Thursday, 21 January 2010
राजनीति की एक मर्यादा भी होती है ममता जी!
तृणमूल सुप्रीमो और केन्द्रीय रेल मंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु की अंतिम यात्रा में शामिल नहीं। उन्होंने इस बात का परिचय दे दिया कि राजनीति उनके लिए लोकतांत्रिक आचार भर नहीं है, जिसका वे सांस्कृतिक सौजन्यतावश पालन करें। दिवंगत नेता बसु की अंतिम यात्रा में लाखों लोगों की ऐतिहासिक शिरकत से उन्हें इस बात का अन्दाजा तो लग ही गया कि वे इतने पापुलर नेता थे कि उस पर तमाम नेताओं को रश्क हो सकता है। स्वयं ममता क्राउड पुलर नेता हैं और इस बात को भली भांति समझती हैं कि जनता जिधर है लोकतंत्र की सारी शक्तियां उसी दिशा में प्रवाहित होती हैं। उन्हें यदि लोकतांत्रिक शक्तियों का इस्तेमाल कर देशवासियों के लिए कुछ करना है तो उन पद्धतियों का सम्मान करना होगा जो लोकतंत्र में गरिमामय मानी जाती हैं।
अब यदि ममता के रुख को माकपा नेता सीताराम येचुरी पश्चिम बंगाल की जनता का अपमान करार देते हैं तो गलत नहीं है। उल्टे यह सिर्फ बंगाल की जनता का ही अपमान कैसे है? क्या बसु जैसे नेता एशिया भर में दूसरा है? जो लोग सीधे-सीधे राजनीति से जुड़े नहीं भी हैं उनके मन में बसु की उपलब्धियों के प्रति सम्मान है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में दो दशक से अधिक अवधि तक मुख्यमंत्री रहने वाले व्यक्ति के प्रति सक्रिय राजनीति से जुड़े व्यक्ति के मन में तनिक भी सम्मान न हो तो यह उसके विवेक पर प्रश्न चिह्न लगाता है। अरे भई। एक क्षेत्र विशेष में कार्यरत हस्तियों के बीच आपसी नातेदारी नाम की कोई चीज तो होती है या नहीं। यूं भी कहा यह जाता है कि योद्धा का कद उसके शत्रु के आधार पर नापा जाता है। ममता की जद्दोजहद का निखार वामपंथी राजनीति के विकल्प के तौर पर ही तो देखा जायेगा लेकिन मर्यादाओं का ध्यान नहीं दिये जाने पर जनता उन्हें अपनी निगाह से गिरा भी सकती है।
किसी शायर ने लिखा है-'मुखालफ़त से मेरी शख्सियत संवरती है। मैं दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूं।' यह दुश्नन ही हैं जो किसी के कद को बड़ा बनाते हैं। एक मुझसे बातचीत में मेरे प्रिय कवि केदारनाथ सिंह ने मुझे समझाया था कि तुलसी की कविता अन्दाज सबसे जुड़ा इसलिए भी है कि उन्होंने अपनी बात कहने के लिए एक विशिष्ट शैली इजाद की। उन्होंने राम के कद को बढ़ाने के लिए रावण को महिमामंडित किया। क्योंकि वे चाहते थे कि दुनिया देखे कि रामजी ने जिस रावण को परास्त किया है उसका कद कितना बड़ा था।
ममता दी को अपने पास ऐसे लोग ही नहीं रखने चाहिए जो क्रांतिकारी हों बल्कि ऐसे भी सलाहकार रखें जो उन्हें व्यावहारिक मसलों पर उचित सलाह दे सकें। हम और देश की जनता नहीं चाहती कि अग्निकन्या सांप-सीढ़ी का खेल खेलते हुए स्वयं अपनी हरकतों से अपने कद को छोटा कर लें। वे विपक्ष की पुरजोर आवाज तो रही हैं लेकिन उन्हें जनता को यह भी आभास देना होगा कि वे सत्ता की बागडोर भी सही तरीके से संभाल सकती हैं। फिलहाल तो उन्होंने बसु शोकसभा प्रकरण में जो किया उसमें विपक्ष की मर्यादा नहीं दिखी।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
aaj kal ke netaon ka aham unake kad se bhi jyada bada ho gaya hai,ye ashobhniya hai.
ReplyDelete