Sunday, 4 October 2009

नीलामीः सेलिब्रिटी और पुरानी वस्तुएं

व्यापार की दुनिया में डिप्रिशिएशन शब्द प्रचलित है जिसका आशय यह है कि वस्तुएं पुरानी पड़ती जाती हैं, उनकी क्षरण होता है सो उसका मूल्य कम हो जाता है लेकिन यह जो नया बाज़ार है उसका चलन और तर्क हमेशा एक सा नहीं रहता। अब यह आपके तौर तरीकों पर है कि आप इस बाज़ार में कुछ बेच पाने का हुनर जानते हैं या नहीं। यदि जानते हैं तो नयी चीज़ों की तुलना में पुरानी चीज़ों को ऊंची कीमत पर बेच सकते हैं। जो अच्छे व्यापारी हैं उन्होंने यह हुनर आता है। उदाहरण के तौर पर कला जगत को ही ले लें। कई संघर्षशील चित्रकारों की उन कृतियों को कला की दुनिया के व्यापारी औने पौने दाम पर ख़रीद लेते हैं और फिर इन्तज़ार करते हैं उस कलाकार की किसी पेंटिंग के ऊंची कीमत पर बिकने का। जैसे ही उसकी कृतियों का भाव ऊपर ऊठता है वह बाकी को नीलामी में रख देते हैं। कृतियों का इतिहास रहा है कि अच्छे चित्रकारों की पुरानी पेंटिंग काफी ऊंची कीमत पर बिकी है। खैर.. किसी भी क्षेत्र में कोई भी व्यक्ति नाम कमा लेता है तो उसकी पुरानी वस्तुओं की कीमत भी अच्छी लगने लगती है। गांधी जी की वस्तुओं की नीलामी उसका उदाहरण है।
इधर एक टीवी शो आता है फरहा खान का तेरे मेरे बीच में। उसमें आमंत्रित सेलिब्रिटीज की वस्तुएं नीलामी के लिए रखी ली जाती हैं। आपको भी यह देखकर अजीब लगेगा कि वह सेलिब्रिटी अपनी टोपी, घड़ी, चांदी का झुमका जैसी वस्तुएं नीलामी के लिए देता है तो कोई अपना किसी फिल्म में पहना हुआ कोई कपड़ा। उन चीज़ों की कीमत महज इसलिए नये से हजार गुना अधिक मिल जायेगी क्योंकि वह किसी व्यक्ति विशेष से जुड़ जाती है।
जि़न्दा माइकल जैक्सन कर्ज़ में डूबा हुआ था किन्तु उसकी मौत ने उसे बहुत अमीर बना दिया क्योंकि उसकी मौत के बाद उससे जुड़ी वस्तुओं की कीमत बढ़ गयी है। यह वस्तु की कीमत वस्तु के कारण नहीं बल्कि माइकल जैक्सन से जुड़ने के कारण बढ़ी है।
लंदन में भारतीय मूल के उद्योगपति अरुण नायर सुनते हैं कि अपनी ब्रिटिश अभिनेत्री पत्नी लिज हर्ले के एक पुराने फ्लैट को ऊंची कीमत पर बेचने में लगे हैं। पता चला है कि यह एक कमरे का फ्लैट लिज हर्ले के पास उस समय था जब वह फिल्मों में संघर्ष कर रही थीं और थोड़ी सी कामयाबी मिलने के बाद उसे यूं ही छोड़ दिया था। यह लिज हर्ले के संघर्ष की निशानी की कीमत पांच लाख डालर लगायी गयी है। तो व्यापार का नुस्खा इसे कहते हैं..
वरना, मेरे उत्तर प्रदेश में हमारे परिवारों में तो रिवाज है कि हम किसी व्यक्ति के देहांत के बाद उसकी वस्तुएं दान कर देते हैं या विसर्जित कर देते हैं। कई बजुर्गों की तो लोग तस्वीरें तक जला देते हैं। उसकी कोई स्मृति न रहने पाये यह कोशिश की जाती है। हालांकि यह बात मुझे काफी दुख पहुंचाती है। कम ही परिवार और लोग होंगे जो अपने परिवार के दिवंगत लोगों की स्मृतियों को बचाकर रख पाते हैं। सामान्य लोगों के सम्बंध में तो खैर कोई बात नहीं लेकिन कोई कलाकार हो तो उसकी स्मृतियों की रक्षा की आवश्यकता महसूस की जाती है। आने वाले दिनों में स्मृतियों की कीमत लोग समझेंगे ऐसा मेरा विश्वास है ।क्या पता कोई व्यापारी निकल आये तो स्मृतियां महफूज़ रखने की अच्छी कीमत वसूल ले।

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