Sunday 6 December 2009

बेटी समाज में आदमी होने की तमीज है!

पिछले दिनों भारत के प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को व्हाइट हाउस में राजकीय भोज देने के संदर्भ में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि जिन कुछ भारतीय लोगों के साथ भोज करना पसंद करेंगे उनमें पश्चिम बंगाल के राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी भी हैं क्योंकि वे उन्हीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते हैं जिनके प्रशंसक खुद ओबामा हैं। ओबामा में गोपालकृष्ण से केवल राजनीति और मोहनदास करमचंद गांधी के लिए प्रशंसा को लेकर ही समानता नहीं है बल्कि दोनों ने ही किताबें लिखी हैं और दोनों की ही दो बेटियां हैं। मेरे एक मित्र ने इस पर तपाक से प्रतिक्रिया दी कि इसमें क्या है बेटियों का पिता तो मैं भी हूं। मैंने कहा इसमें नया इतना ही है कि ओबामा को बेटियों का पिता होने पर गर्व है।
जिन दिनों मैं इंदौर में वेबदुनिया में कार्यरत था वरिष्ट कवि चंद्रकान्त देवताले का फोन आया कि वे मुझसे मिलना चाहते हैं। उनसे मैं विशेष तौर पर इसलिए भी मिलना चाहता था क्योंकि उनके किसी कविता संग्रह में उनके परिचय में लिखा था कि वे बेटी के पिता हैं। सचमुच बेटी का पिता होना कोई कोई साधारण बात नहीं है। त्रिलोचन जी ने मुझसे एक निजी बातचीत में कभी कहा था कि केदारनाथ सिंह इसलिए अच्छी कविताएं लिख लेते हैं कि वे कई बेटियों के पिता हैं। बेटी का पिता होना एक ज़िम्मेदार और बेहतरीन इनसान बनने की काबिलियत पैदा करता है। बशर्ते वह उन पिताओं में से न हों जो सोनोग्राफी कराकर बेटियों की भ्रूण हत्याओं का समर्थक हो।
भारत में यदि दहेज जैसे सामाजिक अपराध पर काबू पा लिया जाय तो भारत में भी लोग बेटों की तुलना में बेटी को अधिक पसंद करेंगे। दहेज के कारण प्रताड़ना और हत्या की वारदातें ही चिन्ताजनक नहीं बल्कि उससे अधिक चिन्ताजनक है दहेज से बचने के लिये बेटियों की भ्रूण हत्या। जिसके कारण लिंग अनुपात तेजी से बिगड़ता जा रहा है, जो एक दिन हमारे समाजिक ढांचे को असंतुलित कर देगा।
वरना नये भारत में बेटियों की शक्ति जांची परखी जा चुकी है। बदलती सोच का ही नतीजा है कि पिता के नक्शेकदम चलते-चलते बेटियां भी अब फो‌र्ब्स के पन्नों पर अपनी जगह बनाने लगी हैं। वनिशा मित्तल, ईशा अंबानी और पिया सिंह ऐसे ही कुछ नाम हैं। यह तीनों अमेरिका की प्रसिद्ध बिजनेस पत्रिका फो‌र्ब्स द्वारा जारी अरबपती वारिसों की सूची में शीर्ष तीन स्थानों पर जगह बना चुकी हैं। वनिशा स्टील किंग लक्ष्मी निवास मित्तल, ईशा भारत के सबसे अमीर उद्योगपति मुकेश अंबानी और पिया सिंह दिग्गज रीयल एस्टेट कंपनी डीएलएफ के प्रमुख केपी सिंह की बेटी हैं। पिता से विरासत में मिली अरबों की संपत्ति इनके इस सूची में आने का आधार बनी है। इन सभी के पिता भी दुनिया के सर्वाधिक अमीरों की टाप टेन सूची में विराजमान हैं।
अपने प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह भी तीन बेटियों के ही पिता हैं। उनकी एक बेटी व दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर उपिंदर सिंह को हाल ही में सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए संयुक्त रूप से पहला इंफोसिस पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गयी है। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन की अगुवाई वाली सामाजिक विज्ञान पर बनी जूरी ने 50 लाख रुपए के इस पुरस्कार के लिए उपिंदर का चुनाव प्राचीन और मध्यकालीन भारत के इतिहासकार के रूप में उनके योगदान के लिए किया है। उनकी दो अन्य बेटियां हैं दमन सिंह और अमृत सिंह। अमृत सिंह अमेरिका में मानवाधिकार मामलों की संस्था अमेरिकन सिविल लिबर्टीज़ यूनियन (एसीएलयू) की वकील हैं जिन्होंने एक किताब लिखी है जिसमें अमेरिका के बुश प्रशासन को सीधे तौर पर क़ैदियों को प्रताड़ित करने का ज़िम्मेदार ठहराया गया है। 'एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ टॉर्चर' नाम की यह किताब उन्होंने एसीएलयू के ही दूसरे वकील जमील जाफ़र के साथ मिलकर लिखी है। यह दोनों ही वकील एसीएलयू की ओर से मानवाधिकार के विभिन्न मामलों में अमेरिकी सरकार के खिलाफ़ मुक़दमे लड़ते रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 28 अप्रैल 2008 को 'सेव द गर्ल चाइल्ड' की राष्ट्रीय बैठक का उद्घाटन करते हुए लड़कियों की रक्षा की भावुक अपील करते हुए कहा था कि उन्हें तीन पुत्रियों का पिता होने पर गर्व है।
इधर, 'न आना इस देश मेरी लाडो', 'अगले जनम मोहें बिटिया ही कीजो' और 'बालिका वधू' जैसे टीवी धारावाहिकों ने लड़कियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ़ पुरज़ोर आवाज़ बुलंद की है और समाज में उन पर हो रहे अत्याचारों के प्रति ध्यान आकृष्ट किया है, जो इस बात के प्रति आश्वस्त करता है कि समाज लड़कियों के दर्द को समझेगा और उनकी शक्ति को भी। शहरी निकायों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था करने वाला विधेयक हाल के संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा चुका है। लोकसभा में संवैधानिक (112वां संशोधन) विधेयक पेश करते हुए शहरी विकास मंत्री एस.जयपाल रेड्डी ने पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं की आरक्षित सीटें एक तिहाई से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने की घोषणा की और कहा है कि हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, तमिलनाडु, केरल, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने का समर्थन किया है। संविधान के 74 वें संशोधन के माध्यम से महिलाओं को राजनीति में बराबरी का हक देने के लिए पीवी नरसिंह राव के शासनकाल में (1992 में) पहल हुई थी। हालांकि इसका सपना पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सबसे पहले देखा था। राज्य विधानमंडलों और संसद में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण का प्रावधान करनेवाले विधेयक को शीघ्र पारित कराने की देश तैयारी कर रहा है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश सहित विभिन्न राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर लड़कियों के लिए शिक्षा और अन्य मामलों में सबलीकरण के लिए अलग-अलग योजनाएं बनाकर सुविधाएं दे रही हैं। उम्मीद की जाती है कि आने वाले समय में महिलाएं और सबल होंगी और बेटियों हमारे सबके लिए गर्व का विषय होंगी।
और अन्त में इंटरनेट की एक बात। जी हां, ‘बेटियों का ब्लॉग’ एक ऐसा ही ब्लॉग है जहां ब्लॉगर माता-पिता अपनी बेटियों के बारे में बातें लिखते हैं। दरअसल, यह एक सामुदायिक ब्लॉग है जहां एक ही छत के नीचे कई ब्लॉगर माता-पिता इकट्ठा होकर अपनी बेटियों के बारे में तरह-तरह की बातें लिखते हैं। कभी कवि धूमिल ने लिखा था "कविता भाषा में आदमी होने की तमीज़ है" मैं जोड़ना चाहूंगा "बेटी समाज में आदमी होने की तमीज है।"

3 comments:

  1. सही फरमाया आपने..दहेज़,सामाजिक असुरक्षा और अज्ञानता के कारण ही लोग बेटी नहीं चाहते...आज तेज़ी से परिद्रश्य बदल रहा है..बेटियों को स्वीकार किया जाने लगा है..बेटियों पर हमें नाज़ होना चाहिए...

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  2. हमारे लिए तो बेटी हमारे होने की पहचान है ....
    सार्थक लेख ...!!

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  3. बिलकुल सही कहा आपने मुझे तो अपनी बेटियों पर नाज़ है आज उनके कारण ही यहाँ हूँ। अच्छी पोस्ट है बधाई

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