Sunday, 22 December 2013

कविता और दर्शन के मूल्य तत्व प्रेम और दुख हैं-शंभुनाथ


कोलकाता :'यदि कोई अपने लिए कविता लिखता है तो वह सार्वजनीन भी हो जायेगी, लेकिन जो दूसरों के लिए ही लिखता है वह कई बार ठीक- ठाक कविता लिख ही नहीं पाता। इसलिए कविता की विश्वसनीयता कवि के अपने दुख-सुख से जुडऩे से भी सम्बंधित है। कविता का स्वभाव ऐसा है कि वह एक के दुख को दूसरे के दुख से जोड़ती है।' यह बात कही आलोचक एवं कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ.शंभुनाथ ने। वे शनिवार की शाम मुकुंद अपार्टमेंट, बालीगंज में आयोजित एक कवि गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि चाहे व कविता हो या दर्शन, उनका सम्बंध मूल तौर पर दो ही चीजों से है-एक है प्रेम, दूसरा है दुख। इन दोनों के निजी अनुभव की अभिव्यक्ति भी निजी नहीं रह जाती, यह व्यापक समुदाय से जोड़ती है। गोष्ठी में डॉ.गीता दूबे, राज्यवर्धन, डॉ.अभिज्ञात, विमलेश त्रिपाठी, निर्मला तोदी, रितेश पांडेय, निशांत, जीवन सिंह, जयप्रकाश एवं विजय गौड़ ने अपनी कविताओं का पाठ किया।

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