Saturday 20 March 2010

हमारे लोकाचारों को बख्श दें बहन जी!!


मायावती ने मूर्तियों स्थापित की तो हंगामा हो गया। मायावती ने नोटों की माला पहनी और हंगामा हो गया। अपने देश में हम जिसे पसंद करते हैं उनकी मूर्तियां बनाने, उन्हें पूजने, उन्हें याद करने, उनके प्रति श्रद्धा ज्ञापित करने की प्रथा रही है। दक्षिण भारत में तो बाकायदा अपने चाहने वालों के मंदिर तक बना लिये जाते हैं।
इसी प्रकार अपनी पसंद लोगों को माला पहनाने की भी प्रथा है। जिसमें फूल की माला के साथ-साथ नोट गुंथी हुई माला भी शामिल है। हमारे यहां घर परिवारों में हर संस्कार में रुपयों को लेन देने को कभी बुरा नहीं समझा गया। रुपये का लेन देन हमारे पारिवारिक व्यवहार और लोकाचार का अभिन्न अंग है। फिर प्रश्न यह है कि जब मायावती से ये मामले जुड़ते हैं तो विवाद क्यों खड़ा हो जाता है।
उसका कारण यह है कि हमारे जो भी रीति रिवाज हैं उनके पालन में मुख्य उद्देश्य लोकाचार के प्रति सम्मान व्यक्त करना रहा है हथियार बनाना नहीं। मायावती ने अपने कृत्य से लोकाचार को अपनी स्थापना के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है। वरना मायावती के दो दो बार लाखों-करोड़ों की माला पहनने के बाद भाजपा के नेता व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की तस्वीरें मीडिया में दिखायी दी। दस-दस के नोट उनके गले में पड़ी माला में दिख रहे थे। कुल मिलाकर दो सौ रुपये भी नहीं रहे होंगे। इसका मतलब यह नहीं है कि सिद्धू जी के प्रशंसकों की निगाह में उनकी औकात सौ-दो सौ की ही है मायावती के प्रशंसकों की निगाह में मायावती की करोड़ों में। हमें डर यह है कि पता नहीं मायावती हमारे किन किन रिवाजों को ताम झाम के साथ अपनाने वालीं और उनसे हमारी तमाम प्रथाओं पर लोगों की सवालिया नजरें उठेंगी।
यह जरूर है कि हमारे यहां साधु-संतों ने व्यक्ति पूजा का जो दोहन किया है उस पर समाज की निगाह नहीं गयी। मायावती कर रही हैं तो प्रश्न इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि वे सीधे सीधे सत्ता में और राजनीति में। इसलिए उनके कामकाज का सीधा प्रभाव हमारी व्यवस्था के ढांचे पर पड़ेगा।
भले मायावती की मूर्तियों, जन्म दिन पर मिले कीमती तोहफों और करोड़ों समझी जाने वाली मालाओं की आयकर तथा अन्य सम्बंद्ध विभागों द्वारा जांच की जा रही है लेकिन यदि भ्रष्टाचार स्थापित न भी हो पाया तो भी कई सामाजिक व्यवहारों के भौंडे प्रदर्शन से तो हम शर्मसार हैं ही। कन्याधन के नाम पर विवाह के समय दी जाने वाला आर्थिक सहयोग दहेज नाम की एक बड़ी चुनौती बना हुआ है जिससे समाज तबाह है। विवाह के समय तामझाम को जो भोंडा प्रदर्शन होता रहा है वह कम शर्मनाक नहीं है। इस क्रम में मायावती के चाहने वालों के कारनामों ने इजाफा किया है। यदि इस पर अंकुश नहीं लगा तो यह सार्वजनिक जीवन का एक वीभत्स माडल बन जायेगा।
संसद की एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं, समाज सुधारकों और प्रख्यात हस्तियों के बुतों से अटे पड़े संसद भवन परिसर में भविष्य में और प्रतिमाओं की स्थापना पर पूरी तरह रोक लगाने का फैसला किया है। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की अध्यक्षता वाली संसद भवन परिसर में राष्ट्रीय नेताओं और सांसदों की मूर्तियों या पोट्र्रेट स्थापित करने संबंधी समिति ने पिछले दिनों हुई अपनी एक महत्वपूर्ण बैठक में संसद भवन परिसर में अब और मूर्तियों की स्थापना न करने के प्रस्ताव को स्वीकृत किया है। केवल अपवाद के तौर पर कुछ बेहद दुर्लभतम मूर्ति या चित्र लगाने की अनुमति दी जा सकती है। प्रस्ताव संसद की हेरिटेज कमेटी के पास भी जायेगा।
अच्छा होता कि इस पर हेरिटेज कमेटी भी अपनी सहमति दे देती जो संसद इमारत की देखभाल की जिम्मेदारी संभालती है। बैठक में यह फैसला किया गया कि संसद भवन में अब केवल प्रतीकात्मक रूप से चित्रों का अनावरण मात्र किया जायेगा। संसद भवन में मूर्तियों की स्थापना पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव की पिछले काफी समय से मांग की जा रही थी। संसद भवन में 50 से अधिक मूर्तियां और इतनी ही संख्या में विभिन्न राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर के नेताओं के चित्र लगे हैं। संसद भवन परिसर में स्थापित की जाने वाली मूर्तियों के निर्माण में औसतन प्रति फुट एक लाख रुपये तक का खर्च आता है और एक प्रतिमा नौ से दस फुट लंबी होती है। इस फैसले से जनता का पैसा अनावश्यक कार्यों में खर्च होने से बच जायेगा।
आम-जनता के पैसे का दुरुपयोग मूर्तियां स्थापित करने के बाद तो सरकार और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोगों को भी मूर्तियों की स्थापना के विरोध में आगे आना चाहिए। फिर वे चाहे जिसकी हों। प्रतीक जब विकृत हो जायें तो उनके औचित्य पर विचार जरूरी है। संसद भवन भवन परिसर ही नहीं देश भर में लोगों को सम्मान देने के नये प्रतीक गढऩे होंगे। और हो सके तो मालाओं से भी बचा जाये। चाहे वह फूल की हों या नोटों की। देश की मुद्रा के दुरुपयोग पर रोक तो यूं भी लगनी चाहिए।

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