Friday, 8 October 2010

दिल को छूती उदासी

sanmarg 10/10/2010


चांदनी रात का घाट/लेखिका-अनुपमा बसुमतारी/असमिया से हिन्दी अनुवाद-दिनकर कुमार/प्रकाशक-बुक फैक्ट्री, पूर्वांचल प्रिंट्स, उलुबाड़ी, गुवाहाटी/मूल्य-100 रुपये।
समकालीन असमिया कविता को जो लोग नया रूपाकार देने में जुटे हैं उनमें एक महत्वपूर्ण नाम अनुपमा बसुमतारी का भी है। असम की आंचलिक विशिष्टताओं को, उसके वैभव और सौन्दर्य के साथ अपनी कविताओं में उन्होंने व्यक्त किया है। इनमें कवयित्री के निजी संदर्भ भी शामिल हैं जिसके कारण इस संग्रह की कविताएं एक ऐसे अनुभव जगत का साबका पाठकों से कराती हैं जो सम्मोहक भी और विश्वसनीय भी। कैंसर से पीडित बहन, पिता, दादी, तेजी ग्रोवर इन कविताओं में निजी संदर्भों और बिम्बों के साथ उपस्थित हैं और एक अनाम व्यक्ति जिसकी चाहत इन कविताओं में बार- बार झांकती है और जिसके बिछोह के कारण एक अकेलापन भी इन कविताओं में है, जो पाठक को उदास करता रहता है। एक कविता में उसकी बानगी देखें-'मैं अब सागर से अधिक मरुभूमि को चाहती हूं/ चांदनी से अधिक चाहती हूं धूप में दमक रहे बालू के स्तूप को/रोशनी से अधिक अंधेरा और आनंद से अधिक विषाद।' इन कविताओं में समुद्र और नदी की लगातार उपस्थिति है और उदासी और कविता की गहराई को और गहरा करते हैं। यह कविताएं पाठक के मन में अपनी एक खास जगह बनाने में कामयाब हैं।
नारी अस्मिता से जुड़े सवालों के कारण यह कविताओं को वैचारिक स्तर भी हमें प्रभावित उद्वेलित करती हैं।
अनुपमा की छह कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं तथा दो दशकों के अपने लेखकीय जीवन में तमाम पत्र पत्रिकाओं में भी उनकी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। यह पुस्तक उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का एक ऐसा संकलन है जिसमें उनकी काव्य प्रतिभा की समग्रता का एहसास कराता है। कवयित्री के लिए कविता अमृत स्वर है।
इन कविताओं का अनुवाद दिनकर कुमार ने किया है, जो स्वयं एक समर्थ रचनाकार हैं साथ ही साथ असमिया से हिन्दी के एक विख्यात अनुवादक भी हैं। उन्होंने लगभग चालीस पुस्तकों का अनुवाद किया है। इस संग्रह के अनुवाद में उन्होंने इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि कविताएं अर्थ को तो व्यक्त करें पर असम की मिट्टी की खुशबू भी उसमें बची रहे। साथ ही वह कहने का अन्दाज भी जो किसी कवि को दूसरे अलग और विशिष्ट बनाता है।

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