Monday, 28 December 2009
तिवारी प्रकरणः दोनों तरफ है विश्वसनीयता का संकट
एनडी तिवारी के सेक्स स्कैंडल ने देश के चेहरे पर मुस्कान ला दी। 85 साल के तिवारी जी अपने खिलाफ सेक्स स्कैंडल को झूठ बताते हैं। और उनका कहना है कि यह आंध्र में कुछ लोगों की मनगढंत साजिश का परिणाम है। तिवारी की मानें तो आंध्र में तेलंगाना का संघर्ष चल रहा है।
इसको लेकर वहां कुछ लोग राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के संभावित दौरे के सिलसिले में उनसे मिलना चाहते थे लेकिन उन्होंने मिलने से मना कर दिया था। वे लोग किसी प्रकार से राजभवन में अपनी घुसपैठ बनाने की कोशिश में जुट गए। हालांकि उन्होंने कुछ लोगों से मुलाकात भी की थी लेकिन कुछ लोग उनसे नाराज हो गए थे। उन्हीं लोंगों ने यह साजिश रची है। हालात जैसे हैं उससे तो यह लग रहा है कि यह सब साजिश है और सचमुच तिवारी जी को राजनीति से संन्यास लेने के बजाये अपना पक्ष लगातार रखना चाहिए। विश्व राजनीति में यों भी यौन सम्बंधों को लेकर बड़े बड़े मामले होते रहे हैं और उसे किसी के राजनीतिक करियर का समापन नहीं हुआ है। फिलहात तो लोग एक टीवी चैनल द्वारा दिखायी गयी विडियो के मजमून की चर्चा कर लुत्फ ले रहे हैं। किसी बहाने तो लोगों के चेहरे पर रौनक लौटी। बिल क्लिंटन की चर्चा को काफी दिन हुए भारतीय नेताओं की भी इस प्रसंग में चर्चा होती रहनी चाहिए। यह तिवारी का तड़का अच्छा है। रहा सवाल स्कैंडल का तो न तो आज सत्ता का सुख भोगने वालों के पतन की कोई सीमा रह गयी है ना विपक्ष के चारित्रिक पतन की। मीडिया के दुरुपयोग की घटनाएं भी अब आम हो गयी हैं। ऐसे में तिवारी पर लगे आरोपों की विश्वसनीयता संकट में है और सिर्फ नैतिकता की दुहाई देने से काम नहीं चलेगा और ना ही किसी के सत्ता पक्ष में होने से यह सिद्ध हो जाता है कि वही भ्रष्ट होगा।
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आंध्र प्रदेश के राज्यपाल श्री नारायण दत्त तिवारी जी के ऊपर लगाया गया आरोप गन्दा नहीं है । गंदे आदमी पर यह आरोप लग के आरोप शर्मिंदगी महसूस कर रहा होगा । श्री तिवारी जी आजादी की लड़ाई से आज तक दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी रहे हैं। उनका एक अच्छा उज्जवल व्यक्तित्व जनता के समक्ष रहा है दूसरा व्यक्तित्व न्यूज़ चैनल के माध्यम से जनता के सामने आया है । लखनऊ से दिल्ली , देहरादून से हैदराबाद तक का सफ़र की असलियत उजागर हो रही है । यह हमारे समाज के लिए लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बात है । भारतीय राजनीति में, सभ्यता और संस्कृति में इस तरह के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं लेकिन बड़े दुःख के साथ अब यह भी लिखना पड़ रहा है कि पक्ष और प्रतिपक्ष में राजनीति के अधिकांश नायको का व्यक्तित्व दोहरा है । इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए बस ईमानदारी से एक निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है बड़े-बड़े चेहरे अपने आप बेनकाब हो जायेंगे । गलियों- गलियों में हमारे वर्तमान नायको की कहानियाँ जो हकीकत में है सुनने को मिलती हैं। इन लोगो ने अपने पद प्रतिष्ठा का उपयोग इस कार्य में जमकर किया है जो निंदनीय है।nice
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