Friday, 12 February 2010

यदि विवाह को इतिहास होने से बचाना हो!

वह दौर भी आयेगा जब शादियां इतिहास हो जायेंगी। समाज अपने विकास के क्रम में व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए मानक गढ़ता है। मानकों के पालन के लिए कुछ अनुशासन भी तत्कालीन समाज द्वारा गढ़ जाते हैं। अथवा प्रथाओं में से कुछ समयानुकूल आदर्शों को चुनकर उनकी पुनस्र्थापना की जीती है। अब होता यह है कि कालांतर में नियमन का अनुशासन कठोर होता जाता है और जब नयी पीढ़ी द्वारा उनका अनुपालन कठोर हो जाता है तो नये विचार वाले लोग उस अनुशासन को तोडऩे में लग जाते हैं जो स्वाभाविक है। क्योंकि जीवन को व्यवस्था देने के लिए ही वे सिद्धांत गढ़ गये थे। जो भी नियम, सिद्धांत या अनुशासन सहज स्वभाव व सहज गति में अवरोधक बनता है उनका कभी न कभी टूट कर बिखरना तय है और उसकी नियति भी। नियमों में लचीलापन ही उसे बचाने और सदैव प्रासंगिक बनाये रखने में सहायक होता है।
विवाह दुनिया की सबसे पुरानी संस्था है जो हर समाज में किसी न किसी रूप में विद्यमान रही है। प्राचीनता के कारण बंद समाजों में सबसे अधिक कठोरता भी विवाह को लेकर रही है।
अपने देश में विवाह से इतने में मामले जुड़ गये हैं कि इस रिश्ते ने अपनी सहजता खो दी है। जाति, धर्म, कुल, दिशा, कद-काठी, रूप-रंग, लेनदेन, शिक्षा, कुंडली तो लगभग आवश्यक बातें हैं जिनका मनोनुकूल मिलान ज्यादातर मामलों में किया जाता है। कुछ मिलाकर विवाह बड़े से बड़े व्यक्ति के लिए भी हौवा हो गया है। सहज सम्बंध की बातें तो गौड़ हो गयी हैं। और प्यार-व्यार जैसी बातों को बहुत कम तरजीह दी जाती है और जो करते हैं उन्हें समाज में स्वीकृति पाने में काफी समय लग जाता है और कई जिन्दगी भर सामाजिक बहिष्कार झेलते हैं। आज भी विवाह के कई मामलों में आनर किलिंग की घटनाओं गांव देहात में आम हैं। स्वाभाविक है कि कई लोग मन से विवाह जैसी प्रथा के ही खिलाफ हो जाते हैं। भारत में पढ़ी लिखी आर्थिक तौर पर स्वावलम्बी कई महिलाएं एकल जीवन को ही पसंद करती हैं क्योंकि वे विवाह करके घर में चौबीस घंटे का एक मालिक नहीं चाहतीं।
ब्रिटेन में विवाहों की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़ों से खुलासा हुआ है कि ब्रिटेन में वर्ष 1862 के बाद से विवाहों की संख्या अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। विवाहों की संख्या में कमी आने के कारण ब्रिटेन की ग्राडन ब्राउन सरकार को इन आरोपों का सामना करना पड़ रहा है कि वह विवाह संस्था को प्रोत्साहित करने में नाकाम रही है। यह पता चला है कि वर्ष 2008 में परम्परागत धार्मिक रीति रिवाजों से सम्पन्न होने वाले विवाहों की संख्या अन्य तरीकों से किए जाने वाले विवाहों का मात्र एक तिहाई थी।
पारिवारिक वकीलों के एक संगठन रिजोल्यूशन के उपाध्यक्ष डेविड एलिसन ने कहा कि एक साथ रहने वाले अविवाहित युगलों को विवाह के कानूनी फायदे मिलने चाहिए। विवाह किए बगैर एक साथ रहने वाले युगलों की संख्या में इजाफा हो रहा है। ब्रिटेन के एक गिरजाघर के प्रवक्ता ने कहा कि आज के युगल विवाह को अपने संबंधों की पूर्णता के रूप में देखते हैं। विवाह को एक गंभीर प्रतिबद्धता माना जाता है।
कहना न होगा कि यह सिर्फ एक देश का मामला नहीं है। लीव इन रिलेशन कई देशों में प्रचलित है और अपने देश में यह दस्तक रिश्ता अपना रूपाकार ग्रहण कर रहा है। इतना ही नहीं देश में समलैंगिक रिश्तों पर से पाबंदियां हटाने की ओर कदम बढ़ाये जा रहे हैं।
इसकी झलक इस बार के इस बार वैलेंटाइन डे पर 'गे' और 'लेसबियन' के लिए विशेष कार्ड के प्रचलन से देखी जा सकती है। इस बार वेलेंटाइन डे पर कुछ अलग ही नजारा देखने को मिला। दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक संबंधों को मान्यता दिए जाने के बाद पहली बार बाजार में कंपनियों ने 'गे' और 'लेसबियन' जोड़ों को ध्यान में रखते हुए गिफ्ट प्रोडक्ट बाजार में उतारे, जिनमें ग्रीटिंग कार्डों को प्रमुखता दी गयी।
प्रमुख ग्रीटिंग कार्ड कंपनी आर्चीज के संयुक्त प्रबंध निदेशक प्रमोद अरोड़ा ने एक समाचार एजेंसी को बताया कि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाये जाने के फैसले के बाद से समाज में इसकी स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। इसी सिलसिले में हमने पहली बार 'गे' और 'लेसबियन' कार्ड बाजार में उतारे।
अपने देश में विवाह नहीं विवाह के बाद कोई इस रिश्ते को बरकरार न रखना चाहे तो विवाह होने से बड़ी मुश्किलें विवाह विच्छेद में आती हैं। अनबन के कारण अलगाव के मुद्दों पर आमतौर पर सहमति नहीं बन पाती और कई बार दस साल के दाम्पत्य जीवन से छुटकारा पाने में बीस साल लग जाते हैं जिसके चलते अलग होने वाले जोड़ों को लिए फिर से नया दाम्पत्य जीवन बसाना असंभव हो जाता है। हिन्दू विवाह कानून के तहत तलाक की अदालती प्रक्रिया बेहद लम्बी है जिससे अलगाव चाहने वाले त्रस्त हैं। बेहतर यह होगा कि विवाह के रिश्ते को सहजता से लिया जाये और जाति, धर्म, लेन देन सहित तमाम मुद्दों को दरकिनार कर दिया जाये वरना न यह रिश्ता ही नहीं रहेगा और सारी गणनाएं धरी की धरी रह जायेंगी।

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