भारत में एक और धंधा अब तेज़ी से फलने फूलने जा रहा है वह है किराये पर कोख का। सरकार किसी की कोख को दूसरे को इस्तेमाल करने की इज़ाजत देने के कानून को अमली जामा पहनाने में जुट गयी है और यह काम शालीनता के साथ किये जाने की अनुमति दी जायेगी। अर्थात यह परमार्थ जैसा मामला होगा। कोई स्त्री अपनी कोख दूसरे को देगी तो उसके ऐवज में कमाई जैसी घृणित शर्त नहीं रहेगी। मुफ्त में स्त्री इस काम को उन लोगों को लिए अंजाम देगी जो अपनी संतान पैदा नहीं कर पाते। कानूनी पक्ष अच्छा है मगर यह भी विचारणीय है कि यह कोख किसकी होगी किसी ग़रीब स्त्री की या किसी अमीरजादी की। स्वाभाविक है कि यह गरीब की ही होगी। वह मुफ्त में मां बनने की सारी तकलीफों को क्यों झेलेगी? अभी पश्चिम बंगाल में ही हाल ही में कई घटनाएं घटी हैं कि मां गरीबी के कारण अस्पताल में अपनी पैदा की हुई संतान को छोड़कर भाग गयी ऐसे में इस तरह की महिलाओं को अपनी कोख किराये पर देने का रास्ता खुल जायेगा। कानून की बात करने वालों को चाहिए किसी भी तरह के लेन देन से परहेज रखने की शर्त के बदले वे उचित मुआवज़ा तय करने वर ज़ोर देते। आखिर दूसरे के अधिकारों का संरक्षण भी तो सरकार का ही काम है। माफ कीजियेगा कोख तो भविष्य में किराये पर ही मिलेगी। कानून में चाहे कितना भी आदर्श बघारा जाये।
यहां यह गौरतलब है कि नौ दस साल पहले इन विषय पर एक फिल्म आयी थी जिसमें प्रीति जिंटा अपनी कोख किराये पर देती है। नायिका के सामने जो हालत थे वे देश में अब भी बने हुए हैं।
मेघना गुलजार क फिल्म 'फिलहाल' फिल्म में दोस्ती के लिए कोख देने वाली सुष्मिता सेनों की देश में कमी ही होगी।
यहां यह गौरतलब है कि नौ दस साल पहले इन विषय पर एक फिल्म आयी थी जिसमें प्रीति जिंटा अपनी कोख किराये पर देती है। नायिका के सामने जो हालत थे वे देश में अब भी बने हुए हैं।
मेघना गुलजार क फिल्म 'फिलहाल' फिल्म में दोस्ती के लिए कोख देने वाली सुष्मिता सेनों की देश में कमी ही होगी।
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