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पुस्तक समीक्षा पुस्तक का नाम: धरती अधखिला फूल है/ लेखक: एकान्त श्रीवास्तव/ प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन, 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नयी दिल्ली-110002/मूल्य:250 रुपये |
नवें दशक में उभरे महत्वपूर्ण कवि एकान्त श्रीवास्तव का नया कविता संग्रह उनके मुहावरों में नयी अर्थवत्ता के साथ उपस्थित हुआ है। यहां आते आते उनकी कविताओं में स्वप्न और आदर्श की रुमानियत यथार्थ से मुठभेड़ के क्रम में पहले से कम हुई है और कविताएं शब्द से इतर अपने संकेतों और कथन के निहितार्थ में केंद्रित हैं। उनकी कविताओं ने वैचारिक प्रतिबद्धता से परे जाकर करुणा, संवेदना और अनुभूति को तरजीह दी है। इस संग्रह की कविताएं धीरे-धीरे मन में गहरे पैठती जाती हैं और उनका समग्र रूपाकार पाठक के मन में एक स्थायी जगह बना लेता है। वे उन बेहद कम कवियों में से हैं जिनका अपना एक स्वतंत्र कवि व्यक्तित्व है। एकाध कविता, कुछ कविताएं या कुछ अधिक कविताएं अच्छी या बहुत अच्छी लिखना दीगर बात है और अपनी कविताओं से पूरे एक काव्य व्यक्तित्व का सृजन दूसरी बात। यह दूसरी बात अर्जित करने की विलक्षणता उनमें है। वे वहां पहुंच चुके हैं जहां से दुनिया की तमाम छोटी-बड़ी घटनाएं, उथल-पुथल और परिवर्तन को एक खास नजरिये से देख सकते हैं और यही नहीं उनका पाठक भी उनके विजन को समझने के बाद देश दुनिया और अपने इर्द गिर्द को देखने की नयी दृष्टि पाते हैं। मेरी नजर में उनकी सबसे बड़ी कामयाबी यही है कि पाठक न सि$र्फ उनकी कविता से प्रभावित हों बल्कि उसका अपना व्यक्तित्व भी कवि के नजरिये प्रभावित हो जायें। वे वस्तु व भाव जगत को नयी उष्मा व चेतना के साथ देखें।
इस संग्रह की कविताएं ऐसी नहीं हैं कि यदि आपके पास बहुत फुरसत हो तो भी पांच सात कविताएं एक साथ पढ़ सकें। दो-तीन-चार कविताओं तक पहुंचते पहुंचते पुस्तक आपके साथ से हट जायेगी। आप उस लोक और अनुभूति की गहराई में उतर चुके होंगे जहां ये कविताएं आपको ले गयी हैं। इसलिए इस संग्रह को पूरा पढऩे के लिए कई दिन और सीटिंग की आवश्यकता पड़ेगी। यह यात्रा सिर्फ शब्दों की नहीं है। आपके सामने कई परिचित-अपरिचित दृश्य व दुनिया के दरवाज़े खुलेंगे और कवि के साथ प्रवेश करने के बाद बेचैन, संवेदित और अपने दुखते-टीसते दिल के साथ लौटेंगे। ये कविताएं माक्र्स नहीं बुद्ध व महाबीर के करीब हैं। इनमें विचार नहीं दर्शन है। संग्रह में शब्द नहीं संकेत की कविताएं हैं। यह दृश्य नहीं दृष्टि है। कंसेप्ट नहीं विजन है। यहां लोकेल सुरक्षित है। ये व्यक्तित्वहीन कविताएं नहीं हैं। एकांत जिस भौगोलिक क्षेत्र से जुड़े हैं, उसका भूगोल, वानस्पतिक संसार, जीव जंतु, रम्मो-रिवाज सब कुछ उनकी कविताओं का हिस्सा है। कोई कवि अपनी ओढ़ी बिछाई दुनिया को किस प्रकार अपनी कविता का अहम हिस्सा बनाता यह उनसे सीखने लायक है। एक बात इन कविताओं में विशिष्ट है कि ये बेहतर देश दुनिया के लिए सद्भावों, शुभकामनाओं से लैस कविताएं हैं। आशीष देती और मंगलकामना करती, और कई बार उपदेश मुद्रा में- 'जिनका कोई नहीं है/इस दुनिया में/हवाएं उनका रास्ता काटती हैं/शुभ हों उन सब की यात्राएं/ जिनका रास्ता किसी ने नहीं काटा।' (पृष्ठ-15) कई कविताओं में लोकजीवन के हृदयग्राही दृश्यों, भंगिमाओं व लोकशैली का उपयोग उन्होंने किया है जो अपने टटकेपन से हमारा अतिरिक्त ध्यान खींचती हैं। उसी प्रकार पारिवारिक रिश्तों पर रची गयी कविताएं भी मन को छूती हैं। करेले बेचने आयी बच्चियां, बुनकर की मृत्यु (एक व दो), नमक बेचनेवाले, सोनझर, बाबूलाल और पूरन, आम बेचती स्त्रियां आदि कविताएं एक प्रकार के खास चरित्र को उठाती हैं और उनके जीवन मर्म को एक वृहत्तर आयाम प्रदान करती हैं साथ ही उनके दुख को दर्शन की ऊंचाइयों तक ले जाती हैं। -डॉ. अभिज्ञात
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