Saturday 10 March 2012

आदर्श युवक के सम्मोहक प्रेम के सूत्र में बंधल सामाजिक ताना बना


हरेन्द्र कुमार पाण्डेय का भोजपुरी उपन्यास जुगेसर

जुगेसर के लोकार्पण के अवसर पर बाएं से हरेन्द्र कुमार पाण्डेय, डॉ.केदारनाथ सिंह, महाश्वेता देवी, डॉ.सुब्रत लाहिड़ी एवं हरिराम पाण्डेय

प्रस्तावना

-डॉ.अभिज्ञात
'जुगेसर' उपन्यास एक अइसन व्यापक फलक वाला आधुनिक उपन्यास हऽ जवना में गांव अउर शहर दूनों के सामाजिक परिस्थिति अउर चुनौती के वस्तुपरक ढंग से बहुत व्यापक अर्थ में चित्रण बा। कथानक के पात्र खाली व्यक्ति हउअन बल्कि ऊ मौजूदा समाज के एक अइसन व्यक्ति बनकर आईल बाडऩ जवना में उनका निजीपन के अतिक्रमण भइल बा आ ऊ समाज के लाखोंलाख लोगन के प्रतिनिधित्व करे में समर्थ बाडऩ। उपन्यास के नायक जुगेसर कउनो साधारण युवक ना हउअन बल्कि ऊ एगो अइसन जोशीला, आदर्शवादी अऊर निष्कपट व्यक्ति हउअन जवन समाज में व्याप्त तमाम समस्या से जूझऽता अउर अपना ढंग से प्रतिक्रिया देऽता और एही समाज में अपने जीये के एगो अलग रास्ता बनावऽता। ई रास्ता संघर्ष के नइखे ऊ सहअस्तित्व के सिद्धांत पर चलऽ ता। दोसरा के बदले के तऽ बहुत प्रयास नइखन करऽत लेकिन अपना आचरण के शुचिता के अन्तत: बरकरार रखे में सफल बाड़े। जुगेसर के जीवन अपने आपमें एगो आदर्श युवक के जीवन बा अऊर चुपचाप एगो मॉडल देश-दुनिया के सामने रखऽ ता कि कइसे विपरीत परिस्थिति में बिना समझौता कइले भी व्यक्ति सादगी और बिना भ्रष्टाचार के कवनो रास्ता अपनवले आपन जीवन शुचिता से गुजार सक ता।
जुगेसर साइंस के मेधावी छात्र रहे अउर बिना कवनो जोड़ तोड़ के भी अपना व्यक्तित्व के खूबी के साथ भी तरक्की करत चलऽ जा ता। पद प्रतिष्ठा में जुगेसरसे सफल व्यक्ति भी ओकरा व्यक्ति के आगे नत हो जाता और पाठक के निगाह में बौना भी। सफल व्यक्ति हमेशा समाज के आदर्श व्यक्ति ना होखे ई बात पूरी शिद्दत से हरेन्द्र कुमार जी अपना ये उपन्यास में उठवले बानी तथा ईहो एगा कारण बा जवन ए उपन्यास के सार्थकता प्रदान कर ता।
उपन्यास में खाली सामाजिक ठोस यर्थाथ ही नइखे अपितु एकर प्रमुख विशेषता बा एकर रोचकता। हृदयस्पर्शी एगो प्रेम कथा के सूत्र से ई उपन्यास बंधल बा जवन जुगेसर के दाम्पत्य जीवन में भी बरकरार रहऽ ता, जवन ना सिर्फ युवा पाठकन के बल्कि प्रौढ़ पाठक के भी समान रूप से आकृष्ट करी। स्त्री के व्यक्तित्व के औदात्यपूर्ण चित्रण भी ए उपन्यास के अर्थवान बनावे में समर्थ बा। जुगेसर के प्रेमिका पूजा, जवना से बाद में जुगेसर अपना परिवार के अनिच्छा के बावजूद शहर में विवाह कर ले ता, एक अइसन आदर्श नारी के रूप में उभर के आवऽ तिया जे भारतीय समाज के पारिवारिक ताना-बाना के मजबूत कऽ के आदर्श प्रस्तुत करऽ तिया। प्रेम परिवार से अलगाव करावे ला के प्रचलित धारणा के विपरीत मौका पड़ला पर प्रेम के परिधि केतना विस्तृत हो सकेला पूजा के चरित्र ओकर उदाहरण बा। उपन्यास में प्रेम के द्वंद्व, अंतरजातीय विवाह के समस्या, शिक्षा जगत व राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि समस्या के बखूबी उठावल गइल बा जवन उपन्यास के उपन्यासे नइखे रहे देत बल्कि समाज के मौजूदा स्वरूप पर सार्थक टिप्पणी बन जाता। उपन्यास में प्रेम क कएक गो दृश्य एतना जीवन्त बा कि पढ़त समय पाठक के सामने दृश्य उपस्थित करे में समर्थ बा। हरेन्द्र जी के लेखन शैली एतना सादगी पूर्ण और भाषा एतना सरल-सहज व प्रवाहपूर्ण बा कि कहीं से साहित्यिकता के आतंक नइखे होत बल्कि रोचकता, सरसता व आगे का भइल जाने के जिज्ञासा अन्त तक बनल रह ता। अउर अन्त में उपन्यास पढ़ के आंख छलाछला जाय तो एके उपन्यास दोष न मानल जाव, मन भारी हो जायी लेकिन उपन्यास के कथानक और चरित पाठक के मन में हमेशा-हमेशा खातिर आपन जगह त बनइये ली, ई पूरा विश्वास बा।

1 comment:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति!

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