बच्चों को भी देश के संवैधानिक ढांचे में दखल का अधिकार दिये जाने की बातें जब तब उठती रही हैं, जो वाजिब भी है। आखिर देश में बच्चों की आबादी कम नहीं है और उनके बारे में बहुत गंभीरता से विचार करने वालों ने भी अक्सर उनका बहुत भला नहीं किया है। हमारे देश में जो पारम्परिक ढांचा है उसमें बच्चा अपने अभिभावकों के सपनों और आकांक्षाओं का एक हद तक गुलाम है। वे उससे वह सब चाहते हैं जो कई बार उसके पैदा होने से पहले से सोच रखा होता है। बगैर उसकी क्षमताओं और रुचियों का आकलन किये उस पर जिम्मेदारियों का बोझ लादने की तैयारी हमेशा रहती है। बच्चों को एक स्वतंत्र सत्ता के रूप में नहीं देखा जाता। कदम-कदम पर उनकी भावनाएं आहत होती हैं और अपने सपने जन्म लेने से पहले ही दूसरों के सपनों के आगे दम तोड़ते नजर आते हैं। अच्छा होता कि बच्चों को भी मतदान का अधिकार दे दिया जाता जिससे बच्चों के हितों को लेकर एक सामाजिक दबाव बनता। अपने ही घर में कई बच्चे अपने अभिभावकों के कठोर व्यवहार का सामना रोज करते हैं और उपर से अभिभावकों को अपराध बोध के बदलते संतोष होता है कि वे बच्चों को सुधारने का एक पुनीत कार्य कर रहे हैं। अपने ही बच्चों को प्रताड़ित करने वाले अभिभावकों को प्रायः सामाजिक आलोचना का भी सामना नहीं करना पड़ता उल्टे वे एक आदर्श प्रस्तुतकर्ता की भूमिका में दिखायी देते हैं। बच्चे जिस दुनिया की कामना करते हैं निश्चित ही वह इससे बेहतर दुनिया होगी। मतदान का अधिकार देने की हिमायत का यह कतई मतलब न निकाला जाये कि मैं उनके चुनाव लड़ने की बात कर रहा हूं। यह भी तो किया जा सकता है कि बच्चों के लिए प्रतिनिधि का अलग से चुनाव कराया जाये। यह प्रतिनिधि निश्चित तौर पर बच्चों के हितों की योजनाओं के साथ चुनाव लड़ें और जीतने के बाद बच्चों के हितों के संरक्षण की दिशा में काम करें। अलबत्ता उनके चयन के लिए बच्चे ही अपने मताधिकार का प्रयोग करें।
shukr hai ki sarkar is mamale ko gambhirta se le rahi hai.
जेल जाएंगे बच्चों को पीटने वाले मां-बाप
नई दिल्ली. भारत में जो मां-बाप बच्चों को सुधारने के लिए ‘पिटाई के सिद्धांत’ में यकीन रखते हैं, उनके लिए यह खतरे की घंटी है। जल्द ही उनके बच्चे उन्हें इसके लिए अदालत में घसीटने का हक पाने वाले हैं। सरकार इसके लिए कानून में जरूरी बदलाव करने जा रही है।प्रस्तावित कानून अमल में आने के बाद बच्चे घर या स्कूल में पिटाई होने पर पुलिस की मदद ले सकते हैं। दोष साबित होने पर पहली बार एक साल की सजा के साथ 5 हजार रुपए जुर्माना देना होगा। फिर भी नहीं सुधरे, तो दूसरी बार 25 हजार रुपए जुर्माने के साथ तीन साल कैद की सजा होगी। कानून के दायरे में मां-बाप के अलावा रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त और शिक्षक सभी आएंगे।
हर तीन में से दो बच्चे शिकार
इस कानून का मसौदा केंद्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग ने तैयार किया है। विभाग की मंत्री कृष्णा तीरथ बताती हैं कि बिल के मसौदे पर चर्चा जारी है। जल्दी ही इसे कैबिनेट में मंजूरी के लिए रखा जाएगा। तीन साल पहले तैयार मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में स्कूल जाने वाले हर तीन में से दो बच्चों को शारीरिक दंड दिया जाता है।मसौदे में प्रस्ताव किया गया है कि कोई भी व्यक्ति या संस्थान यदि बच्चों को शारीरिक प्रताड़ना देता है, चाहे वह अनुशासन के लिए ही क्यों न हो, तो वह कठोर सजा का हकदार होगा। ड्राफ्ट में क्रूरता, अमानवीयता, हिंसा आदि की अलग-अलग परिभाषा दी गई हैं। इस कानून में सभी संस्था और व्यक्तियों, जिनमें पैरेंट्स, परिवार के दूसरे सदस्य, रिश्तेदार, पड़ोसी, दोस्त, जेल, स्कूल पुनर्वास भवन शामिल हैं, को दायरे में लिया है।
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