Saturday 17 May 2014

बंगाल में लाल लगभग बेदखल, ममता का जादू कायम

-डॉ.अभिज्ञात 
कोलकाता -देश भर में चली मोदी लहर से पश्चिम बंगाल भी अछूता नहीं रहा किन्तु यह असर लाल दुर्ग के ध्वांसावशेष पर पड़ा और ममता बनर्जी अपराजेय रहीं। उनके नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। उसने पिछले लोकसभा चुनाव में 19 सीटें हासिल की थी इस बार उसे 34 सीटें मिली हैं। वामपंथी सीटों पर कब्जा करते हुए राज्य से लगभग बेदखल कर दिया। वे अपना जनाधार बचाने में कामयाब रहीं और राज्य में हुए सारधा घोटालों में अपनी पार्टी की संलिप्तता का नाम उछाले जाने और मामले की सीबीआई जांच का सामना करने जा रही ममता ने बंगाल की राजनीति के ढर्रे को को ही बदल कर रख दिया है। चुनावी नतीजे इस बात का संकेत दे रहे हैं आने वाले समय में भले कांग्रेस की स्थिति कमोबेश जस की तस बनी रही है और उसे केवल चार सीटें मिलीं, किन्तु यहां अब भाजपा भी राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज करायेगी तथा वामदलों का स्थान तृणमूल लेने जा रही है। वामदल 15 सीटों से सिमट कर दो पर आ गये। माकपा को केवल दो सीट मिली उसके अन्य दलों को सिफर हाथ लगा। राज्य के अल्पसंख्यकों की सरपरस्त के तौर पर ममता ने अपनी छवि बना ली है और मुस्लिम वोट बैंक पर अपना हक समझने वाले वामदलों से उसने यह हथिया लिया है। देश भर में चली रही मोदी लहर से किसी हद तक तृणमूल के चुनावी नतीजे अप्रभावित रहे तो इसलिए कि अल्पसंख्यक मतों का ध्रुवीकरण उनके पक्ष में हुआ। उन्होंने अपने तेवर व गतिविधियों से यह साबित किया है कि वे साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने वाली एक जुझारू नेता भी हैं और आने वाले समय में वे राष्ट्रीय स्तर अपनी इस छवि का विस्तार करेंगी, जो अब तक वामदलों की थी। हिन्दीभाषियों को बंगाल में गेस्ट बताने वाली ममता ने चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में अपनी गलती को सुधार लिया था और लगातार हिन्दीभाषियों को अपना बताने मेंं जुटी रहीं, जिसका उन्हें लाभ पहुंचा। वामपंथियों ने ऐसा नहींं किया था और ममता ने भी ऐसा पहली बार किया जिसका उन्हें लाभ मिलता रहेगा। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ अपनी तीखी टिप्पणियों के जरिये भी उन्होंने यह संदेश दिया है। यहां यह भी गौरतलब है कि राज्य में भाजपा के वोटों का प्रतिशत बढ़ा है।
तृणमूल की उपलब्धियों में पूर्व रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस के नेता दिनेश त्रिवेदी की बैरकपुर लोकसभा सीट पर माकपा की सुभासिनी अली से 1,01,373 वोटों जीत को विशेष तौर पर उल्लेखनीय माना जा सकता है क्योंकि उनके रिश्ते कुछ अरसा पहले ममता से खटासभरे हो गये थे। त्रिवेदी ने अपनी सीट बरकरार रखी है। चुनावी नतीजों में कांग्रेस की दीपा दासमुंशी अपने पति प्रियरंजन दासमुंशी की परम्परागत सीट से हार गयी हैं। इस चुनाव में ममता ने फिल्म व ग्लैमर की दुनिया से जुड़ी हस्तियों शताब्दी राय, देव, मुनमुन सेन, संध्या राय, तापस पाल को पार्टी प्रत्याशी बनाया था जिस पर खुद उनकी पार्टी में किसी हद तक असंतोष था किन्तु चुनावी नतीजों ने यह साबित कर दिया कि वे सही थीं।
राज्य की दो सीटों पर भाजपा को अच्छी बढ़त मिली और आसनसोल से पाश्र्व गायक बाबुल सुप्रियो और दार्जिलिंग से एसएस आहलुवालिया ने जीत हासिल की है। भाजपा को इस बार एक सीट का फायदा हुआ। राज्य के भाजपा प्रमुख राहुल सिन्हा का मानना है कि तृणमूल विरोधी वोटों का कांग्रेस, भाजपा व वाम में बंटवारा हुआ जिसके कारण तृणमूल मजबूत दिखायी दे रही है, अगले चुनाव तक तृणमूल विरोधी वोटों भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण होगा।
वामदलों की बंगाल से बेदखली का कारण भले उसके नेता बूथ दखल रीगिंग बता रहे हों किन्तु इसमें केवल आंशिक सच्च्चाई है। विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में तृणमूल से अपनी शर्मनाक पराजय के बाद भी वामदलों आत्मालोचना के लिए तैयार नहीं दिखायी दिये। सांगठनिक स्तर पर जो भी बदलाव हुए वह लीपापोती और धड़ाबंदी के स्तपर ही हुआ और ना ही सिद्धांतों में किसी आमूलचूल परिवर्तन की बात उन्होंंने की इसलिए तृणमूल से असंतुष्ट लोगों को लिए भी लोग वामपंथियों को राजनीतिक विकल्प बनने योग्य नहीं मानते हैं, इसलिए यथास्थिति बनी रहेगी या नये राजनीतिक विकल्पों को तलाश की जायेगी।

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