झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को सोमवार को गिरफ्तार कर लिया गया है। मामला आय से अधिक संपत्ति का है। उन्हें राज्य के विजिलेंस विभाग ने गिरफ्तार किया है। 4000 करोड़ रुपए के हवाला और संपत्ति मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने उनको कई बार नोटिस भेजा है, लेकिन अब तक वह पूछताछ से बचते रहे हैं। शुरुआत में कुछ दिन तबीयत खराब हो जाने के कारण वह कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे थे, जिसके बाद वह चुनाव प्रचार के बहाने पूछताछ से बचते रहे। फिलहाल कोड़ा निर्दलीय सांसद हैं। आरोपों को सुनकर लगता है कि कोड़ा दरअसल लोकतंत्र का वह घोड़ा हैं जिस पर काबू पाना आसान नहीं है।
लोकतंत्र में ऐसी तमाम व्यवस्थाएं हैं जिससे कोई शातिर चाहे तो आराम से देश को चरता हुआ ऐशो आराम की ज़िन्दगी बसर कर सकता है। यदि आरोपों में सच्चाई तो यही कहा जायेगा कि कोड़ा ने इसे जल्दी पहचान लिया। दरअसल किसी भी देश की शासन व्यवस्था में हमेशा से यह खूबियां रही हैं कि उसमें चोर दरवाजे़ होते हैं जिनसे कोई सत्ताधारी सावधान रहे तो बचकर हर हाल में निकल सकता है। यह दरवाजा किसी ईंट के खिसकाने से खुल जायेगा बस इसका पता होना चाहिए। राजनीति का शास्त्र जन के पश्र में एक छद्म रचता है लेकिन अंततः वह सबल के पक्ष में रास्ते बनाता है। इसी पर तो दुनिया की सारी अदालती व्यवस्थाएं टिकी होती हैं।
अपराधों से बच निकलने के रास्ते हर जगह पहले से ही बने होते हैं उन्हें हर बार नये सिरे से खोजना होता है। उन रास्तों को सबल के पक्ष में उसके वकील खोजते हैं। अगर चोर दरवाजे़ न होते तो एक अदालत में सजा सुनने के बाद वही व्यक्ति उसी कानून व्यवस्था में दूसरी अदालत से कैसे बरी हो जाता है और फिर यदि एक ही संविधान के आधार पर सजा तय होनी है तो सारा निर्णय एक ही अदालत क्यों नहीं करती। और यदि सचमुच न्याय के लिए ही अदालतें हैं तो फिर उसकी कीमत न्याय की फरियाद करने वाले को क्यों चुकानी होती है। क्या यह सच नहीं है कि मामला तब तक ही चलता है जब तक न्याय पाने के अभिलाषी की मुकदमा लड़ने की शक्ति होती है। यदि वह पस्त हो जाता है तो मामला आगे नहीं बढ़ता। देश में ज्यादातर ऐसे लोग हैं जो जीते हुए मुकदमों के बावजूद प्रसन्न नहीं हैं। और अदालतों का चक्कर काटते काटते वे जान चुके होते हैं कि जो न्याय उन्हें मिलेगा वह अर्जित किया हुआ है वह अपने आप मिला न्याय नहीं है।
व्यवस्था की खामियों का लाभ उठाने की नीयत से इस देश में घोड़े जन्म लेते हैं और मुल्क को चर जाते हैं। और समाज में उनकी न तो प्रतिष्टा कम होती है न लोकप्रियता। पूरा देश जानता है कि कोड़ा जिस तरह के मामले में फंसे हैं या स्वयं कोड़ा के शब्दों में कहें तो फंसाये गये हैं उनका बाल बांका नहीं होना है। अलबत्ता दो चार ट्रक मुकदमे के कागजात जरूर तैयार हो जायेंगे जैसा लालू जी के चारा घोटाला प्रकरण में हुआ। झारखंड विधानसभा चुनाव में पश्चिमी ¨सिहभूम की जगन्नाथपुर सीट से उनकी पत्नी प्रत्याशी पत्नी गीता कोड़ा चुनाव लड़ रही हैं। चर्चा का बाजार गर्म है कि उनकी जीत तय है। जनता ऐसे पराक्रमी लोगों को अपना प्रतिनिधि बनाने से गुरेज नहीं करती।
कोड़ा का यह कोई पहला कारनामा नहीं है। सत्ता की खूबियों खामियों का उन्हें पता नहीं होता तो वे कांग्रेस और राजद के सहयोग से निर्दलीय होते हुए भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच पाते। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने उन चोर दरवाजों को खोज लिया है जहां से प्रगति के रास्ते भी खुलते हैं और बच निकलने के रास्ते भी।
देशभर के कई शहरों में कोड़ा और उनके करीबी सहयोगियों के 70 से अधिक ठिकानो पर आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय के छापों में कोई 2000 करोड़ रुपये से अधिक की नामी-बेनामी संपत्ति का पता चला है। इसमे लाइबेरिया से लेकर दुबई, मलेशिया, लाओस, थाईलैंड और सिंगापुर जैसे देशों में संपत्ति खरीदने से लेकर कोयला और स्टील कंपनियों में निवेश तक की सूचना है। उनकी सम्पत्तियों के बारे में जितने मुंह उतनी बातें हैं और हर कोई बढ़ा चढ़ा कर आंकड़े देने में लगा है। पराक्रम के किस्सों में ऐसा होता ही है। कोड़ा का यशगान जारी है। हैरत नहीं कि कोई कोड़ा चालिसा लिख बैठे। देखना यह कि कैसे उन पर आरोपों का पुलिंदा तैयार होता चला जायेगा और कैसे सारी तलवारें कागजी बन कर रह जानी है।
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