Sunday, 6 September 2009

नेता और जनताः उत्तर दक्षिण का फ़र्क


आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ड़ॉ.वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलिकाप्टर दुर्घटना में मौत के सदमे या उस ग़म में आत्महत्या की घटना से यह तो जाहिर कर दिया कि आज के दौर में भी राजनीति में ऐसे लोग हैं जिनके लिए उनके चाहने वाले जान दे सकते हैं। या फिर जिनकी मौत के सदमें से उनकी जान जा सकती है। यह भारतीय राजनीति का विरोधाभासी चेहरा है। एक तरफ हमारी संसद और विधानसभाओं में ऐसे नेता भरे पड़े हैं जिनकी काली करतूतों पर हमें शर्म भी आती है हताशा भी होती है। उनके दागदार दामन से लोकतंत्र के औचित्य पर ही कई बार प्रश्न चिह्न लग जाता है कि क्या लोकतंत्र की उपलब्धि यही है। ऐसे ही लोग हम चुनने को विवश हैं। दूसरी तरफ रेड्डी जैसे लोग हैं जिनकी मौत को आम जनता नहीं सह पा रही है।

यू भी दक्षिण भारतीय समाज इस मामले में देश के बाकी हिस्सों से भिन्न है। वहां व्यक्ति के प्रति श्रद्धा निवेदन व्यक्तिपूजा के स्तर तक पहुंच जाया करती है। कई दक्षिणभारतीय अभिनेता ऐसे हैं जिनके बाकायदा मंदिर बने हैं जिसे वहां की जनता ने बनवाया है। रजनीकान्त जैसे अभिनेताओं की फिल्म रिलीज के दौरान उनके कटआउट को दूग्धाभिषेक की खबरें हम पढ़ते रहते हैं।

उसके विपरीत उत्तर भारतीय नेता मायावती हैं, जो आम जनता के हित से जुड़े कोष के पैसे अपनी मूर्तियां बनवाने में खर्च कर रही हैं। उन्हें अपनी उस जनता पर भरोसा नहीं है कि वह उन्हें उचित सम्मान देगी। अपने जन्मदिन पर वसूली अभियान चलते रहने वाली इस नेता को हम रेड्डी के समकक्ष कैसे रख सकते हैं। खैर इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद भी मौतें हुई थीं लेकिन वह क्रुद्ध समर्थकों द्वारा की गयी हत्याओं के कारण हुईं जिनसे विद्वेष फैलता है नेता के प्रति प्यार नहीं दिखायी देता। देश में रेड्डी जैसे नेताओं की उपस्थित हमें निराश होने से बचाती रहती है। उत्तर भारत के नेताओं को सबक सीखने की आवश्यकता है। यह रेड्डी और ममता बनर्जी के व्यक्तित्व का ही करिश्मा है आज भी जो पार्टियों पर भारी है। उन्हें जनता को अपने पीछे लाने के लिए पार्टी के सहारे की ज़रूरत नहीं पड़ती वह व्यक्ति के करिश्मे से लोगों को अचम्भित करते रहे हैं।

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