Monday 12 October 2009

अपने गांधी जी के लिए नोबेल की जरूरत क्यों है?

मरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को शांति का नोबेल पुरस्कार क्या मिला हम कलेजा कूटने लगे हाय हमारे बापू को नहीं मिला और उस मुंए ओमाबा को मिल गया जिसने अभी तक ख़ास ऐसा कोई काम किया ही नहीं। अभी वह यह बताता रह गया कि वह दुनिया में करना क्या चाहता है। आलोचकों का कहना है कि अभी तो लोग उसके अमरीका के राष्ट्रपति बनने के जश्न से उबर भी नहीं पाये थे यह सौगात उसे पकड़ दी गयी और नोबेल एक झुनझुना हो गया जिसे किसी के भी हाथ में पकड़ाया जा सकता है। गोया ओबामा को नोबेल इस सदी का एक महान लतीफा हो गया है।

तो बंधु अपने भारतीय लोगों को इसमें मातम मनाने की आवश्यकता क्या है कि गांधी जी को नोबेल नहीं दिया गया और वह उसके सही हक़दार थे। वह कैसे उसके सही हक़दार थे जब पांच पांच बार उनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिए आगे बढ़ा और किसी न किसी कारण से उन्हें इस पुरस्कार के आयोग्य ठहरा दिया गया। गौरतलब वह टिप्पणियां हैं जिनके कारण नोबेल नहीं दिया गया। उन टिप्पणियों से साफ़ ज़ाहिर है कि गांधी जी जैसे कद के मनुष्य की कल्पना तक पुरस्कार देने वालों ने नहीं की थी। मनुष्य के आचार विचार और कर्म के जो भी सीमाएं नोबेल के आदर्शों के लिए मानक मानी गयी थीं और कोई ऐसा शख्स था जिसके आगे वह परिधियां बौनी साबित हो गयी तो इसमें हमें दुखी होने का कोई कारण नहीं होना चाहिए। आखिर गांधी जैसे लोग आमतौर पर तो नहीं हो सकते। नोबेल के निर्णायकों के लिए गांधी जी के व्यक्तित्व के बहुआयामी पहलू परेशान किये रहे। वह तय ही नहीं कर पाये कि उन्हें साधू-संत की श्रेणी में रखें, एक समाज सुधारक की श्रेणी में रखें या एक राजनेता की सरणी में। उनका हर रूप अपने आप में बेजोड़ था और एक रूप अपनी ही परिधियों को तोड़ता भी रहता था। नोबेल जैसे पुरस्कार ऐसे व्यतिक्रमी विभूतियों के लिए नहीं हैं जिनकी सीमाओं की कोई ओरछोर ही न हो और वह कई मोर्चों पर मनुष्यता के लिए सक्रिय रहते हुए भी आम आदमी बना रहे।

और लानत है ऐसे नोबेल पुरस्कारों पर जो गांधी जी जैसे व्यक्तियों के लिए अपनी सीमाओं में फेरबदल करने को तैयार न हों। हमें मनुष्यता के लिए किये गये श्रेष्ठ कार्यों के लिए स्वयं ऐसा पुरस्कार गांधी जी के नाम पर क्यों स्थापित नहीं करना चाहिए जो मानवता की सेवाओं के लिए अपनी स्वयं अपनी ही सीमाओं का अतिक्रमण करने का माद्दा रखे।

नोबेल पुरस्कार के लिए गांधीजी का नाम वर्ष 1937, 1947 और उनकी मौत के बाद 1948 में अंतिम सूची में शामिल किया गया था, जबकि दो बार और वे नामांकित हुए थे। लेकिन उन्हें पुरस्कृत क्यों नहीं किया गया उसमें एक टिप्पणी पर गौर करें। वर्ष 1937 में नोबेल समिति के सलाहकार ने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में एक शांति कार्यकर्ता और राजनीतिक नेता की गांधीजी की दोहरी भूमिका की आलोचना करते हुए लिखा, "वह एक महात्मा हैं लेकिन अक्सर अचानक ही एक आम राजनेता बन जाते हैं।" अर्थात उन्हें इकहरी भूमिका वाला व्यक्ति चाहिए था। चयन समितियों ने गांधी जी को नोबेल न मिलने के कई कारण बताए जिसमें एक यह भी था कि 'वह अत्यधिक भारतीय राष्ट्रवादी थे'। वोर्म मुलर ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा कि "गांधी जी 'सुसंगत रूप से शांतिवादी' नहीं थे और उन्हें यह पता रहा होगा कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनके कुछ अहिंसक आंदोलन हिंसा और आतंक में बदल जाएंगे।" अपने मुल्क को आज़ाद कराने के लिए सक्रियता यदि किसी को पुरस्कृत होने से रोकती है तो क्या ऐसे पुरस्कार की आवश्यकता किसी जागरुक व्यक्ति को है? एक समिति का विचार था कि 'गांधी असल राजनीतिज्ञ या अंतरराष्ट्रीय कानून के समर्थक नहीं थे, न ही वह प्राथमिक तौर पर मानवीय सहायता कार्यकर्ता थे तथा न ही अंतरराष्ट्रीय शांति कांग्रेस के आयोजक थे।' कहना न होगा कि यह सब गांधीजी की सीमाएं नहीं हैं बल्कि यह उनका विस्तार है और यही वह बातें हैं जो गांधी जी को सदैव प्रासंगिक बनाये रखेंगी। यह आलोचनाएं ही दरअसल गांधीजी की प्रशस्तियां हैं और बताती हैं कि नोबेल पुरस्कार के आदर्श गांधीजी के आदर्शों से कितने बौने हैं।

और रही बात ओबामा की तो स्वयं ओबामा गांधी जी के व्यक्तित्व के फैन हैं और इसे वह खुलकर स्वीकार भी करते हैं। क्या हमारे लिए यह गौरव की बात नहीं है कि ओमाबा को मानवता की सेवा के कार्यों नहीं बल्कि संकल्पों और उनकी स्वप्नदर्शिता को दिया गया है, जिसमें गांधी जी के आदर्शों को भी पर्याप्त जगह मिली हुई है। ओबामा जैसे युवा और स्वप्नद्रष्टा को पुरस्कृत किया जाना इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि वह अपने ही देश के पूर्व सत्ताधारियों से हटकर मानवता की सेवा की वैश्विक नीतियों के निर्माण में आपना योगदान दें क्योंकि यह पुरस्कार उन पर नैतिक दबाव तो बनाता ही है। और बनायेगा भी। पुरस्कारों का औचित्य भी यही होना चाहिए कि वह पुरस्कार के लिए चयनित व्यक्ति के कार्यों की सराहना का ही कार्य न करे बल्कि उसे और श्रेष्ठ कार्यों को लगन से करने को प्रेरित करे। इस लिहाज से ओमाबा को दिया गया यह पुरस्कार औचित्यपूर्ण है और प्रशंसनीय भी। जिनका नाम लेकर और जिनकी राह पर चलकर लोग नोबेल पुरस्कार के हक़दार बन जाते हों उसे क्या किसी नोबेल पुरस्कार की आवश्यकता है?


3 comments:

  1. एकदम सही कहा आपने , साथ ही यह भी कहूंगा कि जिस तरह इस पुरुष्कार को इनके संचालको ने एक आम पुरुष्कार की तरह बना दिया है, उससे तो यदि सचमुच हम महात्मा गांधी का आदर करते है तो इससे उनको नवाजकर उनका अपमान ही करेंगे !

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