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Friday, 10 January 2014

यदि कुछ अच्छा लगता है तो यह बड़ी बात है-केदारनाथ सिंह

कोलकाता : 'आज तब कि हर ओर निराशा और हताशा कि स्थिति है और तमाम दिशाओं में तोड़-फोड़ मची है ऐसे में यदि कुछ अच्छा लगता है तो बड़ी बात है। निर्मला तोदी का कविता संग्रह 'अच्छा लगता है' बहुत सी सकारात्मक बातों व आश्वस्ति की किरण के साथ उपस्थित है। इसमें आशा के अंखुए हैं, जो इस बात के द्योतक है कि वे अपने अगले काव्य संग्रह में बहुत कुछ महत्वपूर्ण जोड़ेंगी।' यह कहना है प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह का। वे निर्मला तोदी के काव्य संग्रह का लोकार्पण करने के बाद सभा को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि किसी छठे सातवें दशक में बांग्ला कवि सुभाष मुखोपाध्याय ने लिखा था 'मुझे अच्छा नहीं लगता'। कई दशक बाद जब कोई कवि कहता है अच्छा लगता है तो यह नयी बात है। चलो कुछ तो सकारात्मक है, जो जीवन को नयी ऊर्जा देता है। 
आलोचक और कलकत्ता विश्वविद्यालय को प्रोफेसर डॉ.शंभुनाथ ने कहा कि निर्मला जी की कविता में उनके भीतर एक और स्त्री के होने का अनुभव है। यह वह स्त्री है, जो घर परिवार के बीच रहते हुए और उसे सजाते-संवारते हुए भी एक स्वतंत्र व्यक्तित्व की तलाश में है। स्त्री की अपनी आवाज का होना एक बड़ी बात है, जो उनकी कविता को अर्थवान बनाता है। किसी स्त्री को कविता लिखना अच्छा लगे तो यह इस बात का संकेत है कि उसमें स्वतंत्र व्यक्तित्व का बनना प्रारंभ हो गया है। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से नंदन परिसर के जीवनानंद सभागार में शुक्रवार की शाम आयोजित इस समारोह में कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ.सोमा बंद्योपाध्याय, पत्रकार डॉ.अभिज्ञात, स्काटिश चर्च कालेज की प्राध्यापिका प्रो.गीता दूबे, प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ.जय कौशल ने संग्रह की कविताओं पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन युवा कवि निशांत ने किया। इस अवसर पर बालकिशन तोदी ने निर्मला तोदी का सम्मान किया। धन्यवाद ज्ञापन किशन तोदी ने किया।

Sunday, 22 December 2013

कविता और दर्शन के मूल्य तत्व प्रेम और दुख हैं-शंभुनाथ


कोलकाता :'यदि कोई अपने लिए कविता लिखता है तो वह सार्वजनीन भी हो जायेगी, लेकिन जो दूसरों के लिए ही लिखता है वह कई बार ठीक- ठाक कविता लिख ही नहीं पाता। इसलिए कविता की विश्वसनीयता कवि के अपने दुख-सुख से जुडऩे से भी सम्बंधित है। कविता का स्वभाव ऐसा है कि वह एक के दुख को दूसरे के दुख से जोड़ती है।' यह बात कही आलोचक एवं कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ.शंभुनाथ ने। वे शनिवार की शाम मुकुंद अपार्टमेंट, बालीगंज में आयोजित एक कवि गोष्ठी को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि चाहे व कविता हो या दर्शन, उनका सम्बंध मूल तौर पर दो ही चीजों से है-एक है प्रेम, दूसरा है दुख। इन दोनों के निजी अनुभव की अभिव्यक्ति भी निजी नहीं रह जाती, यह व्यापक समुदाय से जोड़ती है। गोष्ठी में डॉ.गीता दूबे, राज्यवर्धन, डॉ.अभिज्ञात, विमलेश त्रिपाठी, निर्मला तोदी, रितेश पांडेय, निशांत, जीवन सिंह, जयप्रकाश एवं विजय गौड़ ने अपनी कविताओं का पाठ किया।
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