Wednesday 1 November 2017

काइनात में कुछ भी नहीं है,दो दिल इक धड़कन



साभार- सन्मार्ग 12.11.2017

पुस्तक समीक्षा/डॉ.अभिज्ञात

पुस्तक : झील के बिस्तर पर/गीत/लेखक-फ़े.सीन.एजाज़/प्रकाशक: इंशा पब्लिकेशंस, 26 ज़करिया स्ट्रीट, कोलकाता-700073/मूल्य: 120 रुपये


दिल के अहसासों को पूरी शिद्दत से व्यक्त करने वाले गीतों का संग्रह ‘झील के बिस्तर पर’ आया है। इसे लिखा है उर्दू के प्रख्यात शायर, कथाकार, आलोचक और ढाई दशक से अधिक अरसे में कई देशों में अपना अच्छा-खासा पाठक वर्ग तैयार कर चुकी पत्रिका ‘महानामा इंशा’ के सम्पादक फ़े.सीन.एजाज़ ने। देवनागरी लिपि में आये ये गीत हिन्दी गीतों के प्रचलित मुहावरों और प्रतीकों से एकदम अलग हैं जिसके कारण इनमें अतिरिक्त ताज़गी है। चूंकि एजाज़ ग़ज़लगोई की दुनिया का एक सुपरिचित नाम है, जिसने गीत के मीटर पर भी अपनी वैसी ही पकड़ बरकरार रखी है इसलिए इन गीतों को गाने वालों के सामने भी कोई दुश्वारी नहीं है। हिन्दी उर्दू की मिलीजुली आसान हिन्दुस्तानी जुबान में लिखे ये गीत आसानी से लोगों की समझ में आने वाले हैं। एक और खूबी यह कि कई गीत स्त्रियों की ओर से उनके मनोभावों को व्यक्त करने वाले हैं। एक बानगी देखें-‘तरसेंगी मिरी सांस को जब सांसें तुम्हारी/उलझेंगी मंज़िलों से भी जब राहें तुम्हारी/कुछ काम न आ पायेंगी जब आहें तुम्हारी/ढूंढोगे मेरे साथ की तन्हाइयों को तुम/पर मैं नहीं मिलूंगी..।’
ताजमहल को लेकर उर्दू शायरी में साहिर लुधियानवी से लेकर तमाम रचनाकारों ने बहुत कुछ लिखा है, उस क्रम को एजाज़ ने आगे बढ़ाया है। उनका गीत यूं है-‘सोचा है कोई ताजमहल हम भी बनायें/ हल्का सा कोई तंज़ ज़फ़ाओं पे नहीं हो/इस दिल को ग़ुरूर अपनी वफ़ाओं पे नहीं हो/दिल छूने का इक तर्ज़े अमल हम भी बनायें।’
इस संग्रह के गीतों में नारेबाजी व समाज को बदल डालने की चाहतों की बातें नहीं बल्कि मुहब्बत, ज़ुदाई व उससे जुड़े मनोभावों को अधिक व्यक्त किया गया है जो युवाओं को भी आकृष्ट करेगा-‘कल तू भी नहीं होगी यहां, हम भी न होंगे/आ जा के मुलाक़ात का यह आख़िरी दिन है/इक प्यार का आलम जो गुज़ारा है तेरे साथ/बरसात का मौसम जो गुज़ारा है तेरे साथ/उस मौसमे बरसात का यह आख़िरी दिन है।’ उनके गीतों की दुनिया में और कोई नहीं बल्कि दो मुहब्बत करने वाले हैं और उनसे जुड़ी बातें हैं। इस बात को वे अपने पहले ही गीत में कह देते हैं-‘आज इक साथ हंसें तो खुल कर साथ बहें आंसू/कोई नहीं है वादी--गुल में, इक मैं और इक तू/काइनात में कुछ भी नहीं है, दो दिल इक धड़कन/यह कैसी उलझन है।’

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