Thursday 18 November 2010

पत्रकारिता की रीढ़ होते हैं सवाल

(एक कालेज में पत्रकारिता की क्लास लेने का आफर मिला। पढ़ाने का कभी न तो सोचा था न अवसर मिला। झिझक थी कि कहीं ऐसा न हो मुद्दे से बहक जाऊं। सो एक खाका तैयार कर लिया। यह बात दीगर है डेढ़ घंटे आसानी से बीत गये यह नोट देखने की जरूरत नहींं पड़ी। वह नोट आपसे शेयर कर रहा हूं।)
सवाल पूछना दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है क्योंकि सही सवाल समस्या के निदान की पहली कड़ी है या कहें कि आधा जवाब है। आदमी की पहचान उसके सवालों से की जा सकती है। और किसी भी समाज के अध्ययन के लिए उस दौर के सवालों को देखा जाना चाहिए कि वह दौर किन सवालों से जूझ रहा था। सवाल ही उस दौर की समस्याओं को नहीं दर्शाता बल्कि यह भी बतलाता है कि लोग उससे जूझने के लिए किन विकल्पों पर विचार कर रहे थे। इसलिए किसी की बौद्धिकता को कुंद करना है तो सवाल की इजाजत न दें। कुछ दिन में प्रश्न उठना बंद हो जायेगा।
पत्रकारिता में सबसे अहम कड़ी होती है सवालों की। क्या, कब, क्यों, कहां, कैसे आदि पांच सवालों पर पत्रकारिता की बुनियाद टिकी हुई है और यह दृढ़ता से माना जाता है कि कोई समाचार यदि इन पांच सवालों से नहीं जूझता है तो उसमें कमी है। हिन्दी पत्रकारिता में इंट्रो में इन पांचों का होना लगभग अनिवार्य माना जाता है। ताकि शुरुआती दो तीन पंक्तियां पढ़कर ही पाठक को संक्षेप में घटना का पता चल जाये। जरूरी पांच प्रश्नों का मामला दरअसल हार्ड न्यूज से जुड़ा हुआ है फिर भी प्रश्नों की उपयोगिता दूसरे आलेखों में कम नहीं है। आज की पत्रकारिता में फीचर या आलेखों का महत्व दिनों दिन बढ़ता जा रहा है जिसमें सवाल प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसमें केवल उन्हीं पांच सवालों से काम नहीं चलता है। इसमें जिस पत्रकार, साक्षात्कारकर्ता या आलेख के लेखक के पास जितने अधिक सवाल होंगे वह उतना ही कामयाब होगा। क्योंकि वस्तुस्थिति और बहुआयामी संभावना से पाठकों को परिचित करना पत्रकारिता के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है।
अधिक सवाल का आशय यहां इस बात से कतई नहीं है कि प्रश्न उलजुलूल हों। प्रश्न का उत्तर देने वाले से गहरा ताल्लुक होना अनिवार्य है या फिर आप जिस मुद्दे पर उसकी प्रतिक्रिया चाहते हैं वह उसे उजागर करने में अपनी भूमिका निभाये।
किसी का साक्षात्कार करने के पूर्व इंटरव्यू देने वाले के अध्ययन, पद, कार्य अनुभव आदि की जानकारी पहले ही प्राप्त कर लेना सहायक होता है ताकि असम्बंध प्रश्न पूछने के बाद झेंप का सामना न करना पड़े। किसी प्रसिद्ध व्यक्ति से वे सवाल नहीं पूछने चाहिए जो जगजाहिर हों। उनसे नयी योजनाओं के बारे में पूछा जा सकता है। उसने पिछले कार्यों से क्या सीखा यह जाना जा सकता है। बड़े बड़े लोगों की छोटी छोटी बातें भी लोग पढऩा पसंद करते हैं कि इसलिए उनसे मामूली बातें भी पूछी जा सकती हैं बशर्ते असम्बद्ध न हों। यहां यह गौरतलब है कि पहले से तैयार प्रश्नावली किसी हद तक ही इंटरव्यू लेने में सहायक होती है। मिले हुए जवाबों में भी सवाल निकलते हैं जो इस कला को महत्व देगा उसका इंटरव्यू और अच्छा होगा। किसी विशेषीकृत विषय पर प्रश्न पूछते समय इस विषय के प्रचलित शब्दों के अर्थ मालूम होना चाहिए। हर क्षेत्र विशेष में कुछ खास शब्द प्रचलित होते हैं जिनका सामान्य अर्थ निकलने पर गलती हो जाती है। उनके पारिभाषिक अर्थ होते हैं। विषय की गहरी जानकारी न होने पर उन शब्दों से बचना चाहिए। या फिर जानते हैं तो वह बातचीत में अधिक सहायक होते हैं।
विषय पर गहरे प्रश्न ही पूछे जायें ऐसा नहीं है। जिस मीडिया से लिए साक्षात्कार लिया जा रहा है उसकी आवश्यकता को समझते हुए कुछ रोचक सवाल भी पूछे जाने चाहिए ताकि इंटरव्यू पढऩे वाले को वह सरस लगे। किसी के कहे शब्दों को तोड़ मरोड़ कर पेश नहीं करना चाहिए वरना सभी पक्षों के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। यह जरूर है कि आप चाहें तो इंटरव्यू देने वाले को बातों में उलझाकर वह बातें उसी के मुंह से कहलवा लें जिस कहने से वह बचना चाहता है। आपके इंटरव्यू को चॢचत कर दे। ऐसे प्रश्नों के मामूली ढंग से पूछें ताकि उत्तर देने वाला चौकस न हो जाये। इंटरव्यू लेने के पूर्व थोड़ी देर इधर उधर की हल्की फुल्की बातें करें जिससे आपके साथ उत्तर देने वाले का तालमेल बन जाये। यह तालमेल भरा रिश्ता इंटरव्यू के समय काम आयेगा।
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