Tuesday, 24 December 2013

गृहस्थ जीवन की संवेदनात्मक सृजनशीलता

 समीक्षा-डॉ.अभिज्ञात
पुस्तक का नाम-अच्छा लगता है/रचनाकार-निर्मला तोदी
/प्रकाशक-नयी किताब, 1/11829 पंचशील गार्डन, प्रथम तल, नवीन शाहदरा, 
दिल्ली-110032/मूल्य-195 रुपये 

एक स्त्री के जीवन से जुड़ी रोजमर्रा की तमाम बातों और उसके सरोकारों की सहज, सरल और सच्ची अभिव्यक्ति निर्मला तोदी के पहले काव्य संग्रह 'अच्छा लगता है' में हुई है। उनके यहां कुछ भी मामूली नहीं है। हर चीज गहरी अर्थवत्ता और लगभग आध्यात्मिक उत्कर्ष लिए हुए है। संग्रह में अधिकांश छोटी-छोटी कविताएं हैं लेकिन वे अपने आप में एक पूरी बात को उसके वास्तविक परिप्रेक्ष्य में कहने मेंं पूरी तरह सक्षम हैं। मिथकथन न सिर्फ उनका काव्य स्वभाव है बल्कि उनके रचाव का एक कौशल भी है। उनकी रचनाओं में संकेत अधिक हैं और ये संकेत ही उनकी कविताओं के फलक का अधिकाधिक विस्तार करते हैं। ऐसी ही एक कविता है जीवन संघर्ष-'कमरे में/एक ऑक्सीजन सिलेण्डर लगा है उसके/बालकनी में एक एक्ट्रा पड़ा हुआ है/कभी-कभी/ ऐसा भी होता है/पूरी पृथ्वी का ऑक्सीजन कम पड़ जाता है।'
उनके लिए कविता क्या है, उसका उत्स क्या है और उनका रचनात्मक संघर्ष क्या है इस बात पर एक सार्थक टिप्पणी उन्हीं की एक कविता 'मेरे शब्द' है, हालांकि वह पुस्तक के अनुक्रम में न तो पहली कविता है न आखिरी-'मेरे विचार/आले में चाभियों के गुच्छे के नीचे/ दबे पड़े हैं/मेरी यादें/स्टोररूम के संदूक में धरी हैं/मेरे अनुभव/बरनियों के तेल-मसाले में डूबे हैं/मेरे शब्द/सोफा पर कुशनों के साथ बिखरे हैं/मैं इन्हें/पहचानने से भी इनकार करती हूं/जबकि मैं जानता हूं/ये हैं/एक कहानी/ एक कविता/एक संस्मरण/मैंने इन्हें बिखेर कर/दबा कर रखा है/मैं सजाने से डरती हूं।' यह कविता तमाम रचनारत महिलाओं की आवाज भी है, जो हर हाल में घर-परिवार के दायरे से मुक्त नहीं हैं। जिनके स्वतंत्र व्यक्तित्व पर गृहस्थी की जिम्मेदारियों की छाप है। उनकी यह बात उनकी एक अन्य कविता 'सबसे पहले वह एक गृहणी है' में भी व्यक्त हुई है। 'मेरी रसोई' कविता में वे लिखती हैं-'चायपत्ती व चीनी का डब्बा/मेरे स्पर्श से मेरी मन:स्थिति को भांप लेते हैं।' निर्मला जी कविता में चयन पर विशेष जोर देती है और यह चयन सार्थकता से ओत प्रोत है। 'जन्म दिन' कविता में वे लिखती हैं-'आज के दिन/मैं नहीं कहती/आपको दुनिया भर की खुशियां मिलें/मैं चाहती हूं/जो खुशियां आप पाना चाहते हैं/आपको जरूर मिलें/आज के दिन यह भी नहीं कहूंगी/आप सौ साल जीएं/आप जितना जीएं/जिन्दगी को भरपूर जीएं।' यहां जो जिन्दगी से भरपूर जीवन उल्लेख है उसका एक विस्तृत प्रारूप भी उनकी एक अन्य कविता 'छाता' में है। वे अपने लिए भरपूर जीना किसे मानती हैं, और यहीं उनका कवि अपनी तमाम विशेषताओं के साथ पाठक के समक्ष आता है। उसकी बानगी देखें-'धरती के रेशे में पानी ही पानी/मैं भी रेशा रेशा भीगना चाहता हूं......तुम देखना मैं एक दिन छाता बन जाऊंगी/ उनकी तरह।' मां, पिता, बच्चों पर लिखी उनकी कविताएं भी हमारी संवेदना को गहराई तक छूती हैं। इस प्रकार गृहस्थ जीवन की संवेदनात्मक सृजनशीलता के लिए लिहाज से उनकी कविताएं स्मरणीय हैं। वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ने इनकी कविताओं के बारे में ठीक ही लिखा है कि सहजता इस संग्रह की कविताओं की सबसे बड़ी खासियत है। 

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