Wednesday, 17 February 2010
पश्चिम बंगालःऔर अन्त में मुस्लिम आरक्षण का टोटका
पश्चिम बंगाल में औद्योगिक विकास के मुद्दे पर चौतरफी विफलता और हालिया लोकसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के बढ़ते कद से चिन्तित पश्चिम बंगाल सरकार के हाथ से एकाएक मुस्लिम जनाधार भी खिसकता नज़र आ रहा है। आनन-फानन में उसने राज्य की नौकरियों में ओबीसी कोटे में पिछड़े मुसलमान तबके के लोगों के लिए दस फीसदी आरक्षण की घोषणा कर दी है, हालांकि इसको लेकर बहुत विश्वस्त नहीं हुआ जा सकता है कि उसकी यह चाल चुनाव में कामयाब हो जायेगी, क्योंकि यह निर्णय काफी देर से लिया गया। बरसों से नौकरियों में मुस्लिम हितों की अनदेखी की बात सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में खुलकर सामने आ गयी है और देश भर में बंगाल के मुसलमानों की स्थिति एकाएक उजागर हो गयी है, जिसके बाद राज्य का मुस्लिम समुदाय अपनी रणनीति को फिर से निर्धारित करने में जुट गया है।
अब तक राज्य की वामपंथी सरकार केवल साम्प्रदायिक सद्भाव के दावे के भरोसे मुस्लिम समुदाय की हितैषी बनी हुई थी। लेखिका तस्लीमा नसरीन को उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति के चलते राज्य से चलता करने को ही उसने अपनी हालिया उपलब्धि मान लिया था। हालांकि इस पर भी देश और दुनिया भर में उसे अपयश ही हाथ लगा क्योंकि इस मुद्दे से मुस्लिम समुदाय की माली हालत में सुधार का कोई ताल्लुक नहीं है। तस्लीमा का मामला वैचारिक और आस्था का मामला है उनकी हालत में सुधार लाने का नहीं। सबसे बड़ी बात तो यह कि वैचारिक मुद्दों को तरजीह देने वाली सरकार को किसी साहित्यकार की अभिव्यक्ति के अधिकार पर आपत्ति शोभा नहीं देता।
पश्चिम बंगाल सरकार ने रंगनाथ मिश्रा आयोग की अनुशंसाओं पर अमल करते हुए 8 फरवरी को अन्य पिछडे वर्ग के कोटे से मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी। इस वर्ग के क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर रखा गया है। केन्द्र सरकार के कार्रवाई रिपोर्ट तैयार करने से पहले ही राज्य की वामपंथी सरकार ने यह महत्वपूर्ण निर्णय किया है जिसकी घोषणा मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने की। घोषणा के मुताबिक जिन परिवारों की वार्षिक आय साढ़े चार लाख रूपए से कम होगी वे आरक्षण के पात्र होंगे।
मुसलमानों में जो पिछडे हैं, उन्हें सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़े वर्गों के कोटे से 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा। अब तक राज्य में अन्य पिछडे वर्गो के लिए सात प्रतिशत आरक्षण था। अब इस वर्ग में मुसलमानों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने से अन्य पिछड़े वर्गो का कुल आरक्षण बढ़कर 17 प्रतिशत हो गया है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने जो आंकड़ा सच्चर कमेटी को दिया और वह सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में छप कर आने के बाद उजागर हुआ है, वह चौंकाने वाला है। रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिम बंगाल की मुस्लिम आबादी 25.2% है जबकि राज्य की नौकरियों में उनकी हिस्सेदार केवल 2.1% है। जबकि इससे काफी कम मुस्लिम आबादी वाले राज्यों में सरकारी नौकरियों में उनका प्रतिशत काफी अधिक है।
इस सम्बंध में बहुचर्चित राजेंद्र सच्चर कमेटी के सदस्य-सचिव रहे अबु सालेह शरीफ़ ने सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की स्थिति का राज्यवार ब्यौरा प्रस्तुत किया, वह इस प्रकार हैः
मुस्लिम आबादी और सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी
पश्चिम बंगाल-आबादी 25.2% नौकरी 2.1%
केरल- आबादी 24.7% नौकरी 10.4%
उत्तर प्रदेश-आबादी 18.5% नौकरी 5.1%
बिहार-आबादी 16.5% नौकरी 7.6%
असम- आबादी 30.9% नौकरी 11.2%
झारखंड-आबादी 13.8% नौकरी 6.7%
कर्नाटक-आबादी 12.2% नौकरी 8.5%
दिल्ली-आबादी 11.7% नौकरी 3.2%
महाराष्ट्र-आबादी 10.6% नौकरी 4.4%
आंध्रप्रदेश-आबादी 9.2% नौकरी 8.8%
गुजरात-आबादी 9.1% नौकरी 5.4%
तमिलनाडु-आबादी 5.6% नौकरी 3.2%
इस सम्बंध में 10 फरवरी को बुधवार को दिल्ली में नेशनल मूवमेंट फ़ॉर मुस्लिम रिज़र्वेशन (एनएमएमआर) के सम्मेलन में खुल कर चर्चा हुई जिसमें देशभर की जानीमानी हस्तियों, कई राजनीतिक दलों के नेताओं और कई मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और पश्चिम बंगाल सरकार की इस मसले पर जम कर निन्दा की।
एनएमएमआर के प्रमुख सैयद शहाबुद्दीन ने कहा कि मुसलमानों को आरक्षण के सम्बंध में रंगनाथ मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के पूरे सुझावों पर अमल किया जाए। आरक्षण की 50 प्रतिशत सीमा को हटाया जाए और धारा 341(3) में संशोधन कर मुसलमानों को भी अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए। सम्मेलन में मुस्लिम आरक्षण से संबंधित घोषणा पर कई प्रतिनिधियनों का कहना था कि मुस्लिम वोट को खिसकता देख पश्चिम बंगाल में वामपंथी पार्टियों ने मुसलमानों को आरक्षण देने का फ़ैसला किया। ऐसे में मुसलमानों को वोट को हथियार बनाने की ज़रूरत है और वो उसी पार्टी को वोट दें जो आरक्षण देने का समर्थन करे।
दरअसल पश्चिम बंगाल के मुसलमानों में मध्यम वर्ग लगभग नदारद है। इसलिए नौकरियों से लेकर शिक्षा और बैंक लोन तक मिलने में हो रहे भेदभाव को लेकर कोई पुरजोर आवाज़ नहीं उठी। फिलस्तीन पर इजरायली हमले, डेनमार्क में कार्टून विवाद, इराक पर अमेरिकी हमले, तस्लीमा नसरीन की रचनाओं पर उठा विवाद जैसे मुद्दों पर ही बातें आदर्श बघारे गये और उनकी मूल समस्याओं से निजात दिलाने पहल नहीं हुई। यह जरूर है कि हिन्दुत्व को लेकर केसरिया आतंक यहां भाजपा की शक्ति के क्षीण होने के कारण नहीं पनपा और यहां के मुसलमान उस काली छाया से बचे रहे और मुसलमानों के हित में केवल बोलकर ही वामपंथी दल उनका खैरख्वाह बने रहे। सच्चर कमेटी ने पश्चिम बंगाल सरकार को नंगा कर दिया, लेकिन मौके की नजाकत देखते हुए रिपोर्ट आते ही माकपा ने मांग की कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट लागू की जाये। वक्त का तकाज़ा है कि वाम सरकार उनके लिए वह करे जिससे उनकी हालत में सुधार हो।
भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा पिछड़े मुसलमानों के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा का वही हश्र होगा जो आंध्र प्रदेश सरकार के आरक्षण संबंधी फैसले का हुआ। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने मुस्लिम समुदाय को चार फीसदी आरक्षण देने के राज्य सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया है। भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रुडी का कहना है कि पश्चिम राज्य सरकार ने आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह निर्णय लिया है। कांग्रेस और वामपंथियों की राजनीति का केंद्र ही तुष्टिकरण है। पश्चिम बंगाल सरकार के इस फैसले का भी वहीं हश्र होगा जो आंध्र प्रदेश सरकार के धर्म आधारित आरक्षण देने के फैसले का हुआ। देश में धर्म आधारित आरक्षण का पुरजोर विरोध होना चाहिए।
वामपंथी राजनीति वर्गीय चेतना को तरजीह देती आयी है और जाति और धर्म पर आधारित राजनीति का उसने विरोध किया है किन्तु जिस प्रकार कुछ अरसा पहले माकपा महासचिव प्रकाश करात ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में इसलिए देखने की मंशा जाहिर की थी कि वे दलित की बेटी हैं या फिर धर्म में सम्बंध में उनका बयान की हमारा विरोध साम्प्रदायिकता से है सम्प्रदाय से नहीं यह बताता है कि वाम राजनीति का चेहरा अब बदलने जा रहा है। अब बंगाल सरकार का वर्गीय चेतना के आधार को छोड़ते हुए धर्म के आधार पर आरक्षण देने की घोषणा ने बता दिया है कि वह सत्त्ता पर काबिज होने या बने रहने के लिए भारतीय लोकतंत्र की उन तमाम खामियों के आगे घुटने टेकेगी जिसकी वह स्वयं आलोचना करती रही है। कहना न होगा कि बंगाल सरकार के इस कदम से आने वाले समय में राज्य में भाजपा का जनाधार तैयार होगा और यह भी मुमकिन है कि केसरिया दल अपनी राजनीति को यहां और जमाने के लिए बंगलादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उछाल कर अपनी रोटियां सेंके।
इंदौर में भाजपा के तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन के अंतिम दिन 19 फरवरी को रंगनाथ मिश्रा आयोग रिपोर्ट पर पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा कि इस रिपोर्ट से अनुसूचित जाति और जनजातियों के मन में बहुत जबरदस्त भय है कि अगर यह सिफारिश लागू हो गयी तो उनका आरक्षण कम हो जायेगा।
मुस्लिमों और दलित ईसाइयों को आरक्षण देने तथा अन्य पिछड़ा वर्ग में मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने की रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट मुसलमानों को 'राजनीतिक आरक्षण देने की बड़ी साजिश' है। पार्टी का कहना था कि अगर दलित ईसाइयों और मुसलमानों को आरक्षण मिल गया तथा अन्य पिछड़े वर्गों को मिले 27 प्रतिशत के आरक्षण में मुसलमानों को आरक्षण 8.4 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया तो इससे विधानसभाओं, संसद तथा अन्य निर्वाचित संस्थाओं में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व अपने आप बढ़ जायेगा। उच्च प्रशासनिक सेवाओं में भी इस आधार पर मुसलमानों की पैठ बढ़ जायेगी।
इस प्रकार मुस्लिम समुदाय के आरक्षण को कांग्रेस का वोट बैंक मजूबत करने की तिकड़म के तौर पर देखा जा रहा है और पश्चिम बंगाल सरकार ने आरक्षण की घोषणा करके कांग्रेस कल्चर को समर्थन दे दिया है। सवाल यह है कि दलितों, पिछड़ों को जाति के आधार पर आरक्षण दिया जा सकता है तो धर्म के नाम पर क्यों नहीं। जाति फिर धर्म से छोटी इकाई है। जिन तर्कों से जाति के आरक्षण जायज हैं उन्हीं तर्कों से धर्म पर आधारित क्यों नहीं। मेरी व्यक्तिगत मान्यता तो यही है कि आरक्षण किसी भी आधार पर दिया ही नहीं जाना चाहिए यह लोकतंतत्र की समानता के उद्देश्य को बाधित करता है और छोटे-छोटे दबाव समूहों की सृष्टि होती है। अवसरवादी राजनीतिक दल उसका लाभ उठाते हैं।
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