सादगी परस्त ममता बनर्जी ने सबसे मलाईदार विभाग रेलमंत्रालय ही चुना था जो लालू प्रसाद की भी पहली पंसद था। लेकिन जैसे ही वे रेल मंत्री बनीं अपने पहले के रेल मंत्री लालू की तारीफ करने के बदले उनकी बुराई खोजनी शुरू की और इस हद तक पहुंचीं कि बाकायदा उनके कार्यकाल पर श्वेत पत्र जारी कर दिया। कहा कि लालू का रेलबजट छलावा था और आंकड़े छलावा हैं। रेलवे को मुनाफा हुआ ही नहीं। लालू खामखाह अपने रेल बजटों पर तालियां बजवाते रहे हैं। जनता ने कहा वाह ममता दी वाह। क्या बात कही आपने। आप ही हैं जनता की असली आवाज। आपने लालू जी के छल को सामने रखा। वाह अभी निकली नहीं थी कि आह वाह कहने वालों के मुंह से आह निकलने जा रही है। इस बात के संकेत मिले हैं कि पांच साल तक जिस लालू जी की वजह से आम लोगों के लिए रेल का किराया नहीं बढ़ रहा था और वह बढ़ने जा रहा है। ममता जी आपकी सच्चाई तो लालू जी से अधिक जनता को भारी पड़ रही है। आपसे तो लालू जी का सच ही भला था।
रहा सवाल संप्रग सरकार का तो लालू ने संप्रग सरकार में रहकर बतौर रेलमंत्री अपनी इमेज को दुरुस्त किया था लोकप्रियता हासिल की थी। बाद में जब उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में संप्रग सरकार के बनने और मनमोहन सिंह के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये थे तो यह आवश्यक हो गया था कि कांग्रेस उन्हें आईना दिखाये। उसे एक कटुनिन्दक चाहिए था तो वह ममता के रूप में सामने आया है। दूसरे ऐसा लगता है कि ममता स्वयं अपने ही चलाये तीर से घायल होने जा रही हैं क्योंकि आम जनता की निगाह में रेल किराये में वृद्धि के बाद पहले जितनी प्रिय नहीं रह जायेंगी।
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