Sunday, 25 July 2010

बच्चों के खिलाफ घर से लेकर स्कूल तक गुंडागर्दी पर रोक स्वागतयोग्य




बच्चों पर होने वाली गुंडागर्दी पर रोक लगाने की दिशा में सरकार ने ठोस
कदम उठाने शुरू किये हैं यह स्वागतयोग्य है। अब तक सर्वाधिक प्रताडऩा का
वाला वर्ग बच्चों का ही है, जिनके खिलाफ कारगर तरीके से बहुत कम आवाज़
उठायी जाती है। उसका एक कारण यह है कि भले ही समाज में वंचितों के लिए
न्याय की अवधारणा पर बार बार विचार किया जाता रहा हो किन्तु बच्चों के
शोषण पर प्राय: ध्यान नहीं दिया गया। इस दिशा में बाल श्रमिकों के खात्मे
के लिए किसी हद तक कमज़ोर सी आवाज उठाकर कर्तव्य की इतिश्री मान ली गयी।
जबकि सच यह है कि सुविधा सम्पन्न घरों में भी बच्चों का शोषण उनके जन्म
के साथ ही शुरू हो जाता है। घर से शुरू यह शोषण स्कूलों में भी बदस्तूर
जारी रहता है। बच्चों के शोषण के तौर-तरीके अन्य प्रकार के शोषण से अलग
है इसलिए उसकी भयावहता दिखायी नहीं देती।
कई बार तो बच्चे के जन्म के पहले से ही उसके शोषण का ताना-बाना तैयार
होने लगता है। भ्रूण परीक्षण उसी का एक रूप है जो चिकित्सकीय आवश्यकताओं
से कम और इस इरादे से ज्यादा कराया जाता है कि वह पुत्र शिशु ही तो है न।
अर्थात 'मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा ' की कामना वाले लोग
अपना नाम रोशन करने और अपनी मान मर्यादा की रक्षा एवं उसमें इजाफे के लिए
उसे एक कारगर अस्त्र मिल जाता है और उसे मनचाहे तरीके से इस्तेमाल करने
की जुगत में जाते हैं। माता-पिता, कुल-खानदान के लिए संतानें एक ऐसा जीव
होती हैं जिन पर वे अपने सपनों का बोझ लाद देते हैं और उसके जीवन के
लक्ष्य, उसकी जिम्मेदारियां स्वयं निर्धारित कर देते हैं। वह क्या बनेगा
यह बच्चे की अपनी च्वाइस नहीं हुआ करती। उसके लक्ष्य के निर्धारण में
बच्चे की क्षमता गौण होती है और अभिभावक की प्रमुख। भावात्मक दबाव के
बावजूद जब बच्चा उनके चाहे तौर-तरीके नहीं अपनाता और निर्धारित लक्ष्य की
दिशा में ही आगे नहीं बढ़ता तो उस पर प्यार का दावा करने वाले अभिभावक ही
बल प्रयोग करने लगते हैं। अपने बच्चों को पिटाई को मां-बाप इस दावे के
साथ ग्लोरीफाई करते हैं कि वे बच्चे की बेहतरी के लिए ही ऐसा कर रहे हैं।
अपने को सभ्य समझने वाले अभिभावक दुनिया भर का अनुशासन बच्चे पर लागू कर
अपने को गौरवान्वित समझते हैं।
और तो और ऐसे अभिभावकों की कमी नहीं है जो यह मानते है कि स्कूलों में भी
बच्चों की पिटायी हो ताकि वे ठीक से पढ़ें लिखें और अनुशासित हों। कई
बच्चे छोटी कक्षाओं में अनुशासन के नाम पर पिटते हैं और मां-बाप यह सोचकर
प्रसन्न रहते हैं कि उनकी संतान लायक बनायी जा रही है। अक्सर बच्चे स्कूल
से निकलकर कोचिंग पढऩे या घर पर ट्यूशन पढऩे में जोत दिये जाते हैं।
ट्यूशन पढ़ाने वाला शिक्षक भी बच्चों को पीटकर उसके अभिभावक पर अपनी
अच्छी इमेज बनाने में कामयाब रहता है।
यह प्रताडि़त बच्चे ऐसी स्थिति में किससे अपना दुखड़ा रोयें। एक तरह
बस्ते का बोझ, अव्यवहारिक बहुतायत में पाठ्यक्रमों का बोझ और अनुशासन के
नाम पर तमाम बंदिशें। बच्चे का स्वाभाविक जीवन छीनकर उन्हें
प्रतियोगिताओं के योग्य बनाने में जुटे अभिभावकों को जरा भी इस बात का
एहसास नहीं होता कि वे अपनी संतान के साथ कैसी बर्बरता कर रहे हैं। उन पर
निर्धारित लक्ष्य प्राप्ति का मानसिक बोझ इतना होता है कि नतीजे खराब
होने के दु:स्वप्न देखने लगते हैं और सचमुच खराब हो जाने पर आत्महत्या
जैसे कदम उठा बैठते हैं।
स्कूलों में बच्चों की पिटायी आम बात है और इसे नैतिक मानने में
समाजसुधारक होने का दम्भ भरने वाली तमाम इकाइयों को गुरेज नहीं। सामान्य
तबके के स्कूलों में तो शिक्षक पढ़ाने के लिए कम और बच्चों को दंडित करने
के लिए अधिक जाने जाते हैं। बड़ा होने के बाद भी मन में स्कूलों में चाक
से नहीं बेंत से अंकित इबारतें स्पष्ट रहती हैं।
यह तो अच्छा है कि पहले मां-बाप पर बच्चों को पीटने पर बंदिश लगी और अब
स्कूलों में शिक्षकों पर। इस दिशा में और कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।
कोलकाता स्थित ला मार्टीनियर स्कूल के आठवीं कक्षा के छात्र द्वारा
आत्महत्या करने के मामले ने इतना तूल पकड़ा कि राष्ट्रीय बाल अधिकार
संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सभी विद्यालयों में अनिवार्य रूप से 'बाल
अधिकार प्रकोष्ठÓ गठित करने की सिफारिश की है। इधर देश भर में कई स्कूलों
में शरीरिक दंड की शिकायतें बढ़ गयी थीं। आयोग ने शारीरिक दंड पर अपनी
सिफारिशें 22 जून 2010 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पेश कर दी
जिसमें सभी राज्य सरकारों से स्कूलों में अनुशासन एवं दंड से जुड़े
विषयों के लिए प्रणाली को ढांचागत स्वरूप प्रदान करने को कहा गया है। इन
सिफारिशों के साथ कोलकाता के ला मार्टीनियर स्कूल के प्राचार्य एवं उप
प्राचार्य को हटाने की भी सिफारिश की गई है। एनसीपीसीआर की अध्यक्ष शांता
सिन्हा का कहना है कि आयोग ने शारीरिक दंड पर अपनी सिफारिशें मंत्रालय को
पेश कर दी हैं।
आयोग ने अपनी सिफारिशों में कोलकाता स्थित स्कूल के प्राचार्या एवं उप
प्राचार्य के अन्य शिक्षकों द्वारा छात्रों को शारीरिक दंड देने की
अनदेखी करने और स्कूल में भय का माहौल बनाने का भी उल्लेख किया। इसके साथ
ही स्कूल से शरीरिक दंड देने वाले शिक्षकों की वेतन वृद्धि रोकने तथा
शिक्षा के अधिकार कानून के आलोक में शिक्षकों के सेवा नियमों की समीक्षा
करने को भी कहा गया है।
रिपोर्ट के अनुसार सभी राज्य सरकारों से स्कूलों में छात्र, शिक्षक,
स्कूल प्रबंधन और अभिभावक को व्यवस्था से जोडऩे को कहा गया है ताकि
भविष्य में ऐसी घटनाओं को होने से रोका जा सके। आयोग ने अपनी सिफारिशों
में स्कूलों से अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा के अधिकार कानून पर अमल
सुनिश्चित करने को कहा है। इसमें विशेष तौर पर कानून की धारा 17 का
उल्लेख किया गया है जिसमें सभी प्रकार के शारीरिक दंड का निषेध है और
इसका उल्लंघन करने वाले मामलों में कड़ी कार्रवाई करने को कहा गया है। इस
संबंध में आरटीई की धारा 17 पर अमल के लिए राज्य नियम और दिशा निर्देश
तैयार करने को कहा गया है।
इधर, सरकार एक ऐसा कानून बनाने पर विचार कर रही है जिसके तहत मां बाप ने
अपने बच्चे के साथ क्रूरता की तो उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है।
यह कानून शिक्षण संस्थानों के अलावा बच्चों के पैरेंट्स, रिश्तेदारों,
पड़ोसियों या उनके मित्रों पर भी लागू हो सकता है। यानी अमरीका की तरह अब
भारत के बच्चों को भी उन पर अत्याचार करने वाले मां-बाप व रिश्तेदारों को
जेल भिजवाने का हक मिल सकता है।
प्रस्तावित कानून यदि अमल में आता है तो पहली बार बच्चे को पीटने पर
अभियुक्तों को एक साल की सजा या 5 हजार का जुर्माना हो सकता है लेकिन
दूसरी बार भी यदि इस तरह का मामला सामने आया तो दोषियों को तीन साल की
जेल और 25 हजार तक का जुर्माना भरना पड़ सकता हैै।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इस बिल के मसौदे को शीघ्र ही कैबिनेट में
लाने जा रहा है। महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ के मुताबिक बिल
के मसौदे पर चर्चा जारी है और जल्द ही इसे कैबिनेट में लाया जायेगा।
कोलकाता में कथित तौर पर प्राचार्य द्वारा बेंत से पिटाई के बाद एक छात्र
की आत्महत्या के बाद सभी ओर से दबाव के बीच लाल मार्टीनियर स्कूल फॉर
बॉयज ने शारीरिक दंड पर पाबंदी लगा दी। स्कूल के प्राचार्य सुनिर्मल
चक्रवर्ती ने स्वीकार किया था कि उन्होंने आठवीं कक्षा के छात्र रूवनजीत
रावला की बेंत से पिटाई की थी। हालांकि उन्होंने इसे आत्महत्या से जोडऩे
से इनकार किया और कहा कि वे परिणाम भुगतने को तैयार हैं। रूवनजीत के पिता
अजय रावला ने चक्रवर्ती के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। विदित हो कि
रूवनजीत ने गत 12 फरवरी को आत्महत्या की थी।

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2 comments:

  1. इसका दूसरा पहलु और सरकार की गन्दी मनसा बहुत भयावह है ,ऐसा प्रस्ताव उस सरकार की तरफ से आता तब तो ठीक रहता जो इंसानियत को सही मायने में बचाना चाहती हो ,जो सरकार पूरी इंसानियत को ही शरद पवार जैसे हैवानों के जरिये शर्मसार करने पर तुली हो उससे किसी भी अच्छे निति की उम्मीद करना बेबकूफी ही होगी | अगर संभव हो तो दिल्ली के बाल सुधार गृह की सामाजिक जाँच करके देखिये आपको पता चलेगा की इस सरकार में बच्चों के लिए कितनी हमदर्दी है | अब तो हमसब को ही मिलकर इंसानियत को जिन्दा करना होगा जिसकी आज सख्त जरूरत है न की ऐसे कानूनी प्रावधानों के ढोंग की |

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  2. सरकार के कदम दिखाने के अधिक होते हैं और करने के कम।

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