Tuesday, 10 September 2013

आंदोलित करती हैं कविताएं : डॉ सिंह


डॉ केदारनाथ सिंह, रामकुमार मुखोपाध्याय, लक्ष्मण केडिया, डॉ शंभुनाथ, प्रियंकर पालीवाल व नंदलाल शाह, एकांत श्रीवास्तव, डॉ अभिज्ञात, डॉ राजश्री शुक्ला, राहुल सिंह.भवानी प्रसाद मिश्र की कविता का विवेक से मूल्यांकन बाकी
साभार - प्रभात खबर, कोलकाता, 8 सितम्बर 2013

पुरुषोत्तम तिवारी, कोलकाता
जी हां मैं गीत बेचता हूं’ भवानी प्रसाद मिश्र की यह कविता बाजारवाद के खिलाफ पहली चोट है. यह पहला काव्यात्मक रूप है. उनकी कविताएं लोगों को आंदोलित करती थी. जब वो कविता पढते तो उनके आंख से आंसू बरबस झरने लगते. उनकी आवाज में ऐसा जादू था कि बात सीधे दिल तक पहुंचती थी. दुर्भाग्य है उनकी कविता को कोई अच्छा आलोचक नहीं मिल सका. विवेक व सहानुभूति के साथ उनकी कविता का मूल्यांकन होना बाकी है. वे कहन शैली के कवि हैं. लिखित व वाचिक कविता के फासले को उन्होंने कम किया है. कवि सम्मेलनों में जहां जाते उनकी आवाज सब पर भारी हो जाती. ये बातें भारतीय भाषा परिषद के तत्वावधान में कवि भवानी प्रसाद मिश्र की जन्मशती समारोह में बीज भाषण देते हुए वरिष्ठ कवि डॉ केदारनाथ सिंह ने परिषद के सीताराम सेकसरिया सभागार में कहीं. डॉ सिंह ने कहा कि मेरा यह सौभाग्य है कि भवानी भाई का स्नेह मुझे मिला. उनके आग्रह पर मैं कवि सम्मेलनों में भी शामिल हुआ. प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि डॉ मिश्र की कविता को आज सस्वर पढ.ने की जरूरत है, तभी उनके शब्द बजते हैं और उनके अर्थ खुल कर सामने आते हैं. लक्ष्मण केडिया ने कहा कि कवि के साथ वे एक बडे. मनुष्य भी थे. पहले सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ शंभुनाथ ने कहा कि भवानी भाई की कविता में अलंकरण नहीं है. उनकी कविता सीधी व सरल है. अपनी बात कहने में सर्मथ्य है. भक्त कवियों की तरह भवानी भाई जिस विषय पर कविता लिखते उसमें डूब जाते. उनकी कविताओं में स्थानीयता की खुशबू बिखरी हुई है. उन्होंने आश्‍चर्य जताया कि आज मनुष्य कविता से नहीं बाजार और राजनीति से जीना सीख रहा है. स्वागत भाषण करते हुए मंत्री नंदलाल शाह ने भवानी प्रसाद  : जैसे मेरे मन में उगे विषय का परिवर्तन करते हुए कहा कि उनकी कविताएं आज भी हमारी चेतना को झकझोरती है. भवानी भाई को गांधीवादी कवि भी माना जाता है. उन्होंने कभी गांधी की आलोचना नहीं की है. पहले सत्र का संचालन श्रद्धांजलि सिंह ने किया. संस्था के मंत्री डॉ कुसुम खेमानी ने अतिथियों का पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया एवं धन्यवाद ज्ञापित किया.दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ राजश्री शुक्ला ने कहा कि उनके जीवन व साहित्य, प्रकृति और लोक के बीच कोई अंतर नहीं है. मेरी कविता की समझ बनी है उनकी कविता को पढ.के. नयी पीढ़ी को उनकी कविता पढ.नी चाहिए. उनकी कविता को आलोचकीय भाषा में न समझायी जाये बल्कि कविता स्वयं उनके सामने बहे. उपभोक्तावाद के समय भवानी भाई की कविताएं संवेदनाओं को जागृत करने में सक्षम है. कवि व पत्रकार अभिज्ञात ने कहा कि भवानी भाई की सरलता सहज नहीं है. वह विरल है. उन्होंने गांधी के रूप में एक वृहद जीवन मूल्य और आदर्श को पा लिये थे. ये बातें उनकी कविताओं में दिखती है. एकांत श्रीवास्तव ने कहा कि मिश्र जी वस्तुत: लोक मन के कवि हैं और कुलीनता के सारे तामझाम से बाहर हैं. राहुल सिंह ने कहा कि उनकी कविताएं आज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं. दूसरे सत्र का संचालन पीयूष कांत राय ने किया. इस मौके पर विश्‍वंभर दयाल सुरेका, निर्मला तोदी, सीमी तलवार, सेराज खां बातिश सहित अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे.

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