Friday 24 July 2009

समलैंगिकता पर ऐतराज क्यों?

भारतीय समाज में समलैंगिकता कोई नयी चीज़ नहीं है। जिन शास्त्रों की दुहाई हम देते हैं उसमें इसका ज़िक्र मिल जायेगा। यह ऐसा निहायत व्यक्तिगत पसंद का मामला है जिस पर टिप्पणी की कोई आश्वकता नहीं यदि समझी जानी चाहिए कि कोई अपने दैहिक आवश्यकताओं को किस तरह से पूरा करता है बशर्ते वह ज़ोर जबरदस्ती न हो। हमारे समाज में यह क़ायम होते हुए भी अंग्रेज़ी रात में दंडनीय अपराध माना गया। अब इसका कोई औचित्य नहीं कि अंग्रेजों ने हमारे लिए जो कानून बनाये हैं उनका हम पालन करते रहें। समलैंकिकता को अदालत द्वारा अपराध न माने जाने पर कोहराम की आवश्यकता इसलिए नहीं है क्योंकि यह कानून नहीं बनने जा रहा कि किसी व्यक्ति को समलैंगिक होना ही पड़ेगा। यह पहले की तरह ही ऐच्छिक और व्यक्तिगत पसंद का ही मामला रह जाना है अन्तर इतना है कि वह अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा और इस तरह की रुचि लेने वाले समाज में प्रताड़ित नहीं होंगे ना ही उन्हें समाज में हिकारत से देखने की किसी को इज़ाजत दी जायेगी। भारत यदि सबसे पड़े लोकतंत्र का वाहक है तो साझी रुचियों के भी उसे खयाल रखना होगा। यह मान लेना कि समलैंगिकता को अपराध करार नहीं दिया गया तो नयी पीढ़ी बिगड़ जायेगी गलत है। स्त्री पुरुष अनंत काल से एक दूसरे के पूरक रहे हैं और एक दूसरे के प्रति स्वाभाविक रुझान रखने वाले भी। स्त्री पुरुष का एक दूसरे के प्रति रुझान कानून बनाकर पैदा नहीं हुआ है। यह प्रकृति का सामान्य नियम है और यह नियम सृष्टि बदलने नहीं जा रही है किन्तु समाज में अपवाद भी होते हैं और भिन्न रुचि रखने वाले लोग भी। यह ज़रूर है कि इससे एक खुला समाज निर्मित होगा। रिश्त की दुनिया में यह एक नयी दस्तक है जिस पर नये समाज को अभी विचार करना है। सरकार समलैंगिकता को मान्यता देती है तो इससे यह संदेश जा रहा है कि आने वाले समय में सरकार विश्यावृत्ति को भी सरकारी मान्यता देगी ऐसा कहा जा रहा है। इसमें गलत क्या है यदि वेश्यावृत्ति के पेशे से जुड़े लोगों को सरकारी संरक्षण मिल जाये। अब तक गुंडे और पुलिसवाले वेश्यावृत्ति के पेशे से जुड़े़ लोगों के शोषण करते रहे हैं उन्हें शोषण से निजात दिलाने का उपक्रम क्यों नहीं होना चाहिए। इस पेशे को सरकारी मान्यता मिलने के बाद पेशे से जुड़े़ लोगों के स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं को दूर करने में भी सरकार को सहूलियत होगी और उन लोगों का भी भला होगा जो इसमें चोरीछिपे दिलचस्पी लेते हैं और तमाम बीमारियों को भी न्यौतते हैं और कई बार कानून पचड़ों में भी फंस जाते हैं। कोई भी समाज नैतिक तभी बना रह सकता है जब वह किसी का शोषण करने से इनकार करता हो। कोई भी नैतिकता शोषण की बुनियाद पर टिकी है तो वह नैतिक नहीं हो सकती।

Tuesday 21 July 2009

सच का चेहरा


स्टार प्लस पर एक टीवी कार्यक्रम शुरू हुआ है सच का सामना। किसी एक व्यक्ति से उसके जीवन के सच के साक्षात्कार का यह कार्यक्रम लोगों को बेचैन किये हुए है। झूठ पकड़ने की मशीन के सामने सच छिपाने की गुंजाइश नहीं है। एंकर राजीव खंडेलवाल प्रतिभागी से ऐसे सवाल भी पूछ रहे हैं जो उनकी जिन्दगी के उस सच की तस्वीर पेश कर रहा है जिसे अमूमन लोग छिपाते फिरते हैं। सच का सामना दरअसल भारतीय समाज का वह चेहरा है जो दिखायी नहीं देता। एक ऐसे भारतीय की तस्वीर सामने आ रही है जिसकी कल्पना आसान न थी। अच्छा है इससे यह उजागर हो रहा है कि हमारे समाज में कितना खोखलापन है। हमारे रिश्ते कितने दिखावटी हैं और हमारा जीवन कितना दोहरा।
हैरत की बात यह कि जो लोग सच का सामना पर आपत्ति जता रहे हैं उन्हें समाज के कड़वे सच पर ऐतराज़ नहीं है उन्हें ऐतराज़ है उसके सामने आने पर। यदि सच सामने नहीं आता है तो उस पर सामाजिक चर्चा कैसे होगी? कैसे किसी को पता चलेगा कि समाज का पतन कितना और किस ओर हो रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं जिसे हम छिपा रहे हैं उसमे छिपाने जैसी कोई बात ही न हो खामखाह एक गिल्ट लेकर हम ज़िन्दगी बसर करते रहे। सच सामने आये तो सच से समाज का डर जाता रहेगा। सच के सुधार का रास्ता खुलेगा। आवश्यकता इस बात की है कि जो ग़लत है वह न हो, इस बात की नहीं कि जो ग़लत है वह सामने ही न आये। यह जो छिपे हुए सच हैं इसी के कारण दो दुनियाएं एक साथ भारत में जी रही हैं। एक वह जहां एक ही गोत्र में विवाह करने पर मौत की सज़ा दी जाती है। जाति और धर्म से बाहर विवाह करने पर अक्सर। दूसरी तरफ वह दुनिया भी भारत में ही है जो खुल कर सच का सामना करने को तैयार हो रही है। लोग कहते रहे कि एक करोड़ के लिए लोगों को नंगा किया जा रहा है किन्तु क्या यह सच नहीं है जो एक करोड़ रुपये पाने जा रहा है उसे किसी नकली सच से नहीं गुजरना है उस सच से गुजरना है जो उसके भीरत है। भीतर और बाहर की दुनिया में इतनी फांक क्यों होनी चाहिए कि वह दो अलग अलग व्यक्ति दिखायी दें। आईने से डरना बंद करो और सच का सामना करने का साहस जुटाओ। सच का सामना करने का साहस आने पर सच बदल जाता है क्योंकि वह सामाजिक चर्चा का विषय बनता है और निजता खत्म होती है। यदि लोगों को लगता है कि सच का सामना करने वाले सच की तरह स्वयं उनका भी सच है तो उस हक़ीकत से लड़ें जो उनके भीतर है। किसी व्यक्ति से उसके परिवार वालों के सामने यह पूछना अशोभनीय है कि उसके दूसरे किसी महिला या पुरुष से अवैध सम्बंध रहे हैं बुरा प्रश्न है या यह हक़ीक़त की हां है। हां कहते ही समाज पतित हो जाता है किन्तु छिपा लेने से समाज की पवित्रता बनी रहती है तो क्या ऐसी किसी पवित्रता की आवश्यकता है? यह धारावाहिक उन तमाम प्रयासों की एक कड़ी के तौर पर देखे जाने की मांग करता है जो भारतीय समाज को एक खुला समाज बनाती है, जिसकी हमें आवश्यकता है। अगर हमारा समाज भीतर ही भीतर सड़ गया है तो उसे बदलने की आवश्यकता है। अगर वह भीतर ही भीतर खोखला है घिनौना है तो उसे भी सामने आना होगा। क्योंकि परिवर्तन की यह पहली शर्त है। सच का सामना किये बिना कोई बदलाव समाज में नहीं आ सकता और हम कुछ कहते और कुछ करते हुए अपना जीवन जीते नज़र आयेंगे।

यह उदय प्रकाश का पतन है या कामयाबी?


प्रख्यात कवि-कथाकार उदय प्रकाश ने भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ के हाथों एक पुरस्कार क्या ले लिया साहित्य के कुछ अखाड़ची उनके पीछे पड़ गये हैं। उनका कहना हा उदय प्रकाश ही दोषी हैं। उन्होंने भाजपा जैसी जघन्य विचारधारा से जुड़ी शख्सियत से पुरस्कार लिया है। कभी वामपंथी विचारधारा से जुड़े प्रबुद्ध व्यक्ति को यह कतई शोभा नहीं देता। यह उदय प्रकाश का पतन है जिसके लिए उन्हें शर्मसार होने की आवश्यकता है। मेरा खयाल है इस बात पर भी गौर करना चाहिए कि योगी आदित्यनाथ ने इस पर विचार क्यों नहीं किया है वे जिन्हें अपने कर कमलों से सम्मानित कर रहे हैं उसकी विचारधारा क्या है और क्या उसे सम्मानित किया जाना चाहिए। यदि आदित्यनाथ को उदय प्रकाश सम्मान देने लायक लगे तो हमें इसे खुश होना चाहिए और उदय प्रकाश की पीठ ठोंकनी चाहिए कि योगी आदित्यनाथ को उनकी विचारधारा और उनका कृतित्व पसंद आया।

जनता का क़द छोटा क्यों है कलाम से?


एक एयरलाइंस ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम की भारत के ही अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तलाशी ले ली तो हंगामा मच गया है। कहा जा रहा है कि वे देश के उन राजनीतिक हस्तियों में शुमार हैं जिनकी तलाशी नहीं ली जा सकती। एयरलाइंस ने यह तलाशी सुरक्षा कारणों से ली थी और इसमें भारत का दावा है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति को भी छूट है जबकि वह एयरलाइसं कम्पनी कहती है कि सुरक्षा मामलों में किसी को छूट नहीं दी जाती। देश के शीर्ष पदों पर बैठे कुछ लोगों की इस तरह पहले भी तलाशी ली जा चुकी है और हंगामा भी मचता रहा है। प्रश्न यह है कि सुरक्षा कारणों से ली जाने वाली तलाशी में देश के कुछ लोगों को छूट क्यों दी जाये? क्या देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति या पूर्व राष्ट्रपति को यह विशेषाधिकार दिया जाना चाहिए कि वह अन्य नागरिकों से अलग और विशिष्ट बना रहे। क्या इस प्रकार की सुविधाएं देने से देश के बाकी नागरिकों का क़द छोटा नहीं किया जा रहा है। संसद में कलाम की तलाशी को देश के अपमान से जोड़ा गया है और हंगामा भी मचा है। क्या आम जनता के अपमान का भी खयाल नहीं किया जाना चाहिए?
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