Saturday 2 January 2010

शशि थरूर जैसों को प्रोत्साहित किये जाने की ज़रूरत


ट्वीटर या दूसरी अन्य नेटवर्किंग वेबसाइट पर जनप्रतिनिधियों के आने की जो पहल विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने की वह न सिर्फ़ं स्वागत योग्य है बल्कि अनुकरणीय है। जो लोग जनता के प्रति सीधे जवाबदेह हैं उन्हें जवाब देने में विलम्ब भी नहीं करना चाहिए। अपनी बात कहने के लिए प्रेस कांफ्रेंसों और जनसभाओं का सहारा लेना एक पारम्परिक तरीका है जिसके दिन अब लदने चाहिए। जब इसके सहज सुलभ रास्ते हैं तो उन्हें क्यों नहीं अपनाया जाना चाहिए ताकि उनकी बात लोगों को जल्द से जल्द पहुंचे। इससे यह भी लाभ होगा कि लोगों की प्रतिक्रियाएं भी आयेंगी जिससे कहने वाले को यह पता चलेगा कि वह जिस किसी मुद्दे पर जिस तरह से सोच रहा है उसका लोगों पर क्या असर हो रहा है। हालांकि थरूर को बार-बार नसीहतें मिलती रहीं है कि भारत में सरकार के जो कामकाज की प्रक्रिया है उसमें इस तरह के अन्दाज को पसंद नहीं किया जाता और जो कुछ उन्हें कहना हो उसे सार्वजनिक तौर पर कहें। मंत्रालय में, आला कमान या पार्टी में विविन्न स्तर पर अपनी बात रखें। खास तौर अपनी असहमितियों के बारे में अपनी व्यक्तिगत राय।
दरअसल हमारे यहां लोगों की निजी अभिव्यक्तियों को अब तक बहुत सम्मान के साथ नहीं देखा जाता है चाहे वह जिस क्षेत्र में हो। यही कारण है कि लोगों की बहुत सारी बातों में अपनी कोई निजी राय बनती ही नहीं है क्योंकि उसका अनुकूल वातावरण नहीं है। हम जो कुछ कहते हैं वह भी अपना होते हुए भी सार्वजनिक ही होता है। एक व्यक्ति की बात दूसरे से बहुत जुदा नहीं होती। एक सामूहिक सोच यथास्थितिवाद का पोषक होती है और यह किसी भी समाज को आगे ले जाने में बहुत बड़ी बाधक भी। इसलिए थरूर जैसे व्यक्तियों को समर्थन किया जाना चाहिए जो सार्वजनिक हित के मुद्दों पर अपनी निजी राय व्यक्त करना चाहते हैं। हालांकि इसमें उन जानकारियों के खुलासा हो जाने का खतरा बना रहता है जिसे वक्त से पहले नहीं बताया जाना चाहिए किन्तु फायदों अधिक हैं और कम से कम राजनीतिक छद्माचार से कुछ तो निजात मिलेगी।

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