की दुनिया के तमाम देशों में रह रहीं इन आदिम प्रजातियों के लोगों को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें भी बनी रहती हैं।
इस रिपोर्ट के बाद यह तो समझ में आ ही जाना चाहिए कि भले आदिवासी यह कहें कि नहीं हमें वहीं रहने दो हम जहां हैं लेकिन उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता। जो उन्नत हैं उन्हें उनकी बेहतरी के लिए ठोस कदम उठाने की चाहिए। जो अपना भला-बुरा स्वयं नहीं सोच सकते उनके लिए वे क्यों ने सोचें जो सोचने में सक्षम हैं।

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