Thursday, 17 June 2010

केटी के परफ्यूम की व्यावसायिक नैतिकता को सलाम!

केटी प्राइस के नाम पर इत्र के अलावा कई और चीज़ें बिकती हैं। रिएलिटी टीवी स्टार कैटी प्राइस के नाम पर बने इत्र को सुपरड्रग स्टोर ने नैतिक कारणों से अपनी दुकानों से हटा लिया है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इस परफ्यूम की बोतलें भारतीय मज़दूर बनाते हैं जिन्हें न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं दी जाती है। सुपरड्रग स्टोर की एक प्रवक्ता ने बताया कि इस संबंध में मज़बूत नैतिक नीतियों का पालन करते हुए इस परफ्यूम को स्टोर से हटा लिया गया है। व्यवसाय में हम बहुत ही मज़बूत नैतिक नीतियों का पालन करते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे उपभोक्ता कुछ खरीदें तो उन्हें विश्वास हो जो उत्पाद वो खरीद रहे हैं वो नैतिक तरीकों से बनाया गया हो। संडे ऑब्ज़र्वर ने दावा किया है कि भारत के कारखानों में मज़दूरों को प्रति घंटा मात्र 26 पेंस (16 रुपए) ही मज़दूरी मिलती है जो ग़लत है। प्रवक्ता का कहना था कि अब केटी प्राइस के परफ्य़ूम की बॉटलिंग का काम भारत से हटाकर ब्रिटेन और फ्रांस ले आया गया है। भारत में इस परफ्य़ूम की बॉटलिंग का काम प्रगति ग्लास कंपनी करती थी। केटी प्राइस को जॉर्डन के नाम से भी जाना जाता है और उनके नाम पर कई ब्रांडेड उत्पाद बिकते हैं जिनमें बिस्तर, किताबें और स्वीमिंग से जुड़े सामान भी हैं।
यह खबर इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि भारत इधर आउटसोर्सिंग के लिए दुनिया भर में विशेष तौर पर लोकप्रिय हुआ है और कई देश भारत में कम कीमत पर काम कर रहा हैं। गौरतलब यह है कि यहां के पढ़े लिखे लोगों से आनलाइन काम कराने का ठेका लेने वाली भारतीय कम्पनियां विदेश से वहां काम काम वहां के बाजार के भाव के तुलना में कम कीमत पर ही लेतीं बल्कि वे उसमें अपना हिस्सा बहुत अधिक रखकर यहां जिन लोगों से काम कराती हैं वह बहुत ही शर्मनाक होता है। किन्तु बेरोजगारों की फौज वाले भारत में बेकार बैठने की तुलना में जितना मिले उसी में काम करो के मनोभाव के साथ काम कर रही हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि गूगल जैसी कंपनी के अत्यंत महत्वपूर्ण शोधपरक अंग्रेजी आलेखों का अनुवाद भारतीय भाषाओं में 40 पैसे प्रतिशब्द में कराया जा सकता है।
आज जब कि एक देश से दूसरे देश के बीच के सम्बंध का पूरा तानाबाना ही व्यवसायिक हितों से जुड़ा होता है और मित्र और शत्रु राष्ट्र का मुख्य आधार कोई और मूल्य नहीं बल्कि परस्पर व्यवसायिक हित हैं व्यावसायिक नैतिक को विशेष तरजीह दिये जाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। जो भी देश और कंपनियां नैतिकताओं को तरजीह देंगी आगे बढ़ेंगी और यह होना भी चाहिए। पूरी दुनिया को शोषक और शोषित में बांटने वाले माक्र्सवादी सिद्धांतों के सिद्धांतों का काट व्यावसायिक नैतिकता के विकास में ही निहित है। वाजिब कार्य की वाजिब कीमत देना उनमें सबसे महत्वपूर्ण है। आशा है इत्र प्रकरण से अन्य कंपनियां सबक लेंगी। कई कंपनियां पहले भी बच्चों से काम कराने जैसे मामलों की शिकायत पायी जाने पर ऐसे कदम उठा चुकीं हैं किन्तु वाजिब मेहनताना का मुद्दा कुछ हटकर है किन्तु बड़ा मुद्दा है और इसकी परिधि भी व्यापक है। विदेशों ही नहीं अपने घरेलू बाजार में भी इन बातों पर ध्यान दिये जाने की जरूरत है। कम कीमत पर वस्तुएं पाने की होड़ के दौर में इस बात की ओर भी सबका ध्यान आकृष्ट कराया जाना है कि कोई वस्तु कम कीमत पर उपलब्ध क्यों है?

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