Sunday, 16 August 2009

विकास स्वरूप से मिली सीख


विदेश सेवा में कार्यरत विकास स्वरूप के उपन्यास क्यू एंड ए (क्वेश्चन एंड एन्स्वर ) पर बनी फिल्मफिल्म स्लम डॉग मिलिनियर की धूम पूरी दुनिया में मची है। जिन्होंने केवल फिल्म देखी वे इसकी सराहना करते नहीं अघाते। कई तो इसे क्लासिक की श्रेणी में रखते हैं। कुछ ने पूरी फिल्म को एक कविता ही करार दिया है। लेकिन यदि आपने उपन्यास पढ़ा हो तो फिल्म की उतनी तारीफ़ आपके मुंह से नहीं निकलेगी। उपन्यास समस्याओं को तो शिद्दत से उठाता ही है कथानक भी तेज रफ्तार और अत्यंत रोचक है। जिन्होंने उपन्यास को पढ़ा है उन्हें यह फिल्म किसी हद तक निराश ही करेगी क्योंकि कथनाक फिल्म से बहुत अच्छा है। अपने देश में साहित्यिक कृतियों पर फिल्में बनती हैं तो लेखक की तरफ से प्रायः यही टिप्पणी मिलती है कि फिल्म वालों ने कहानी का कचरा कर दिया है और अमुक अमुक स्थान पर गड़बड़ की है जिससे रचना का मर्म प्रभावित हुआ है। हैरत है कि विकास स्वरूप ने इस तरह की कोई नाराजगी जाहिर नहीं की है। वे यह समझते हैं कि दोनों मीडिया अलग है दोनों की अपनी भाषा और सीमाएं हैं। यह सबक काम है जो विकास स्वरूप से सीखने लायक है।
हां, एक बात और अपनी इच्छा है कि कोई क्यू एंड ए पर धारावाहिक बनाये तो वह इस फिल्म से अच्छा काम हो सकता है क्योंकि उपन्यास का कथानक काफी विस्तृत और रह रह कर चौंकाने वाली घटनाओं से भरपूर है और मसालेदार भी।

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