
चेतन भगत के उपन्यास पर बनी फ़िल्म को लेकर विवाद खड़ा हो गया है, जो अपने आपमें रोचक है। उपन्यास ‘फाइव प्वाइंट समवन’ बेस्टसेलर रह चुका है और उसकी जबर्दस्त बिकी है। इस पर फिल्म बनाने के बाद अब उस पर फिल्म बनाने वाले पछता रहे हैं और विवाद ओझे स्तर पर उतर आया है।
चेतन को तक़लीफ इस बात की है कि उनका नाम फिल्म में सबसे आखिर में जूनियर आर्टिस्टों के बाद यह कहकर दिया गया है कि उसकी कहानी उनके उपन्यास पर आधारित है। उन्हें उनका उचित श्रेय नहीं दिया गया। फ़िल्म की शुरुआत में कहानी के लिए राजकुमार हिरानी और अभिजात जोशी का नाम दिया जा रहा है जबकि चेतन भगत का नाम फ़िल्म के अंत में 'रोलिंग क्रेडिट' में दिया जा रहा है।
फ़िल्म के निर्देशक राजकुमार हिरानी ने कहा कि लेखक चेतन भगत झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने अनुबंधों के कागज़ात मीडिया को दिखाते हुए कहा, "हमने चेतन भगत की कहानी चुराई नहीं है, बल्कि हमने उनसे अधिकार ख़रीदे हैं।
इधर, राजकुमार हिरानी ने सबूत के रुप में मीडिया को अनुबंध के वो सभी कागज़ात दिखाए जिसके अनुसार चेतन भगत ने अपनी किताब 'फ़ाइव पॉइन्ट समवन' की कहानी में परिवर्तन के अधिकार निर्माता-निर्देशक को दे दिए थे। हिरानी के अनुसार उन्होंने चार घंटे लगाकर चेतन भगत को फ़िल्म की स्क्रिप्ट सुनाई थी और इसके बाद चेतन भगत ने उस दस्तावेज़ पर भी हस्ताक्षर किए थे जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने स्क्रिप्ट पढ़ ली है. फ़िल्म में रोलिंग क्रेडिट में जहां चेतन भगत का नाम दिखाया जा रहा है वहां नाम दिखाए जाने की हामी भरी थी। राजकुमार हिरानी ने यह भी कहा कि अनुबंध के अनुसार जो राशि चेतन भगत को दी जानी चाहिए थी वह दे दी गई बल्कि वह राशि भी उन्हें अग्रिम दे दी गई जो क़रार के अनुसार फ़िल्म के सफल होने के बाद दी जानी चाहिए थी।
सवाल यह है कि सब कुछ पहले से तय था और उसका जानकारी चेतन भगत को थी तो फिर वे अब हायतौबा क्यों मचा रहे हैं। वह इसलिए कि पहले वे शर्तें न मानते तो शायद बात फिल्म बनाने तक नहीं पहुंचती। दूसरे यह कि अब फिल्म चूंकि सफल मानी जा रही है और यह भी उम्मीद की जा रही है कि उसकी कहानी पर भी एवार्ड मिल सकता है तो उन्हें लग रहा है कि उस पर उनका कब्जा नहीं होगा। तीसरे यह कि चर्चा बटोरने से उनकी उपन्यास की भी बिक्री बढ़ सकती है और वे बाद भी इन सुर्खियों का लाभ उठा सकते हैं। यह बात दीगर है कि इस तरह के हंगामे के बाद कम ही फिल्मकार होंगे जो किसी किताब पर या किसी साहित्यिक कृति पर फिल्म बनाने की सोचेंगे।
स्वयं चेतन कह रहे हैं कि यह पूरी साजिश सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार पाने की है। फिल्म पुरस्कार समारोहों में यह फिल्म सर्वश्रेष्ठ कहानी के पुरस्कार की प्रबल दावेदार होगी। लिहाजा मुझे इससे महरूम रखने की कोशिश की जा रही है। फिल्म निर्देशक राजकुमार हिरानी, फिल्म निर्माता विधु विनोद चोपडा़, फिल्म में अभिनय करने वाले आमिर खान तीनों ने इस फिल्म का श्रेय अभिजात जोशी को दिया है उनका कहना है कि फिल्म की स्टोरी पर अभिजात ने तीन साल मेहनत कर उसकी पटकथा तैयार की है। फिल्म में कई ऐसे सीन हैं जिसका उपन्यास से कोई लेना-देना नहीं है। सच तो यही है कि पटकथा और कहानी दोनों एकदम अलग चीजें होती हैं और दोनों की भाषा भी अलग होती है। ऐसा भी होता है कि कई मामूली सी लगती कहानी अच्छी पटकथा के बूते श्रेष्ठ फिल्म बन जाती है और कई अच्छी कहानियां खराब पटकथा से दो कौड़ी की हो जाती हैं। विमल मित्र का उपन्यास साहब बीवी गुलाम और गुलशन नंदा का उपन्यास पढ़ने में उतना अच्छा नहीं था लेकिन पटकथा के कारण उन पर अच्छी फिल्में बनीं जबकि मुझे चांद चाहिए जैसा सशक्त उपन्यास पटकथा के लचर होने कारण लोगों को प्रभावित नहीं कर सका।
फिलहाल चेतन भगत की जो लड़ाई है उसका नैतिकता से ताल्लुक नहीं है बल्कि मामला व्यावसायिक लाभ में हिस्सेदारी का है। अच्छा होगा कि भगत इसे कानूनी तौर पर हल करें। ढिंढोरा पीटकर तो वे अपनी भद्द ही पिटायेंगे वरना फिल्म के नाम के तीन में एक वे स्वयं साबित होंगे बाकी दो विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हिरानी तो हैं ही।
यह स्तिथि अक्सर बनती है फिल्म के प्रदर्शन के बाद। ये भी संभव है कि चेतन को श्रेय दिए जाने के तरीके पर ऐतराज़ हो। इधर २६ दिसम्बर के इंटरव्यू में सुर कुछ और है चेतन का।
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