सुरों का संग्राम हो तो वह अन्य संग्रामों से कैसे अलग होता है यह दिखा दिया महुआ ने। महुआ टीवी चैनल पर भोजपुरी रिएलिटी शो 'सुर-संग्राम' कार्यक्रम में। पटना में इसके ग्रैंड फिनाले में उत्तर प्रदेश और बिहार के कलाकारों की भिड़ंत थी। इसमें विजेता को बतौर इनाम 25 लाख रुपये और उपविजेता को 11 लाख की राशि दी जानी थी। लेकिन शीर्ष दो विजेताओं के गायन से चैनल के मालिक इतने प्रभावित हुए कि दोनों को ही 25 लाख दे दिये। और वह नजीते भी डिक्लियर नहीं किये गये जो उनमें से किसी एक को एक और दूसरे को दो नम्बर का गायक बताते। दोनों ही गरीब परिवार के गायक थे जिसमें से एक मोहन राठौड़ के पिता तो घर-घर जाकर कपड़े बेचते हैं। लोग तो इस बात भी तसल्ली कर लेते कि पुरस्कार की दोनों राशि यानी 25 और 15 को जोड़कर 40 में से आधा-आधा बांट दिया जाता। लेकिन मिसालें ऐसे नहीं बना करतीं। यह लगभग अभूतपूर्व निर्णय था पुरस्कार देने वाले की तरफ से की दोनों को 25-25 लाख दिया जाये। संस्कृति के क्षेत्रों में जो पुरस्कार देने वाले हैं अपनी तमाम उदारताओं और महान मूल्यों के लिए समर्पण की प्रतिबद्धता की शेखियां बघारने के बाद भी ऐसी मिसालें अपने व्यवहार से पेश नहीं करते। ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित कई और पुरस्कारों के उदाहरण हैं जब दो लोगों को नम्बर एक का दावेदार समझा गया तो पुरस्कार राशि आधी-आधी बांट दी गयी और कुछ ऐसे उदाहरण भी हैं जिसमें पुरस्कार राशि छोटी थी और एक नम्बर के दो दावेदार थे तो एक को जबरन नम्बर दो घोषित कर पुरस्कार देने जहमत भी नहीं उठायी गयी। जब नम्बर दो के लिए कुछ था ही नहीं तो फिर उसे दो नम्बर को घोषित ही क्यों किया गया यह विचारणीय है! बहरहाल महुआ ने जो सदाशयता दिखायी है वह उदाहरण स्थापित करती है और जब कार्यक्रम भोजपुरी से जुड़ा हो तो भोजपुरी संस्कृति को भी इससे बल मिलता ही है। इसलिए सुर संग्राम सुरों का ही संग्राम था जिसे एक भोजपुरिया सुरीले ने कराया।
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