Tuesday 20 August 2013

मनोविज्ञान की गहरी सूझ वाली कहानियों का आत्मीय संसार

समीक्षा 
 -डॉ.अभिज्ञात
पुस्तक का नाम-स्याह लहरों का ध्रुवतारा/लेखक-नंद किशोर/ प्रकाशक-श्री प्रकाशन, 32 सरकार लेन, कोलकाता-700007/ मूल्य-पेपरबैक-80 रुपये व सजिल्द 150 रुपये मात्र।
कवि-चित्रकार नंद किशोर का पहला कहानी संग्रह स्याह लहरों का ध्रुवतारा पाठकों को एक ऐसे आत्मीय संसार में ले जाता है जो हमारा बहुत जाना पहचाना भले न हो किन्तु वह कहीं से पराया नहीं लगता। यह कथाकार की रचनात्मकता की खूबी है कि वह अपने साथ हमें अपने अनुभूत और काल्पनिक जगत में इस तरह ले जाता है कि वह बड़ी सहजता से हमारा अपना भी बन जाता है। भाषा न तो आक्रांत करती है और ना ही अपनी ओर अलग से ध्यान खींचती है। पाठक का पूरा ध्यान इस बात पर रहता है कि कथानक के चरित्र के साथ क्या घटा। ये चरित्र केवल कथानक तक सीमित नहीं रह जाते बल्कि हमारे अनुभव संसार एक ऐसा हिस्सा बन जाते हैं जैसे वे हमारी दुनिया में प्रत्यक्ष आया हों और उनके साथ जो कुछ घटित हुआ वह हमारे सामने ही हुआ। इन कहानियों को घटनाक्रम ही कहानी नहीं बनाते बल्कि संवेदन तत्त्व भी उसमें केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। मनोविज्ञान की गहरी समझ ने इन्हें अतिरिक्त अर्थवत्ता प्रदान की है और कई कहानियां मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के लिहाज से भी याद किये जाने योग्य हैं। हिन्दी कहानी में मनोविज्ञान की गहरी सूझ की उन्हें इलाचंद जोशी, जैनेन्द्र व अमरकान्त की कथा परम्परा से जोड़ती है। इस लिहाज से संग्रह की पहली दो कहानियां 'कुएं का बर्फीला सन्नाटा' व 'इनविटेशन' द्रष्टव्य है। 'कुएं का बर्फीला सन्नाटा' कहानी के मुख्य पात्र तकी अहमद की कुंठाओं का प्रभावी मनोविश्लेषण कथाकार ने किया है। उसकी पीठ पर कूबड़ था और वह इसे प्राकृतिक अभिशाप को कभी दिल से स्वीकार नहींं कर पाता है। उसे हर वक्त लगता रहता है कि उसके परिवार के लोग उसकी उपेक्षा कर रहे हैं। हाई स्कूल में अच्छे अंकों के बावजूद वह कालेज में एडमिशन नहीं लेता और अन्तत: वह अपने दोस्तों, घर-परिवार के लोगों की आत्मीयता को भूलकर कुएं में कूदकर आत्महत्या कर लेता है। 'इनविटेशन' कहानी में खदान का सीनियर मैनेजर पर्सनल अपने घर पर काकटेल पार्टी में कई मजदूरों को भी बुलाता है। जिसमें अफसर, यूनियनों के नेता, ठेकेदार, क्लर्क व एजेंट भी बुलाये गये हैं। इस दावत में मजदूरों को निमंत्रण क्यों दिया गया है यह कहानी के मुख्य पात्र बूधन पासवान का पड़ोसी चटर्जी दा समझाते हैं कि प्रबंधन-श्रमिक का करीबी रिश्ता उत्पाद को प्रभावित करता है, इन्हीं कवायदों में पार्टी वार्टी मात्र एक प्रबंधकीय टैक्टिस है। किन्तु बूधन उनकी गूढ़ लगती बातों को नहीं समझ पाता। पार्टी में जाने का उत्साह व सब कुछ बेहतर हो जाने की कल्पना आदि के लिए इस कहानी में मजदूर की मन:स्थिति का बेहद विश्वसनीय मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है। कहानी का क्लाइमेक्स अत्यंत नाटकीय अंदाज में होता है जब बुधन पार्टी में विदेशी शराब के नशे में बेसुध होकर गिर जाता है और जब उसे होश आता है तो पाता है कि पार्टी देने वाला जो अफसर उसे महान नजर आ रहा था वह अपनी पत्नी के आगे भीगी बिल्ली बना हुआ है और उसकी बीवी उसे फटकार रही है-जाने तुम कहां-कहां से भिखारियों को उठाकर ले आते हो..यह कंगाली रात भर उल्टियां करता रहा।....उसे अभी घर से बाहर निकालो और पूरा बंगला फिनाइल, डिटाल से रगड़कर साफ करो...। दूसरी तरफ 'मसालों का सौदागर' जैसी कहानियां भी हैं जिनमें यथार्थ और फेंटेसी का ऐसा समन्वय है कि वह पाठक को एक अन्य लोक में ले जाता है जहां सच झूठ के प्रश्न बेमानी हो जाते हैं और पाठक दिल थामे इस बात का इन्तजार करता है कि अब क्या होने वाला है। 'एक था रतन', 'फातिहा' और 'ठंडी चाय' कहानियां व्यक्तियों के अलग-अलग रूप प्रस्तुत करती हैं और अलग-अलग दुनियाओं में ले जाती हैं जहां हम व्यक्ति की खूबियां-खामियों, उसकी आशा-निराशा और इनमें रोजमर्रा की जि़न्दगी के घात-प्रतिघात से पाठक का साबका होता है। नंद किशोर का यह पहला संग्रह यह दर्शाता है कि उनके अंदर कई दुनियाएं हैं, जिनसे कहानी की दुनिया और समृद्ध होगी।
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