Friday 8 January 2010

नेहा सावंत की खुदकुशी कुछ कहती है!


पिछले हफ़्ते मुंबई में 11 साल की टीवी चाइल्ड स्टार नेहा सावंत ने फ़ांसी लगा कर अपनी जान दे दी। वह मुंबई में डोंबीवली इस्ट में साई दर्शन अपार्टमेंट में अपने परिवार के साथ रहती थी। नेहा ने टीवी पर बुगी वुगी जैसे डांस रियलिटी शो में भाग लिया था। वह आस-पास के डांस कांपिटिशन में भाग लेती थी और अच्छी डांसर थी। बूगी वुगी के अलावा उसने तीन और टीवी डांस कांपिटिशन में भी भाग लिया था। नेहा अपने घर में परदे के रॉड से लटकी मिली। उसने एक दुपट्टे को ही फ़ांसी का फ़ंदा बनाने के लिए इस्तेमाल किया था। उसकी मां टीचर हैं और पिता नरेंद्र एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं। माता-पिता ने बताया कि नेहा चूंकि एक बहत अच्छी डांसर थी। इसलिए वह सोसाइटी में काफ़ी लोकप्रिय थी। हमने यह देखा था कि इस कारण से उसकी पढ़ाई प्रभावित होने के कारण हमने उसके बूगी वूगी में भाग लेने पर रोक लगा दी थी। उसकी डांस की क्लासेस भी बंद करा दी गयी थीं। जो उसकी हताशा का कारण बनीं और उसने खुदकुशी जैसे कदम उठा लिया।
यह खुदकुशी उन माता-पिताओं के लिए एक सबक है जो अपने बच्चों को अपना जैविक उत्पाद भर समझते हैं। बच्चों के भविष्य को शत-प्रतिशत अपने ढंग से निर्धारित करने का स्वप्न देखने वालों को यह भी सोचना चाहिए कि आवश्यक नहीं कि जो वे चाहेंगे वही होगा। जो बच्चा है पता नहीं उसमें कौन सा हुनर छुपा हो और वह समाज में क्या कुछ कमाल कर गुजरेगा। बच्चा भी उन्हीं की तरह इस दुनिया में एक स्वतंत्र सत्ता है और एक बच्चा किसी दूसरे बच्चों की तरह भी नहीं हो सकता कि पड़ोसी का बच्चा पढ़ने में अच्छा हो तो आपका भी बच्चा उसी दौड़ में शामिल कर दिया जाये। हमारे यहां तो पढ़ाई लिखायी की पारम्परिक पद्धति है उसके अलावा भी ज्ञान-विज्ञान, कलाओं की स्वतंत्र दुनियाएं भी हैं जिसका अभी या तो ठीक से विकास नहीं हुआ है या जो अभी रचना प्रक्रिया से गुजर रही हैं। मैकाले की शिक्षा पद्दति से बाहर भी शिक्षा की दुनिया हो सकती है। डाक्टर, इंजीनियर, क्लर्क, मैनेजर के अलावा भी रोजगार के कई विकल्प हैं। डिग्री बटोरने और शिक्षा की सुनिश्चित पद्दति से पढ़कर भेड़ों की तरह नौकरी के चक्कर लगाने के बाहर भी बच्चों का भविष्य हो सकता है। दूसरे उपयोगितावाद के बाहर भी जीने और काम करने की आवश्कता होती है। उसकी भी उपयोगिता समाज में होती है। बच्चों के भविष्य निर्धारण में अपने को सुझाव देने और सहयोग करने तक सीमित रखा जाना चाहिए। आखिर नेहा सावंत के माता-पिता नेहा को नृत्य की दुनिया से निकालकर क्या बना लेते? जो वे बनाना चाहते थे क्या उसकी गारंटी थी। बच्चे के अन्दर जो धुन थी क्या उसका स्वागत नहीं किया जाना चाहिए था। बच्चे की रुचियों को देखते हुए यदि उसे विकसित किये जाने का अवसर दिया जाये तो वे वह बन सकते हैं जो उनके अभिभावकों ने सोचा तक न होगा। यह एक बच्ची की निर्मम हत्या का उदाहरण है जो उसके माता-पिता ने की है। ज्यादातर घरों में चुपचाप ऐसी हत्याओं को अंजाम दिया जाता है जहां बच्चों के सपने चुरा लिये जाते हैं, छीन लिये जाते हैं। बदल दिये जाते हैं। और थमा दिया जाता है वह ध्येय जो उनके माता-पिता का होता है।

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