Monday 2 September 2013

साहित्य व भाषा पर संवाद

संवाद गोष्ठी की औपचारिक शुरूआत के पूर्व बातचीत करते बाएं से कथाकार विजय शर्मा, पत्रकार-लेखक डॉ.अभिज्ञात, कथाकार सिद्धेश, आलोचक व कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ.अमरनाथ एवं भारतीय विद्या मंदिर तथा भारतीय संस्कृति संसद के अध्यक्ष डॉ.विट्ठलदास मूंधड़ा
कोलकाता : भारतीय विद्या मंदिर की ओर से भारतीय संस्कृति संसद में शनिवार की शाम आयोजित मिलन गोष्ठी में संस्था के अध्यक्ष डॉ.विट्ठल दास मूंधड़ा ने कार्यक्रम में विशेष तौर पर संम्बोधित किया। उन्होंने साहित्येतर विषयों पर हिन्दी में लिखी किताबों की कमी के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। अरुण माहेश्वरी ने कहा कि एक ही समय में अलग-अलग विचार समय मेंं लोग जीते हैं। जाग्रत मनुष्य ही समाज को आगे ले जाता है। गोविंद फतरहपुरिया ने ऐसे साहित्य के सृजन पर जोर दिया जो लोगों की जुबान पर पैठ सके। शारदा फतरहपुरिया कहा कि युवाओं से संवाद स्थापित करने के प्रयास किये जाने चाहिए ताकि उन्हें ठीक तरह से समझा जा सके। डॉ.अमरनाथ हिन्दी की स्थित पर चिंता जाहिर की और कहा कि बोलियों के भाषा बन जाने से हिन्दी कमजोर होगी। उन्होंने कहा कि अध्ययन आज टीम वर्क हो गया है और इतना कुछ छप रहा है कि किसी एक के बूते का नहीं है कि वह सब पढ़कर बता सके कि कहां क्या अच्छा लिखा जा रहा है। पढऩे वाले आपस में अच्छे लिखे की चर्चा कर सकते हैं। सिद्धेश ने कहा कि पत्रिकाओं के सम्पादक अब लेखकों को बहुत महत्व नहीं देते। प्रकाशनार्थ मिली रचना की बावती की बात तो दूर उसके प्रकाशन की स्वीकृति या उसके बाद उसके प्रकाशित हो जाने तक की जानकारी कई बार नहीं देते।
डॉ.शंभुनाथ ने संवादहीन की भयावहता की चर्चा की। उन्होंने कहा कि लोगों के पास दूसरे से सीधे संवाद के लिए समय नहीं है।
 लक्ष्मण केडिया ने कहा कि चौपाल अंदाज में आयोजित इस तरह के कार्यक्रम को बड़े स्तर पर किया जाना चाहिए।
डॉ.अभिज्ञात ने कहा कि आज के आधुनिक होते दौर में मनुष्य एकेला होता जा रहा है और इस अकेले होते जाते व्यक्ति का सबसे बड़ा सहारा साहित्य बनेगा। लोग अपने पड़ोसी और पास रह रहे मित्रोंं से बात भले न करें किन्तु वे इंटरनेट पर एक समाज तलाश करते हैं उनसे चैट करते हैं और एक आभासी दुनिया में अपने को लोगों से जुड़ा पाते हैं। ऐसे लोग जल्द ही साहित्य में अधिक दिलचस्पी लेने लगेंगे।
 डॉ.सोमा बंद्योपाध्याय ने अपनी भाषा को बचाने के प्रयास पर जोर दिया और कहा कि अंग्रेजी के बदले अपनी भाषा को प्राथमिकता देनी चाहिए। तारा दूग्गड़, काली प्रसाद जायसवाल,  सेराज खान बातिश ने भी सभा को सम्बोधित किया। राजीव हर्ष ने कहा कि अखबारों में साहित्य इसलिए कम प्रकाशित होता है क्योंकि पाठकों की दिलचस्पी उसमें कम है। यदि लोग उसे पढऩा चाहेंगे तो अखबार जरूर छापेंगे। डॉ. गीता दूबे, डॉ.वसुंधरा मिश्र, विजय शर्मा, विद्या भंडारी,रतन शाह आदि भी कार्यक्रम में विशेष तौर पर उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन वैचारिकी के सम्पादक डॉ.बाबू लाल शर्मा ने किया।

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