Friday, 6 April 2012

150 वीं जयंती पर याद किये गये रवीन्द्रनाथ

स्त्री की नैसर्गिक विशेषताओं के अनुरूप उसके विकास का रास्ता बने-डॉ.अभिज्ञात
कोलकाताः ‘मगरबी बंगाल उर्दू थिएटर एकेडमी’ के तत्वावधान में कोलकाता ‘थिएटर एक्शन ग्रु’ से सहयोग से कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयंति के उपलक्ष्य में एक रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम कोलकाता के सत्यजीत राय आडिटोरियम आईसीसीआर में हुआ। इस कार्यक्रम के पहले सत्र में रवीन्द्रनाथ के जीवन और उनकी रचनाओं के विविध पहलुओं पर चर्चा हुई। जाने माने शिक्षाविद् प्रोफेसर सुलेमान खुर्शीद ने उनके जीवन वृत्त पर प्रकाश डालते हुए उन्हें एक कुशल नाट्यलेखक, कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, चित्रकार और संगीतकार बताया। उन्होंने कहा कि इतना वैविध्य बहुत कम रचनाकारोँ में दिखायी देता है। सन्मार्ग के डिप्टी न्यूज़ एडिटर व साहित्यकार डॉ.अभिज्ञात ने रवीन्द्रनाथ के नारी सम्बंधी विचारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रवीन्द्रनाथ ने लगभग सौ साल पहले अपनी अमरीका यात्रा के दौरान एक भाषण में उन्होंने नारी की जिन खूबियों की चर्चा की थी वह तो अब भी विद्यमान हैं और रहेंगी लेकिन उसके विकास के लिए जो मॉडल उन्होंने प्रस्तुत किये थे उस पर दुनिया में अभी काम नहीं हो रहा है यदि वैसे होता तो आज की दुनिया संभवतः आज से बेहतर होती। अभिज्ञात ने कहा कि हमारे विकास का मौजूदा म़ॉडल स्त्री को पुरुष के समकक्ष खड़ा करने का है किन्तु स्त्री के नैसर्गिक स्वभाव के अनुरूप उसे विकास का अवसर नहीं दिया जा रहा है। स्त्री की मौलिक व नैसर्गिक विशेषताओं के अनुरूप उसके विकास के रास्ते प्रशस्त करने की आवश्यकता है। क्या स्त्रियों के स्वभाव के अनुरूप विकसित संसार में कोई पुरुष उनकी बराबरी का दर्जा चाहेगा? यदि नहीं तो फिर पुरुषों के बनाये मानदंड के आधार पर विकसित संसार में स्त्रियों को उनके बराबर लाकर खड़ा करने की कवायद को स्त्रियों के साथ न्याय कहना कहां तक तर्क संगत होगा। स्वयं टैगोर मानते हैं कि आज की सभ्यता में दुनिया पूरी तरह से पौरुषेय है और नारी को हाशिये पर डाल दिया गया है। एक ताक़त की सभ्यता का वर्चस्व है, जिसमें स्त्रियों को एक किनारे ढकेल दिया गया है। इसलिये इस सभ्यता का सन्तुलन बिगड़ा हुआ है और दुनिया युद्ध से जोखिम से जूझती रही है। मनुष्य ने जो शक्ति अर्जित की है वह विनाश की शक्ति है। ये सभ्यता का एकतरफा विका है। वे मानते थे कि स्त्री की समावेशी भूमिका है। और जीवन में एक स्थिरता प्रदान करने की उसमें अद्भुत शक्ति है। हमारी सभ्यता को केवल वृद्धि नहीं, केवल विकास नहीं उसमें एक समन्वय चाहिये। विकास को लय और ताल का संतुलन नारी प्रदान कर सकती है। स्त्रियाँ साधारण चीज़ों में भी सौंदर्य खोज लेती हैं और वस्तुओं को केवल उनकी उपयोगिता के आधार पर महत्व नहीं देंती। दुनिया में जो कुछ भी मानवीय है तो वह स्त्रैण है। घरेलू दुनिया यदि सुन्दर है तो स्त्रियों के कारण। वह उन प्राणियों से भी प्रेम करती है जो अपने असामान्य चरित्र के कारण प्रेमयोग्य नहीं हैं। पुरुष संगठन खड़े करता है किन्तु वह नारी ही है जो समन्यव स्थापित करती है। उन्होंने एक जगह कहा था माता, बहन और सखी के रूप में स्त्रियों का योगदान बहुत बड़ा है किन्तु उसका असली रूप उसकी सजधज की चित्रमयता तथा वाणी और गति की संगीतमयता में प्रकट होता है। नारी क्या है इस जिज्ञासा का समाधान उसके उपयोगी होने में नहीं उसकी आनंददायी मुद्राओं में मिलता है। डॉ.अभिज्ञात ने कहा कि रवीन्द्रनाथ की कहानियों में महिलाएं आत्मोत्सर्ग नहीं करतीं बल्कि वे स्वाभिमान की तलाश करती हैं। वे समझौता वादी नहीं हैं विवेशशील हैं। वे खुली हवा में सांस लेना चाहती हैं।
उर्दू लेखक एवं महानामा इंशा के सम्पादक फे सीन एजाज ने कहा कि कापीराइट से मुक्त होने के बाद रवीन्द्रनाथ की कविताओं का प्रचार प्रसार पहले की अपेक्षा तेजी से हुआ है। उन्होंने इस अवसर पर रवीन्द्रनाथ के कई गीतों का बंगला से उर्दू में अनुवाद पढ़ा। ये अनुवाद उन्होंने स्वयं किये हैं। इसके पूर्व साहित्यकार व रवींद्र के गीतों का उन्हीं की स्वरलिपि में हिन्दी अनुवाद करने वाली डॉ.जलज भादुड़ी ने भी कई गीतों के हिन्दी अनुवाद का पाठ किया और गायन भी। कार्यक्रम का संचालन गजलगो शगुफ्ता यास्मीन ने किया।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में सैयद हैदर अली द्वारा लिखित व निर्देशित 'तपिश' नाटक का मंचन किया गया। यह नाटक रवीन्द्रनाथ की कविताओं और कहानी 'चोखेर बाली' पर आधारित है।

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