Thursday 12 October 2017
Wednesday 4 October 2017
संवेदना के नये धरातल के अन्वेषण की कविताएं
पुस्तक समीक्षा -डॉ.अभिज्ञात कविता संग्रह-काश !कोई शीशा दिखाता/लेखक-सुव्रत लाहिड़ी/ प्रकाशक-आनंद प्रकाशन, 176/178 रवीन्द्र सरणी, कोलकता-700007/ मूल्य-200 रुपये |
सुव्रत लाहिड़ी का यह दूसरा कविता संग्रह लगभग 25 साल बाद आया है। पहला संग्रह ज़िल्द बन जाने से पहले था। इस बीच उन्होंने अपने काव्यानुभवों और संवेदना के स्तर का पर्याप्त विकास किया है। यूं भी एक वामपंथी प्रतिबद्ध विचारक की संवेदना के धरातल के प्रति पाठकों में उत्सुकता होती है किन्तु जिस भाव प्रवणता का परिचय इस संग्रह से मिलता है वह उसे सुखद विस्मय से भर देता है। यहां विचारों का शुष्क संसार नहीं है बल्कि मनोवेगों के उतार-चढ़ाव व संवेदना के विभिन्न रूपों से उसका साबका होता है। ये कविताएं संवेदना के नये धरातल का अन्वेषण करती नज़र आती हैं। प्रकृति उनके कथन को व्यक्त करने का विश्वस्त आलम्बन है-'अभी/बस अभी खिले ओस भींगे स्निग्ध जूही के अनगिनत फूल/सुबह की शुरुआत है/सूरज की आह्निक गति की पहली कड़ी है/चहचहाहट के मंत्रोच्चार से झूमती बूंद ओस की/हर सुबह का करती है स्वागत/तुम सुबह हो..।'
संवेदना की गहराई का 'खोया' कविता पुष्ट उदाहरण है, जो मां पर लिखी गयी है-'जिन जिन की मां/तारा बन गयी/उसे खोने का दर्द/महसूस नहीं कर पाते वे/मां है जिनके साथ।'
कविता की असली ताक़त वे किसे मानते हैं वह 'जरूरी' कविता में उन्होंने स्पष्ट किया है-'शब्दों को/कविता में सुरक्षित करना/ज़रूरी हो गया हमारे शब्दों को ग्लास हाउस में रखकर बोंसाई बनाने का प्रयास जारी है इसलिए कवि होना नहीं शब्दों की देखभाल ज़रूरी है।' दरअसल उनकी निगाह में केवल कविता नहीं बल्कि शब्दों की वह शक्ति महत्वपूर्ण है जिसमें मानवीय नियति, सभ्यता, संस्कृति व मेहनतकश जनता का इतिहास महफूज होता है, लेकिन उसके पाठ में दुरभिसंधियां छिपी होती हैं। शब्द अपने सही आशय खो रहे हैं। कवि की निगाह में कविता में ही शब्द को सहेज कर महफूज रखा जा सकता है।
छीजती संवेदनशीलता और जीवन से खोते उल्लास के प्रति कवि के मन में गहरी टीस है। यह उसकी कविता में झांकती रहती है-'सोचता हूं/बारिश से बुझी आग में तप कर/श्मशान में एक गुलमोहर का पौधा लगाऊंगा/कभी तो संवेदन भरा फूल खिलेगा/तब भरपूर रोऊंगा/तब भरपूर हंसूंगा/तब भरपूर बोलूंगा/तब मेरे शब्द संवेदनपूर्ण होंगे।'
सुव्रत लाहिड़ी की कविताओं में शिव, कृष्ण, राधा, दक्ष, सीता, द्वापर, त्रेता आदि पौराणिक चरित्रों व शब्दावलियों से जुड़े संदर्भ उनकी बातों को व्यापक अर्थ प्रदान करते हैं। बांग्ला संस्कृति की छाप तो खैर उनकी हर कविता में है, जो हिन्दी कविता के सौंदर्य को समृद्ध करती है।
Subscribe to:
Posts (Atom)