Friday 14 May 2010

फिल्म ब्लड मंकी देखकर: एक अच्छी कहानी का अन्त कैसा हो?


अंग्रेजी फिल्म रॉबर्ट यंग निर्देशित 'ब्लड मंकी' एक वैज्ञानिकों के खोज से जुड़ी प्रक्रिया पर बनी है। दुर्भाग्य से ऐसे विषयों पर अपने यहां फिलहाल फिल्म बनने की कल्पना नहीं की जा सकती। हिन्दी या भारतीय फिल्में बहुत कुछ कर सकती हैं तो इतना कि उसकी कहानी व दृश्यों को झाड़ लें और चोरी पकड़ी जाने पर उससे प्रेरणा लेना कहकर अपने मौलिक होने की साख को बचाये रखने की हास्यास्पद कोशिश करें।
हालांकि 'ब्लड मंकी' की कहानी उत्कृष्ट है लेकिन अन्त का सफल निर्वाह नहीं हो पाया है। पता नहीं कहानीकार की कमी है या कहानी के साथ छेड़छाड़ करते हुए निर्देशक ने उसका कबाड़ा कर दिया है, जैसा विकास स्वरूप की कहानी स्लमडाग मिलेयनियर के साथ हुआ है।
कहानी में वैज्ञानिक एक ऐसी प्रजाति की खोज एक ऐसे जंगल में कर रहा होता है जहां मनुष्य पहले नहीं गया था। वैज्ञानिक छात्र-छात्राओं को यह कहकर उस जंगल में ले जाता है कि तुम्हें जंगल में नयी चीजों को देखना और लिखना है, जो पाठ्यक्रम का हिस्सा होगा। लेकिन चालाकी पूर्वक छात्रों के वापस लौटने का रास्ता बंद कर देता है। वहां मनुष्य और बंदर के बीच की प्रजाति की उपस्थिति के प्रमाण उसे मिला था जिसकी वह पुष्टि करने का प्रयास करता है। इस बीच रहस्यमय तरीके से कई छात्रों की मौत हो जाती है। अन्तत: वैज्ञानिक छात्रों को बताता है कि वह जानता है कि उनकी जान का खतरा है फिर भी वह शोध के बिल्कुल करीब पहुंच चुका है और शोध होने पर कुछ लोगों की मौत मनुष्य जाति के इतिहास में कोई माने नहीं रखती। और अंतत: स्वयं वैज्ञानिक 'ब्लड मंकी' के हाथों मारा जाता है। छात्रों के सामने ही उसकी मौत हो जाती है। उसके बाद बचे छात्र शोध को आगे बढ़ाने का कतई प्रयास नहीं करते और वापस भागना चाहते हैं और भागते हुए ही 'ब्लड मंकी' के हाथों मारे जाते हैं। अन्त तक दर्शकों को आशा बनी रहती है कि छात्रों के नजरिये में बदलाव आयेगा और वे अपने गुरु के प्रति अपना नजरिया बदलते हुए शोध को आगे बढ़ायेंगे लेकिन ऐसा नहीं होता। क्या सचमुच शोध के प्रति सारे के सारे छात्रों का नजरिया एक जैसा होता है। किताबें पढऩा, अच्छे नम्बर पाना और बड़े पद और पैसा हासिल करना ही शोध की नियति है। अच्छा तब लगता कि उन छात्रों में से कोई छात्र-छात्रा शोध को आगे बढ़ाने की कोशिश में मारा जाता। एक अच्छी कहानी का अन्त ऐसा ही होना चाहिए था और एक अच्छी वास्तविकता का भी।
यह अमेरिकी हॉरर फिल्म है जिसे टीवी के लिए बनाया गयाथा। 2008 की यह फिल्म रॉबर्ट यंग ने निर्देशन किया है। जिसे थाईलैंड में फिल्माया है। फिल्म के छह छात्रों का एक समूह अफ्रीका में पढ़ाई के बाद प्रोफेसर हैमिल्टन के यहां जाते हैं। हैमिल्टन प्रोफेसर के रूप में एफ मूर्रे इब्राहीम ने शानदार अभिनय किया है।

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